Meera Bai Jayanti 2023: मीराबाई को श्रीकृष्ण की सबसे खास भक्त माना गया है. वो वैष्णव भक्ति आंदोलन के सबसे लोकप्रिय संतों में से एक थीं. मीराबाई के जन्म का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है लेकिन मान्यता अनुसार मीराबाई की जयंती शरद पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है.


मीराबाई ने अपना पूरा जीवन कृष्ण की भक्ति में व्यतीत किया. मीराबाई के जीवन से जुड़ी कई बातों को आज भी रहस्य माना जाता है.आइए जानते हैं इस साल मीराबाई जयंती की डेट, उनका जीवन परिचय, इतिहास और उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें.


मीराबाई जयंती 2023 डेट (Meera Bai Jayanti 2023 Date)


मीराबाई जयंती 28 अक्टूबर 2023 को मनाई जाएगी. इस दिन वैष्णव संप्रदाय के लोग मीरा की लिखी कविताओं और छंदों का वाचन कर उन्हें याद करते हैं. मीरा बाई को वैष्णव भक्ति आन्दोलन के श्रेष्ठतम सन्तों की श्रेणी में सम्मिलित किया जाता है.


कौन थीं मीराबाई ? (Meera Bai Biography)


मीराबाई एक राजपूत राजकुमारी थीं जिनका जन्म 1498 के आसपास मेढ़ता के पास कुडकी गाँव, राजस्थान में हुआ था. इनके पिता का नाम रत्न सिंह था, जो कि एक छोटे से राजपूत रियासत के राजा थे। मीरा जी जब बहुत छोटी थी, तभी उनकी माता का देहांत हो गया उसके बाद मीरा की परवरिश उनके दादा राव दूदा जी ने की.


कैसे बनी मीरा बनी श्रीकृष्ण की दीवानी (Meera Bai and Krishna Story)


मीराबाई बचपन से ही कृष्ण-भक्ति रम गईं थी. कहते हैं एक घटना के बाद वह श्रीकृष्ण को अपना पति मानन लगी थी. बाल्यकाल में एक दिन उनके पड़ोस में किसी धनवान व्यक्ति के यहां बारात आई थी, सभी स्त्रियां छत से बारात देख रही थीं. मीराबाई भी बारात देखने के लिए छत पर आ गईं. बारात को देख मीरा ने अपनी माता से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है इस पर मीराबाई की माता ने उपहास में ही भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की तरफ़ इशारा करते हुए कह दिया कि यही तुम्हारे वर है. यह बात मीराबाई के बालमन में समा गई और वे कृष्ण को ही अपना पति समझने लगीं.


पति की मृत्यु के बाद बनीं कृष्ण की जोगन (Meera Bai Marriage)


बाल्यकाल से लेकर मृत्यु तक मीरा ने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना. यही वजह है कि वह शादी भी नहीं करना चाहती थी लेकिन नकी इच्छा के विरुद्ध राजकुमार भोजराज के साथ उनका विवाह कर दिया गया. विवाह के कुछ सालों बाद ही एक युद्ध के दौरान मीराबाई के पति भोजराज की मृत्यु हो गई। पति की मौत के बाद श्रीकृष्ण की जोगन बन गई. कहते हैं मीरा कृष्ण भक्ति में इस कदर लीन थी कि वह मंदिर में कान्हा की मूर्ति के आगे घंटों नाचती थीं.


नाकाम हुई मीरा को मारने की साजिश


मीरा कृष्ण को अपना स्वामी मानती थी इसलिए कहते हैं कि पति की मृत्यु के बाद भी उन्होंने अपना श्रृंगार नहीं उतारा, हालांकि मीरा की कान्हा के प्रति बढ़ती भक्ति उनके ससुराल वालों को खटकने लगी. इसी कारण कई बार मीरा को मारने का प्रयास किया गया है लेकिन कृष्ण कृपा से वह हर बार बच गईं.  कुछ समय बाद मीराबाई संतों के रूप में रहकर कृष्ण भक्ति करने लगीं. मशहूर संत होने के साथ-साथ  वहएक हिन्दू आध्यात्मिक कवियित्री भी थी.


रहस्यमयी है मीराबाई का अंत (Meera Bai Death)


कहते हैं कि जीवनभर मीराबाई की भक्ति करने के कारण उनकी मृत्यु श्रीकृष्ण की भक्ति करते हुए ही हुई थीं. मान्यताओं के अनुसार वर्ष 1547 में द्वारका में वो कृष्ण भक्ति करते-करते श्रीकृष्ण की मूर्ति में समां गईं थी.


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