Motivational Quotes, Chaupai, ramcharitmanas :  तुलसीदास जी बालकांड में सभी की वंदना की है. संत, असंत, खल, आदि के साथ ही अवध, श्रीराम जी के पिता श्री दशरथ जी की वंदना करते हैं. श्रीराम की कृपा पाने के लिए प्रार्थना करते हैं.  


दउँ अवध पुरी अति पावनि। 
सरजू सरि कलि कलुष नसावनि।। 
प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी। 
ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी ।। 


तुलसी दास जी कहते हैं कि मैं अति पवित्र श्रीअयोध्यापुरी और कलियुग के पापों का नाश करने वाली श्रीसरयू नदी की वन्दना करता हूँ. फिर अवधपुरी के उन नर नारियों को प्रणाम करता हूँ जिन पर प्रभु श्री रामचन्द्र जी की ममता बहुत है.  


सिय निंदक अघ ओघ नसाए। 
लोक बिसोक बनाइ बसाए।। 
बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची। 
कीरति जासु सकल जग माची।। 


उन्होंने सीता जी की निन्दा करने वाले धोबी और उसके समर्थक के पाप को नाश कर उनको शोक रहित बनाकर अपने लोक में बसा दिया.  मैं कौसल्या रूपी पूर्व दिशा की वन्दना करता हूँ, जिसकी कीर्ति समस्त संसार में फैल रही है. 


प्रगटेउ जहँ रघुपति ससि चारू।
बिस्व सुखद खल कमल तुसारू।।
दसरथ राउ सहित सब रानी।
सुकृत सुमंगल मूरति मानी।। 
करउँ प्रनाम करम मन बानी। 
करहु कृपा सुत सेवक जानी।। 
जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता।
महिमा अवधि राम पितु माता।।


जहाँ कौसल्या रूपी पूर्व दिशा  से विश्व को सुख देने वाले और दुष्ट रूपी कमलों के लिये पाले के समान श्रीरामचन्द्र जी रूपी सुन्दर चन्द्रमा प्रकट हुए। सब रानियों सहित राजा दशरथ जी को पुण्य और सुन्दर कल्याण की मूर्ति मानकर मैं मन, वचन और कर्म से प्रणाम करता हूँ। अपने पुत्र का सेवक जानकर वे मुझ पर कृपा करें, जिनको रचकर ब्रह्मा जी ने भी बड़ाई पायी तथा जो श्रीराम जी के माता और पिता होने के कारण महिमा की सीमा हैं.


सो०… 


बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद ⁠। 
बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ ⁠।⁠।  


मैं अवध के राजा श्रीदशरथ जी की  वन्दना करता हूँ, जिनका श्री रामजी के चरणों में सच्चा प्रेम था, जिन्होंने दीनदयालु प्रभु के बिछुड़ते ही अपने प्यारे शरीर को मामूली तिनके की तरह त्याग दिया.


भनिति मोरि सिव कृपां बिभाती, कपट हटाकर हित करने वाली होती है रामचरितमानस


सो न होइ बिनु बिमल मति मोहि मति बल अति थोर, शत्रु भी वैर छोड़कर सुनते है रामचरित का गुणगान