राम जैसा आदर्श व्यक्ति कलयुग में मिलना बहुत ही कठिन है. राम जैसे पति की कामना तो लगभग सभी स्त्रियां करती हैं परंतु उनको इस बात पर भी विचार करना होगा कि राम के लिए सीता बनना भी आवश्यक है. राम जी ने एक पत्नीव्रत धर्म का प्रच्वलन शुरु किया था, उन्होंने उद्धरण दिया और एक पत्नी रखने का आदर्श स्थापित किया.


राम जी ने सीता जी को ये वचन दिया था कि “मैं तुम्हरे अलावा किसी और नारी का चिंतन नहीं करूंगा”. वाल्मिक रामायण अरण्य कांड 18.2 में भगवान राम, शूर्पनाखा का विवाह प्रस्ताव ठुकराते हुए कहते हैं:–


"कृतदारोऽस्मि भवति भार्येयं दयिता मम। त्वद्विधानां तु नारीणां सुदुःखा ससपत्नता॥"


अर्थ:– देवी! मैं विवाह कर चुका हूं, यह मेरी पत्नी विद्यमान हैं (एक पत्नी व्रत धर्म से बंधा हूं.), तुमको सौत रखना भी उचित नहीं होगा.


राम जी सीता जी को इतना मानते थे कि अश्वमेध यज्ञ के लिए पत्नी का बैठना अनिवार्य होता है और माता सीता उस समय वन में थी. उनके पास दूसरी शादी करने का पर्याय था लेकिन उन्होंने नहीं किया. उन्होंने सीता जी की स्वर्ण प्रतिमा बनाकर और उसे बाजू मे रखकर यज्ञ किया. यह बात वाल्मीकि रामायण उत्तर काण्ड 19.7-8 में वर्णित हैं:–


न सीतायाः परां भार्या वने स रघुनन्दनः। यज्ञे.यज्ञे च पल्यर्थं जानकी काञ्चनीभवत्॥8॥


अर्थ:– यज्ञ पूरा करके रघुकुलनन्दन राजा श्री राम अपने दोनों पुत्रों के साथ रहने लगे. उन्होंने सीता के सिवा दूसरी किसी स्त्री से विवाह नहीं किया. प्रत्येक यज्ञ में जब-जब धर्मपत्नी की आवश्यकता होती, श्रीरघुनाथ जी सीता की स्वर्णमयी प्रतिमा बनवा लिया करते थे.


राम जी अपनी पत्नी पर कभी संदेह नहीं करते थे. यह बात वाल्मीकि रामायण लंका काण्ड 118.20 में भी वर्णित हैं: –


विशुद्धा त्रिषु लोकेषु मैथिली जनकात्मजा।
न विहातुं मया शक्या कीर्तिरात्मवता यथा ।


अर्थ:– सीता तीनों लोकों में परम पवित्र है. जैसे मनस्वी पुरुष कीर्ति का त्याग नहीं कर सकता, उसी तरह मैं भी इन्हें नहीं छोड़ सकता.


राम जी का सीता जी पर प्रेम करना भी किसी से छुपा नहीं है. वाल्मीकि रामायण अरण्य काण्ड 10.22 अनुसार, राम जी माता सीता को कहते हैं "सीता! तुम मेरी सहधर्मिणी हो और प्राणों से भी प्रिय हो".


वाल्मीकि रामायण अरण्य काण्ड 19.16-21 जब शूर्पनखा क्रोध में भरकर सीता को खाने दौड़ी तब श्री राम ने लक्ष्मण को आदेशित किया, देखते–देखते लक्ष्मण ने तलवार खींच कर शूर्पनखा के नाक और कान काट दिये. इससे स्पष्ट होता है कि अपनी पत्नी के विरुद्ध कोई भी षडयंत्र वह नहीं सहन कर सके.


