Pitru Paksha 2023: 29 सितंबर से 14 अक्टूबर 2023 तक श्राद्ध पक्ष या पितृपक्ष है. श्राद्ध के इन 16 दिन में हमारे पितृ पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं. इन दिनों में पितरों को पिंड दान तथा तिलांजलि कर उन्हें संतुष्ट करना चाहिए. लेकिन जिन व्यक्तियों को रूपये-पैसों या फिर समय का अभाव रहता है उन्हें भी श्राद्ध कर्म करना अनिवार्य होता हैं, क्योंकि सभी पितर इस समय की प्रतीक्षा करते है और यदि हम श्राद्ध कर्म आदि सम्पन्न नहीं करते है तो वह हम से नाराज होकर चले जाते है.


इस दृष्टि से शास्त्रों ने धन के अनुपात में कुछ व्यवस्थाएं की है. आइये जानते हैं इसके बारे में.



  • धन के अभाव में ऐसे कर सकते हैं श्राद्ध: यदि अन्न खरीदने में पैसे का अभाव हो तो उस परिस्थिति में शाक अर्थात् फल व सब्जियों द्वारा श्राद्ध कर देना चाहिए. यदि फल व सब्जियां खरीदने के लिए भी पैसे न हो तो त्रण काष्ठ  यानी लकडियां आदि को बेचकर पैसा इकत्र करें और उन पैसों से शाक खरीद कर श्राद्ध कर्म करें. यदि किसी भी तरह की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ न हो तो ऐसी परिस्थिति में शास्त्रों में बताया है कि घास से श्राद्ध हो सकता है. यानी घास काट कर गाय को खिला दें. तो भी श्राद्ध जैसा पुण्य फल प्राप्त होता है.  इसलिए जरूरत है तो सिर्फ श्रद्धा व भावना की. 

  • समय का अभाव हो तो कैसे करें श्राद्ध: आपके पास समय नहीं है तो आप शुद्ध भावना से पितरों का स्मरण करें व गाय को घास खिला दें. हालांकि श्राद्ध करना तो पूर्ण विधि-विधान से ही चाहिए लेकिन आप समय और धन के कारण नहीं कर पा रहे हैं तो इतना अवश्य ही करें. सूर्यास्त के समय घर के परिण्डे़ यानी जहां पीने का पानी रखते हैं वहां श्रद्धा के साथ घी का दीपक जलाएं और अपने पितरों का स्मरण कर उन्हें नमन करें. इसीलिए कहते हैं श्रद्धापूर्वक किया गया कर्म ही श्राद्ध है. तो अधिक धन की जरूरत है, न समय की.


पितृपक्ष में श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करने से पूर्वजों का उद्धार होता है. पितृ दोष से मुक्ति और पितृ शांति मिलती है.शास्त्रों में इसे पितरों के कल्याण का सबसे सरल उपाय बताया गया है. जन्म के साथ ही मनुष्य पर देव, गुरु पितृ ऋण होते हैं. गुरु के बताए रास्ते का पालन करके गुरु ऋण, देवताओं की पूजा करके देव ऋण तथा पूर्वजों का तर्पण श्राद्ध, पिंडदान करके पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है.  गीता का वो ज्ञान जो भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में दिया था. इस गीता का 7वां अध्याय पितृ मुक्ति और मोक्ष से जुड़ा है. श्राद्ध पक्ष में गीता के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए. इस अध्याय का पाठ श्राद्ध में जितना हो सके, उतना करने का प्रयास करें. इससे पितरों को तृप्ति मिलेगी और पितृ दोष से मुक्ति मिलेगी.


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