नवरात्र यानि देवी दुर्गा को समर्पित नौ रातें….जिनमें पहली रात यानि पहला दिन होता है माता शैलपुत्री का. जी हां...नवरात्रि के पहले दिन मां के इसी स्वरूप की विधि विधान से पूजा की जाती है. मार्केण्डय पुराण के मुताबिक इन देवी का जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ था और इसी के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा. आइए जानते हैं मां की महिमा के बारे में.

माता पार्वती का स्वरूप हैं मां शैलपुत्री

पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती...नवरात्रि में इन्हीं देवियों के स्वरूपोंं की पूजा का विधान है. शुरुआत के तीन दिन पार्वती के स्वरूपों की ही पूजा की जाती है. जिनमें सबसे पहले दिन होती है माता शैलपुत्री की पूजा.

शैलपुत्री माता की कथा

कहते हैं एक बार राजा दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया. जिसमें उन्होंने भगवान शिव और उनके परिवार को  को आमंत्रित नहीं किया गया. जब यह बात राजा दक्ष की बेटी व भगवान शिव की पत्नी सती ने सुनी तो उनका मन उस यज्ञ में जाने का हुआ. शिव शंकर ने उन्हें काफी समझाया और जाने से मना किया लेकिन फिर भी वो उस यज्ञ में पहुच गईं. जब सती उस यज्ञ में पहुंची तो उनका सभी ने अनादर किया यहां तक कि राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान भी किया. यह सब सती सह ना सकी और जलते कुंड में कूद गई. जब भगवान शिव को इसकी जानकारी मिली तो भयंकर संहार हुआ. कहा जाता है कि सती अपने अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं. इसीलिए वो 'शैलपुत्री' के नाम से जानी गईं. साथ ही उन्हें हैमवती के नाम से भी जाना जाता है. 

ऐसा है इन देवी का स्वरूप

शैलपुत्री माता का स्वरूप बेहद ही सौम्य है. जो सदैव बैल पर विराजमान होती हैं. यही कारण है कि इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है. इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। पिछले जन्म की तरह ही इन देवी का विवाह भी शंकरजी के साथ ही हुआ था.

वाराणसी मे है शैलपुत्री माता का भव्य मंदिर 

शैलपुत्री माता का निवास वाराणसी में ही माना जाता है. यहां एक प्राचीन और भव्य मंदिर भी मौजूद है. जहां मां के दर्शनों का विशेष लाभ भी मिलता है. कहते हैं नवरात्रि के पहले दिन मंदिर में मां के दर्शन किए जाए तो तमाम तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं. वहीं विधि विधान से इन देवी की पूजा करनी चाहिए व मां के मंत्र का जाप 11 बार अवश्य करें.