Power Of Silence Importance in Life: वाणी या बोलना ही नहीं बल्कि मौन में भी शक्ति होती है. यही कारण है कि धर्मों में ‘मौन’ को बहुत महत्व दिया गया है. वैज्ञानिकों द्वारा भी इस बात को माना गया है कि सेहत से मौन का गहरा संबंध है और इससे मानसिक शांति मिलती है.


मौन से विचारों में एकाग्रता आती है और रचनात्मकता बढ़ती है. इसलिए जितने भी साधु-संत या तपस्वी हुए सब ने मौन रहकर और ध्यान लगाकर ही संसार के गूढ़ ज्ञानों को प्राप्त किया.


दुखों का कारण है बोलना


हमारे जीवन में एक नहीं बल्कि बहुत सारे दुखों का कारण बोलना ही है. क्योंकि हमारी समस्या यही है कि हम चुप नहीं रह सकते. हमेशा कुछ न कुछ बोलते ही रहते हैं और आपके बोलने के कारण ही आधे से ज्यादा दुख निर्मित होते हैं. परिवार में कलह-क्लेश का कारण भी हमारा बोलना ही होता है.


आप जितनी भूख उतना भोजन खाते हैं, जितनी जरूरत उतना कार्य करते हैं, लेकिन क्या आपने इस बारे में कभी सोचा है कि आप कितना बोलते हैं. क्या आप उतना ही बोलते हैं जितनी आवश्यकता है या अनावश्यक ही सारे दिन बोलते हैं. इस बारे में कभी अकेले बैठकर जरूर सोचिए, कि आज आपने दिनभर में कितना बोला, क्या बोला और सबसे जरूर कि क्यों बोला. इनमें से कितनी बातें जरूरी थी और कितनी अनावश्यक.


सुनने-सुनाने के माहौल से निकलें बाहर


मनुष्य की प्रवृति ऐसी है कि वह अपने मन में चल रही बातों को दूसरों को सुनाना चाहता है और दूसरा भी आपके साथ ठीक वही काम करता है. ये बाते किसी अन्य या तीसरे व्यक्ति से संबंधित हो तो सुनने-सुनाने का काम और भी दिलचस्पी से होता है. आप फिर जब कभी भी बैठते हैं तो इन्हीं बातों को फिर से दोहराया जाएगा और फिर से इन्हीं बातों पर विचार करेंगे.


यह सुनने-सुनाने का माहौल जीवनभर चलता रहता है और इस तरह से आप खो देते हैं अपना समय, अपना जीवन, अपनी सोच-समझ और वो कीमती पल जिसमें जिया जा सकता है और जिसमें आनंद प्राप्त किया जा सकता है. इसलिए इस सुनने-सुनाने के माहौल से बाहर निकलें.


क्या है मौन की शक्ति


जब तक हम बाहर की ओर बोलते रहेंगे, हमारे भीतर अशांति रहेगी, जिस दिन हम मन से चुप हो जाएंगे तो तब बाहर हमारे मुख से कुछ भी निकले हम शांत ही रहेंगे. दुनिया में जितनी बुराईयां हैं, परिवार में क्लेश है, पति-पत्नी में विवाद है सब बोलने के कारण ही होते हैं. हम चुप रहना नहीं चाहते हैं, हमेशा सुना देना चाहते हैं. लेकिन व्यर्थ का बोलना ऊर्जा का नष्ट होना है.


इसलिए जितने भी बुद्धत्व, साधु और संत हुए वे एकांत की ओर गए, क्योंकि उन्हें अधिक बोलना न पड़े और अधिक सुनना न पड़े. महावीर ने 12 वर्ष और महात्मा बुद्ध ने 10 वर्ष मौन रहने के बाद ज्ञान प्राप्त किया. महर्षि रमण और चाणक्य भी मौन के उपासक थे. लेकिन आप इस संसार में रहकर भी एकांत रह सकते हैं. इसके लिए आपको अपनी उन ऊर्जाओं को बचाना होगा, जिसे आप व्यर्थ के शब्दों में नष्ट कर देते हैं. इसलिए उतना ही बोले, जितना जरूरी हो.


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