यह बात हमारे मानस में बार बार उतारी गई है कि जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु तो अटल सत्य है. कुछ मृत्यु को लेकर स्वीकृति का भाव अपनाते हैं, कुछ उसके बारे में सोचना नहीं चाहते, तो कुछ उसके आने की कल्पना से भी भयभीत हो जाते हैं. जो भी हो लेकिन जन्म लेने वाले की मृत्यु तो निश्चित ही है. जन्म लेने पर आनन्द छा जाता है तो मृत्यु अवसाद और दुख लाती है.


प्रत्येक संस्कृति और धर्म में मनुष्य की अंतिम क्रिया के अलग-अलग विधान हैं. हिन्दू धर्म के अनुसार किसी की मृत्यु के बाद जब मृत शरीर का दाह संस्कार कराने के लिए जब शमशान तक ले जाते हैं तब अक्सर 'राम नाम सत्य है' यह बोला जाता है. लेकिन यह क्यों और किस लिए बोला जाता है. आइये इसका शास्त्रीय प्रमाण ढूंढते हैं-


हम किसी की अंतिम यात्रा में 'राम नाम सत्य है' ऐसा उच्चारण क्यों करतें हैं?  शव को समशान ले जाते समय आप सभी ने सुना होगा कि लोग 'राम नाम सत्य है' का जाप करते हैं. लेकिन क्या इसका शास्त्र में कहीं वर्णन मिलता हैं? उत्तर है ‘हां’, हमारे तंत्रों में इसका वर्णन मिला है.


'रुद्रयामल तन्त्र’ में एक श्लोक है-
शिवे शिवे न संचारों भवत प्रेतस्य कस्यचित।
अतसिद्दाहपर्यंतम राम नाम जपो वरम।।


अर्थ : – मृत व्यक्ति के शव में कोई प्रेत आत्मा का प्रवेश ना हो, इसलिए अग्नि देने तक ‘राम’ नाम का उच्चारण करना चाहिए.


‘प्रेतसाधन-तन्त्र’ में भी कहा है-
'शवसाधनवेलायां रामनाम विवर्जयेत् ।'

अर्थ : – शवसाधन करने के समय ‘राम’ नाम नहीं लिया जाता है, क्योंकि इस नाम को सुनकर प्रेत, भूत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी, ब्रह्मराक्षस आदि भाग जाते हैं. निकृष्ट योनि जीव भाग जाते हैं, इसी कारण से लोग शव को ले जाते अथवा दाह करते समय 'राम नाम सत्य है' ऐसा बोलते हैं.  इसलिए विवाह आदि जैसे शुभ कार्यों में “राम नाम सत्य है” को अमंगल-सूचक माना जाता है. लेकिन वास्तव में राम-नाम सदा सत्य एवं पवित्र है, इसमें कोई भी सन्देह नहीं है. भगवान के नाम में जो कोई आक्षेप करेगा उसको अवश्य नरक की प्राप्ति होगी. 


आनंद रामायण के अनुसार : –
श्रीशब्धमाद्य जयशब्दमध्यंजयद्वेयेनापि पुनःप्रयुक्तम्। अनेनैव च मन्त्रेण जपः कार्यः सुमेधसा।


अर्थ: –बुद्धिमान लोग श्री राम जय राम जय जय राम मंत्र का जाप करतें हैं.


हम ऐसे समय यमराज जी की भी वंदना कर सकतें हैं. गरुड़ पुराण प्रेत कल्प अध्याय क्रमांक 4 के अनुसार, शव–यात्रा के समय पुत्रादिक परिजन तिल, कुश, घृत और ईंधन लेकर ‘यम–गाथा’ अथवा वेद के ‘यम–सूक्त' का पाठ करते हुए श्मशानभूमि की ओर जाएं. यम–सूक्त यजुर्वेद के पैतीसवें अध्याय में मिलेगा.


हमें वेदों में इसके कई मंत्र मिलेंगे, जब भी कभी किसी की मृत्यु का समाचार आता है उस समय भी हम “ॐ शांति शांति शांति” बोलते हैं. कई लोग तो आजकल पश्चिमी परंपरा से ग्रसित होने के कारण RIP बोलते हैं. हमारे वेद मंत्रों में ही वर्णन हैं कि मृत्यु का समाचार सुनने के पश्चात क्या बोलें. यजुर्वेद 40.14 के अनुसार : –


वा॒युरनि॑लम॒मृत॒मथे॒दं भस्मा॑न्त॒ꣳ शरी॑रम्। ओ३म् क्रतो॑ स्मर। क्लि॒बे स्म॑र। कृ॒तꣳ स्म॑र ।


अर्थ:- इस समय गमन करता हुआ प्राण वायु अमृत (अमरता) रूप वायु को प्राप्त हो. यह देह अग्नि में हुत होकर भस्म रूप हो. हे प्रणव रूप ॐ / ब्रह्म (ब्रह्म स्वरूप आत्मा) बाल्यावस्थादि मे किए कर्मों के स्मरण पूर्वक मैं लोकादि की कामना करता हूं. इसलिए सनातनी किसी कि मृत्यु की खबर सुनकर ॐ शान्ति शान्ति शान्ति बोलते हैं.


वेद मंत्र बोलना सबके बस की बात नहीं हैं इसलिए "राम नाम सत्य हैं" बोलना अधिक श्रेयस्कर है. क्योंकि राम तो सत्यस्वरूप, मर्यादा पुरुषोत्तम देवता ही हैं. उनके नाम से बढ़कर और क्या हो सकता है. उसके उच्चारण मात्र से ही हम भव सागर तर जाते हैं. तो मृत शरीर के दुर्गुणों को निरस्त करने के लिए राम नाम ही एक मात्र साधन है. उसका जाप हमें तो क्या समस्त वातावरण उससे पवित्र हो जाता है.


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