गजलक्ष्मी का पूजन राजयोग पाने के लिए किया जाता है. गजलक्ष्मी के पूजन से जीवन में मान सम्मान मिलता है. गज को वर्षा करने वाले मेघों और उर्वरता का भी प्रतीक माना जाता है. गज की सवारी करने के कारण यह उर्वरता और समृद्धि की देवी भी हैं. गज लक्ष्मी देवी को राजलक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इन्हीं की कृपा से राजाओं को धन, वैभव और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है.


गजलक्ष्मी ही महालक्ष्मी कहलाती हैं. महालक्ष्मी व्रत के दिन श्रीयंत्र या महालक्ष्मी यंत्र को मां लक्ष्मी के सामने स्थापित करें और इसकी पूजा करें. यह चमत्कारी यंत्र धन वृद्धि के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है. इस यंत्र की पूजा से परेशानियां और दरिद्रता दूर होती है. महालक्ष्मी व्रत में दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल और दूध डालकर देवी लक्ष्मी की मूर्ति से अभिषेक करना चाहिए. इससे मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है. गजलक्ष्मी की विशेष पूजा पितृपक्ष में अष्टमी को की जाती है.


मां गज लक्ष्मी का स्वरूप
गजलक्ष्मी का स्वरूप चार भुजाधारी माना जाता है. हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार गज यानी हाथी पर आठ कमल की पत्तियों के समान आकार वाले सिंहासन पर विराजित होती है. इनके दोनों ओर भी हाथी खड़े होते हैं. चार हाथों में कमल का फूल, अमृत कलश, बेल और शंख होता हैं. इनकी उपासना संपत्ति और संतान देने वाली मानी गई है.


गज लक्ष्मी व्रत पूजन विधि
इस दिन पूजा स्थल पर हल्दी से कमल बनाकर उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें और मूर्ति के सामने श्रीयंत्र, सोने-चांदी के सिक्के और फल फूल रखें. इसके बाद माता लक्ष्मी के आठ रूपों की मंत्रों के साथ कुमकुम, चावल और फूल चढ़ाते हुए पूजा करें. महालक्ष्मी व्रत में मां लक्ष्मी की हाथी पर बैठी हुई मूर्ति को लाल कपड़े पर रखकर विधि-विधान के साथ स्थापना करें. पूजा कर मां का ध्यान करें.