New Year 2023, Ravidas Ke Dohe: संत रविदास ने अपने लेखन के जरिए कई प्रकार के आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिए, जिससे जीवन में प्रेरणा मिलती है. नए साल में आप भी संत रविवार के दोहे के जरिए दी गई सीख को अपने जीवन में अपनाएंगे तो तमाम मुश्किलों से दूर रहेंगे और जीवन के असली मतलब को समझ पाएंगे.


संत रविदास ने लोगों को संदेश दिया कि ईश्वर ने इंसान को बनाया है ना कि इंसान ने ईश्वर को बनाया. इस धरती की मौजूद हर एक चीज ईश्वर की देन है, जिसपर सभी का एक समान अधिकार है. संत गुरु रविदास जी ने इन्हीं संदेशों के जरिए वैश्विक भाईचारा औ सहिष्णुता का ज्ञान लोगों को दिया. जानते हैं रविदास जी के दोहे के जरिए कुछ ऐसे ही संदेशों और ज्ञान के बारे में.


ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण


अर्थ है: किसी व्यक्ति को केवल इसलिए नहीं पूजना चाहिए क्योंकि उसका जन्म ऊंचे कुल में हुआ है. यदि व्यक्ति गुणहीन है तो फिर चाहे वह किसी भी जाति का हो उसे नहीं पूजना चाहिए. वहीं उसकी जगह यदि कोई व्यक्ति गुणवान है तो उसका सम्मान जरूर करें, भले ही किसी भी जाति से हो. रविदास अपने इस दोहे के जरिए कहते हैं किसी व्यक्ति को उसके गुण पूजनीय बनाते हैं न कि जाति. 


कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै


अर्थ है: ईश्वर की भक्ति भाग्य से मिलती है. जिस व्यक्ति में तनिक भी अभिमान नहीं है वह जीवन में निश्चित ही सफल होता है. ठीक वैसे ही जैसे एक विशाल शरीर वाले हाथी शक्कर के दानों को नहीं बीन सकता, लेकिन एक छोटी सी चींटी शक्कर के दानों को आसानी से बीन लेती है.


जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बास
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास


अर्थ है: जिस रविदास को देखने से लोगों को घृणा आती थी, जिसके रहने का स्थान नर्क-कुंड के समान था, ऐसे रविदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना, ऐसा ही है जैसे मनुष्य के रूप में दोबारा उत्पत्ति हुई हो.


मन चंगा तो कठौती में गंगा


अर्थ है: जिस व्यक्ति का मन पवित्र और शुद्ध होता है  उसके द्वारा किया हर कार्य मां गंगा की तरह पवित्र होता है.


जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात


अर्थ है: जिस तरह केले के तने को छिला जाये तो पत्ते के नीचे पत्ता फिर पत्ते के नीचे पत्ता और आखिर में कुछ भी नहीं निकलता है और इस तरह से पूरा पेड़ ही खत्म हो जाता है. ठीक इसी तरह इंसानों को भी जातियों में बांट दिया गया है. अगर जातियों के विभाजन से इंसान को अलग अलग किया जाए तो केले के पत्ते की तरह इंसान भी खत्म हो जाते है, लेकिन यह जाति खत्म नहीं होती है. रविदास कहते हैं जब तक जाति खत्म नही होंगी तब तक इंसान एक-दूजे से जुड़ नही सकते.


हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास


अर्थ है: हीरे से बहुमूल्य हरी यानि कि भगवान हैं. उनको छोड़कर अन्य चीजों की आशा करने वालों को निश्चिक ही नर्क प्राप्त होता है.  इसलिए प्रभु की भक्ति को छोडकर इधर-उधर भटकना व्यर्थ है.


मन ही पूजा मन ही धूप,
मन ही सेऊं सहज स्वरूप


अर्थ है: पवित्र मन में ईश्वर वास करते हैं  यदि उस मन में किसी के प्रति बैर-भाव नहीं है, लालच या द्वेष नहीं है तो ऐसे मन को भगवान का मंदिर कहा जाता है.


कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा


अर्थ है: राम, कृष्ण, हरि, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही ईश्वर के अलग-अलग नाम हैं. वेद, कुरान, पुराण सभी ग्रंथ एक ही ईश्वर का गुणगान करते हैं और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ पढ़ाते हैं.


ये भी पढ़ें: Mahabodhi Temple: बोधगया को क्यों कहते हैं ज्ञान की नगरी, जानें महाबोधि मंदिर के बारे में