Ramadan Shab E Qadr: रमजान का पाक महीना खत्म होने जा रहा है. देश और दुनियाभर में मुसलमान इबादत में जुटे हुए हैं. इस बीच रमजान में एक रात ऐसी है जिसमें अल्लाह की इबादत करने का सवाब (पुण्य) हजार रातों की इबादत के बराबर माना जाता है. इस रात को कहते हैं शब-ए-कद्र (Shab E Qadr). आइए जानते हैं आखिर शब-ए-कद्र क्या है.


क्या है शब-ए-कद्र (What is Shab E Qadr) 


शब-ए-कद्र रमजान के पाक महीने की खास रात है. रमजान का तीसरा अशरा ढलने के बाद ये रात आती है. रमजान का तीसरा अशरा 21 रमजान से 30 रमजान तक होता है. रमजान के तीसरे अशरे में पांच पाक रातों में शब-ए-कद्र को तलाश किया जाता है. ये राते हैं 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं, 29वीं रात.


शब-ए-कद्र की रातों के दौरान मुसलमान रातभर जागकर इबादत करते हैं. इस रात मुसलमान अपने रिश्तेदारों, अजीजो-अकारिब की कब्रों पर जाते हैं और फूल चढ़ाते हैं और उनकी मग्फिरत के लिए दुआएं मांगते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस रात में अल्लाह की इबादत करने के साथ अपने गुनाहों की तौबा करते हैं और उनके गुनाह माफ कर दिए जाते हैं.


रमजान के मुबारक महीने की अन्य रातों के मुकाबले शब-ए-कद्र की रातों का महत्व अलग से होता है, जिसे लैलातुल कद्र के नाम से भी जाना जाता है. इसे अंग्रेजी में नाइट ऑफ डिक्री, नाइट ऑफ पावर, नाइट ऑफ वैल्यू भी कहा जाता है.


शब-ए- कद्र का महत्व (Shab E Qadr Importance) 


दरअसल, शब-ए-कद्र इसलिए भी खास है क्योंकि मुसलमानों की सबसे अहम किताब कुरान शरीफ इसी रात में अल्लाह की तरफ से नाजिल हुई.


इसलिए इस रात रोजेदार कुरान पाक की तिलावत करते हैं. इस रात को मुस्लिम जागकर तिलावते कुरान करते हैं. इसके साथ ही अल्लाह से अपने गुनाहों की तौबा करते हैं.


शब-ए-कद्र की रात को हजार महीनों की रात से अफजल बताया गया है. इस महीने की इबादत का सवाब (पुण्य) 83 साल 4 महीने की इबादत के बराबर होता है.


कुरआन के अनुसार वो रमजान की कोई भी रात हो सकती है. हदीस में लिखा हुआ कि यह रात आमतौर से 27वें रमजान और आखरी 10 दिन में मानी जाती है, जिसमें मुसलमान जागकर इबादत करते हैं.  


शब-ए-कद्र में क्या करते हैं

शब-ए-कद्र में इबादत करने का तरीका अलग-अलग होता है. खास बात ये है कि इस पूरे रात को जागकर इबादत करने की ताकीद (हिदायत) दी गई है.


इस रात कुरआन शरीफ की तिलावत, नफ्ल नमाज (सालातुलतस्बीह, तहज्जुद की नमाज) को पढ़ना चाहिए. साथ ही इस्लामिक दुआ की कसरत से तिलावत कर अपने गुनाहों की माफी मांगी जाती है.


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