Ramadan 2023, Last Ashra Importance: मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए माह-ए-रमजान (Ramadan 2023 Mahe Calendar) का महीना बहुत खास माना जाता है. इस साल 24 मार्च 2023 से रमजान महीने की शुरुआत हुई है और इसके बाद से ही रोजेदार रोजा रख रहे हैं.


रमजान में पूरे 29-30 दिनों का रोजा रखा जाता है. आज बुधवार 12 अप्रैल को माह-ए-रमजान के 20 रोजे पूरे हो जाएंगे और इसी के साथ रमजान का तीसरा अशरा (10 दिन की मुद्दत) शुरू हो जाएगा. बता दें कि अशरा अरबी शब्द है. रमजान का महीना तीन अशरों यानी भागों में बंटा है और 10-10 दिनों में हर अशरे को बांटा गया है-



तीन अशरों में बंटा है रमजान का महीना (Ramadan 2023 Mahe Calendar)



  • पहला अशरा रमजान के शुरुआत से लेकर 10 दिन का होता है. इसे ‘रहमत’ कहा जाता है. इसमें मुस्लिम समुदाय के लोग नेक काम करते हैं, दान देते हैं और सभी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करते हैं. इस दौरान नेक काम करने वाले बशिंदों पर अल्लाह रहमत फरमाते हैं.

  • दूसरा अशरा ‘मगफिरत’ यानी माफी का होता है. यह रमजान के 11वें रोजे से लेकर 20वें रोजे तक का होता है. इस दौरान लोग अल्लाह की इबादत करते हैं. माना जाता है इस दौरान इबादत करने से अल्ला अपने बशिंदों के गुनाहों को माफ कर देते हैं.

  • रमजान के तीसरे अशरे को महत्वपूर्ण माना गया है. यह रमजान के 21वें दिन से 29 या 30वें दिन तक का होता है. इसमें पुरुष और महिलाएं इतेकाफ करके बैठते हैं. इतेकाफ के दौरान पूरे 10 दिनों तक एक ही स्थान पर रहना होता है. वहीं खाना, सोना, नमाज पढ़ना आदि जैसे काम किए जाते हैं. वहीं कई पुरुष पूरे 10 दिनों तक मस्जिद में रहकर ही अल्लाह की इबादत करते हैं. रमजान के तीसरे अशरे को जहन्नुम से मुक्ति दिलाने वाला माना गया है.


रमजान का आखिरी 'अशरा' क्यों खास है ? (Mahe Ramzan 2023)


रमजान के 21वें रोजे से 29 या 30वें रोजे की रातें रमजान का आखिरी अशरा कहलाती हैं. ये वो रातें होती हैं, जिसमें लोग एक ही कमरे या स्थान में रहकर तमाम रात अल्लाह की इबादत (स्मरण) करते हैं, इसे इतेकाफ कहते हैं. तीसरे अशरे की रातों की इस्लाम में अज्र यानी पुण्य की रात माना गया है. इसे दोजख (नरक) से खलासी (निजात) पाने वाला रात माना जाता है. कुरआने-पाक के 7वें पारे (अध्याय) की सूरह उनाम की 64वीं आयत में पैगंबरे-इस्लाम हजरत मोहम्मद को आदेश फरमाया कि- 'आप (मुराद हजरत मोहम्मद से) कह दीजिए कि अल्लाह ही तुमको (दीगर लोगों) उनसे निजात देता है.'


इसका अर्थ यह है कि, केवल अल्लाह ही हर रंजो-गम और दोजख से लोगों को निजात दिला सकता है और अल्लाह तक पहुंचने और दोजख से निजात पाने का तरीका सब्र और सदाकत के साथ रखा गया रोजा और की गई इबादत है.


शब-ए-कदर की रातें (Sabekadar Ki Raat)
शब-ए-क़द्र रमज़ान के पाक महीने की एक शुभ रात है. मान्यता है कि इस रात पवित्र कुरान (Holy Quran) की आयतों का पृथ्वी पर जिब्रील जिबरील नाम के फरिशते के जरिए पैगम्बर मुहम्मद पर अवतरण (नाज़िल) होना शुरू हुआ था. माना जाता है कि इस रात खुदा ताअला नेक व जायज तमन्नाओं को पूरी फरमाता है. रमजान की विशेष नमाज तरावीह पढ़ाने वाले इसी शब में कुरआन मुकम्मल करते हैं, जो तरावीह की नमाज अदा करने वालों को सुनाया जाता है. इसके साथ घरों में कुरआन की तिलावत करने वाली मुस्लिम महिलाएं भी कुरआन मुकम्मल करती हैं.


शबे कद्र को रात इबादत के बाद रिश्तेदारों, अजीजो-अकारिब की कब्रों पर सुबह-सुबह फातिहा पढ़कर उनकी मगफिरत (मोक्ष) के लिए दुआएं करते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि शब-ए-कदर की रात में अल्लाह की इबादत करने वाले मोमिन के दर्जे बुलंद होते हैं. उनके गुनाह बक्श दिए जाते हैं. दोजख की आग से निजात मिलती है.


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