रामचरितमानस (अरण्य काण्ड) अनुसार, एक बार देवराज इन्द्र का मूर्ख पुत्र जयन्त कौए का रूप धरकर श्रीरघुनाथजी का बल देखना चाहता था. जैसे महान मन्दबुद्धि चींटी समुद्र का थाह पाना चाहती हो. वह मूढ़, मन्दबुद्धि कारण से (भगवान के बल की परीक्षा करने के लिये) बना हुआ कौआ सीताजी के चरणों में चोंच मार कर भागा. जब रक्त बह चला, तब श्रीरघुनाथजी ने जाना और धनुष पर सींक (सरकंडे) का बाण सन्धान किया. श्रीरघुनाथ जी को जो अत्यन्त ही कृपालु थे और जिनका दीनों पर सदा प्रेम रहता है, उनसे भी उस अवगुणों के घर मूर्ख जयन्त ने आकर छल किया था.


मन्त्र से प्रेरित होकर वह ब्रह्मबाण दौड़ा. कौआ भयभीत होकर भाग चला. वह अपना असली रूप धरकर पिता इन्द्र के पास गया, पर श्रीरामजी का विरोधी जानकर इन्द्र ने उसको नहीं रखा. तब वह निराश हो गया, उसके मन में भय उत्पन्न हो गया; जैसे दुर्वासा ऋषि को चक्र से भय हुआ था. वह ब्रह्मलोक, शिवलोक आदि समस्त लोकों में थका हुआ और भय शोक से व्याकुल होकर भागता फिरा. किसी ने उसे बैठने तक के लिये नहीं कहा. श्रीरामजी के द्रोही को कौन रख सकता है? उसके लिये माता मृत्यु के समान, पिता यमराज के समान और अमृत विष के समान हो जाता है.


नारदजी ने जयन्त को व्याकुल देखा तो उन्हें दया आ गयी; क्योंकि संतों का चित्त बड़ा कोमल होता है. उन्होंने उसे समझाकर तुरंत श्रीरामजी के पास भेज दिया. उसने कहा- हे शरणागत के हितकारी! मेरी रक्षा कीजिये. आतुर और भयभीत जयन्त ने जाकर श्रीरामजी के चरण पकड़ लिये और कहा हे दयालु रघुनाथजी! रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये. आपके अतुलित बल और आपकी अतुलित प्रभुता (सामर्थ्य) को मैं मन्दबुद्धि जान नहीं पाया था. बाद में भगवान राम ने क्षमा कर दिया. लेकिन आप स्वयं सोचिए सीता जी के एक घाव आने से प्रभु ने जयन्त (इंद्र पुत्र) तक को नहीं छोड़ा. इससे स्पष्ट है कि माता सीता से वह कितना प्रेम करते थे कि जरा सी चोट पे राम जी ने धनुष पर सींक (सरकंडे) का बाण सन्धान कर लिया जयन्त से लड़ने के लिए.


वाल्मिकी रामायण अयोध्या काण्ड 55.15 अनुसार, वनवास के समय जब यमुना पार करनी थी तब लक्ष्मण जी ने श्री राम के आज्ञा अनुसार सीता जी के लिए एक सुखद आसान तैयार किया लकड़ी की नाव (बेड़ा) पर. आप स्वयं सोचिए राम जी चाहते तो वह उच्च आसान अपने लिए बनाते लेकिन उन्होंने सीता जी को अग्रता दी, इसलिए वह उच्च आसान सीता जी को दिया.


वाल्मिकी रामायण अयोध्या काण्ड 37.23 (न गन्तव्यं वनं देव्या सीतया शीलवर्जिते। अनुष्ठास्यति रामस्य सीता प्रकृतमासनम्।।) अनुसार, जब भगवान राम वनवास के लिए प्रस्थान करते हैं उस समय वशिष्ट जी कहते हैं, राम के ना रहने पर सीता ही राज मुकुट और राज गद्दी को संभालेगी. इससे स्पष्ट होता हैं कि उस समय स्त्री भी शासन करती थी और राम जी ने भी इसका विरोध भी नहीं किया.


इन सब शास्त्रीय प्रमाणों से प्रमाणित होता हैं कि राम एक आदर्श पति थे.


ये भी पढ़ें: कहानी रामजन्म भूमि अयोध्या की: शास्त्रों में वर्णित है राम जन्मभूमि क्षेत्र का प्रमाण



[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]