Dwarka History: महाभारत का युद्ध बेहद विनाशकारी था. महाभारत के युद्ध से होने वाली विनाशलीला को महात्मा विदुर बहुत पूर्व में ही जान चुके थे. इसीलिए विदुर पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने महाभारत के युद्ध का विरोध किया था. महाभारत के युद्ध को लेकर विदुर ने धृतराष्ट्र से कहा भी था कि यह युद्ध अबतक के सबसे विनाशकारी युद्धों में से एक होगा. लेकिन पुत्र मोह और दुर्योधन की महत्वाकाक्षाओं के आगे धृतराष्ट्र चाहकर भी कुछ न कर सके और महाभारत का युद्ध टाला न जा सका.


महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक लड़ा गया. इस युद्ध में दुर्योधन के साथ कौरव वंश का नाश हो गया. महाभारत के युद्ध में धृतराष्ट्र और गांधारी के 100 पुत्र मारे गए. युद्ध समाप्त होने के बाद जब गांधारी अपने सभी मारे गए पुत्रों के शोक में डूब गईं. भगवान श्रीकृष्ण जब गांधारी को सांत्वना देने के लिए महल पहुंचे, तो गांधारी को क्रोध आ गया. गांधारी को ऐसा लगता था कि इस सब के पीछे श्रीकृष्ण का ही हाथ है. क्रोध के कारण भगवान श्रीकृष्ण गांधारी ने ऐसा शाप दिया जिसके चलते भगवान श्रीकृष्ण का वंश भी समाप्त हो गया.


गांधारी का ये था शाप
पुत्रों के शवों के पास रोते हुए गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को शाप दिया कि श्रीकृष्ण जिस तरह से मेरे वंश का नाश हुआ है उसी प्रकार से तुम्हारा वंश भी आपस में लड़ते हुए नष्ट हो जाएगा. इस पर श्रीकृष्ण ने कोई विरोध नहीं किया और बड़ी ही विनम्रता से कहा कि मैं आपकी पीड़ा को समझता हूं. यदि मेरे वंश के नष्ट होने से आपको शांति मिलती है तो आपका शाप पूर्ण होगा.


शाप के कारण डूब गई
महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण द्वारिका आकर रहने लगे. द्वारिका को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था. लेकिन 36 वर्ष वाद गांधारी के श्राप का असर आरंभ हो गया. शाप के कारण द्वारिका में अपशकुन शुरू हो गए. एक दिन द्वारिका में कुछ ऋषि मुनि आए जिनका यदुवंशी बालकों ने अपमान कर दिया. इसके बाद शाप का प्रभाव और तेजी से बढ़ने लगा. एक दिन सभी ने एक ऐसा पेय पदार्थ पी लिया जिससे वे आपस में एक दूसरे को मारने लगे. इस घटना में भगवान श्रीकृष्ण और कुछ अन्य लोग ही जीवित बच सके. एक अन्य कथा के अनुसार एक गृहयुद्ध में सभी यादव प्रमुखों की मृत्यु हो गई. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारिका छोड़ दी. भगवान श्रीकृष्ण समझ गए कि शाप को पूरा करने का समय आ गया है और एक शिकारी का तीर लगने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी देह त्याग दी. इसके बाद द्वारिका भी सागर में डूबी गई.


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