हर व्यक्ति सफल होना चाहता है. समाज और देश लोगों को समान अवसर देते हैं. इसके बावजूद कुछ लोग बहुत सफल होते हैं. अधिकतर संघर्ष करते नजर आते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि व्यक्ति स्वयं की खूबियों पर फोकस न करके इच्छाओं पर ध्यान देता है. वह स्वयं के लिए बहुत कुछ पाना चाहता है. वह यह जानने में कम ही समय देता है कि उसके पास ऐसा क्या है जो वह समाज और देश को दे सके. सच्चाई यही है कि जो देता है-वही पाता है.



सही मायने में सफलता समाज को दिए गए योगदान का उपोत्पाद होती है. सेवा, उद्यम और व्यापार में व्यक्ति सफल तभी होता है जब उससे लोग लाभान्वित होते हैं. जब एक वस्तु की उपयोगिता इस बात पर निर्भर करती है कि वह लोगों को क्या दे रहा है तो एक व्यक्ति की सफलता यह कैसे हो सकती है कि उसे समाज से क्या मिल रहा है?

ध्यान रहे, पाने वाले से देने वाला महान होता है. हमें देने के लिए सर्वप्रथम यह जानना होगा कि हमारे पास ऐसा क्या है जो दिया जा सकता है. कौन से गुण हैं. कलाएं हैं. योग्यता क्षमताएं हैं. शिक्षा हैं. अनुभव है. इन्हीं को पहचानकर समाज हित में लगाना ही सफलता है.

उदाहरण के तौर पर पूरी दुनिया के पुरातात्विक महत्व की इमारतें उन योग्य लोगों की खूबियों की परिचायक हैं जिन्होंने श्रम सेवा और कौशल से इन्हें गढ़ा है. वे आज न भी हों ,उनके हस्ताक्षर इन इमारतों की हर ईंट में हैं वे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष याद किए जाते हैं.

अभिरुचि और क्षमताएं हर व्यक्ति की अलग होती हैं. इस भिन्नता से ही देश और समाज में असंख्य रंग हैं. इन रंगों को परिस्कृत करने के लिए ही देश और समाज लोगों को समान अवसर देते हैं. हमें देने के लिए तैयार होना है. स्वयं को जानना है. जानते ही जुट जाने में देर नहीं लगती है.