Pitru Paksha 2025: हिंदू धर्म की सबसे रहस्यमयी परंपराओं में से एक पितृपक्ष, इस बार एक अनोखे संयोग के साथ शुरू हो रहा है. 7 सितंबर 2025 को जब भाद्रपद पूर्णिमा पर पितृपक्ष का शुभारंभ होगा, उसी दिन वर्ष का दूसरा पूर्ण चंद्रग्रहण भी पड़ेगा. यानी जब पूर्वजों की आत्माएं धरती पर उतरेंगी, ठीक उसी समय चंद्रमा भी अपनी रहस्यमयी छाया में डूबा होगा.
ज्योतिषाचार्या एवं टैरो कार्ड रीडर नीतिका शर्मा बताती हैं कि यह संयोग बहुत दुर्लभ है और इसके गहरे ज्योतिषीय अर्थ हो सकते हैं, चाहे वो पूर्वजों की प्रसन्नता हो या कुछ और संकेत.
पितृपक्ष 2025: जानें क्यों इन 15 दिनों में ही खुलते हैं आत्मा के मोक्ष द्वार?
पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष कहा जाता है, पूर्णिमा से अमावस्या तक चलता है, इस वर्ष 7 से 21 सितंबर 2025 तक पितृ पक्ष रहने वाला है. मान्यता है कि इन 15 दिनों में पितृलोक के द्वार खुलते हैं और पूर्वज धरती पर आते हैं.
श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से उन्हें शांति मिलती है और हमें उनके आशीर्वाद का पुण्य. यदि इन कर्मों की उपेक्षा की जाए, तो कुंडली में 'पितृ दोष' बनता है, जिसके लक्षण हैं पारिवारिक कलह, अपशकुन, वैवाहिक बाधाएं और अनचाही परेशानियां.
7 सितंबर को पूर्ण चंद्रग्रहण: क्या होगा असर पितरों की ऊर्जा पर?
- ग्रहण शुरू: रात 9:57 बजे
- समाप्ति: 1:26 बजे (8 सितंबर की तड़के)
- सूतक आरंभ: दोपहर 12:57 बजे से
- स्थान: भारत सहित यूरोप, एशिया, अफ्रीका, अमेरिका, अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया
चंद्रग्रहण की छाया में जब पितर धरती पर होंगे, तब सूतक और ग्रहों की अशुभ चाल कई प्रकार के आध्यात्मिक और लौकिक संकेत दे सकती है.
दोपहर का समय क्यों पवित्र है पितरों के लिए?
ज्योतिषाचार्या नीतिका शर्मा बताती हैं 'जैसे देवी-देवताओं की आराधना प्रातःकाल और संध्या में की जाती है, वैसे ही पितरों की पूजा दोपहर में श्रेयस्कर मानी जाती है.'
- तर्पण और अर्पण का श्रेष्ठ समय: 12:00 से 1:30 दोपहर
- श्राद्ध कर्म से पहले स्नान और नित्यकर्म अवश्य करें
पितृपक्ष 2025 की श्राद्ध तिथियां (Pitru Paksha 2025 Date)
तिथि | श्राद्ध |
7 सितंबर | पूर्णिमा श्राद्ध (ग्रहण संयोग सहित) |
8 सितंबर | प्रतिपदा |
9 सितंबर | द्वितीया |
10 सितंबर | तृतीया व चतुर्थी |
11 सितंबर | पंचमी |
12 सितंबर | षष्ठी |
13 सितंबर | सप्तमी |
14 सितंबर | अष्टमी |
15 सितंबर | नवमी |
16 सितंबर | दशमी |
17 सितंबर | एकादशी |
18 सितंबर | द्वादशी |
19 सितंबर | त्रयोदशी |
20 सितंबर | चतुर्दशी |
21 सितंबर | सर्व पितृ अमावस्या (महत्वपूर्ण) |
22 सितंबर | मातामह श्राद्ध |
पितृ दोष के लक्षण और बचाव
- अचानक बीमारी या मृत्यु
- संतानहीनता या विवाह में बाधा
- पैतृक संपत्ति विवाद
उपाय: श्राद्ध, तर्पण, गाय-दान, तुलसी जल अर्पण, पवित्र मंत्र जाप
चंद्रग्रहण की छाया में पितृपक्ष, करें पूजा या बरतें सावधानी?
7 सितंबर का दिन केवल श्राद्ध का नहीं, बल्कि चेतावनी का भी दिन है. चंद्रग्रहण की छाया और पितृ लोक के आगमन का संयोग हमें गहराई से यह सोचने को मजबूर करता है कि क्या हम अपने पूर्वजों को सच्ची श्रद्धा से स्मरण करते हैं?
शास्त्र कहते हैं, 'राज्यं च नश्यति तत्र, भूमिजं भयमाददात्.' जहां पितरों का सम्मान नहीं होता, वहाँ राज्य भी संकट में पड़ते हैं.
FAQs
Q1. क्या पितृपक्ष में ग्रहण का प्रभाव श्राद्ध पर पड़ता है?
हां, विशेष रूप से जब ग्रहण पूर्ण हो और भारत में दिखाई दे, तब सूतक काल मान्य होता है और श्राद्ध कर्मों को दिन के समय में करने की सलाह दी जाती है.
Q2. पितृ दोष कैसे दूर करें?
श्राद्ध, तर्पण, गौ दान, ब्राह्मण भोजन, तुलसी अर्पण, और ‘ॐ नमः भगवते वासुदेवाय नमः’ का जप करने से लाभ मिलता है.
Q3. क्या ग्रहण वाले दिन तर्पण करना अशुभ है?
नहीं, लेकिन इसे सूतक काल से पहले करें. दोपहर में तर्पण और श्राद्ध अधिक फलदायक माने जाते हैं.
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