सफल लोग कभी अवसरों की कमी का रोना नहीं रोते हैं. उनके अनुसार हमेशा अवसर होते हैं, अगर आप अपने क्षेत्र के माहिर हैं तो आप अपने क्षेत्र के अवसरों को पहचान सकते हैं. फिर अपनी युक्ति लगा कर उसका लाभ लेकर सफल हो सकते हैं. इसीलिए कहा जाता है कि कमी अवसरों की नहीं बल्कि पहचानने वालों की होती है.


एक कहानी से इसको समझा जा सकता है. दरअसल, एक गांव में सड़क बन रही थी. श्रमिक काम कर रहे थे. उनका मेट उनसे काम करा रहा था. श्रमिकों को इस बात का रोष था कि मेट कोई काम नहीं करता सिर्फ देख रेख करता है और अधिक पारश्रमिक पाता है. उन्होंने इसकी शिकायत सब इंजीनियर से की.


काम में दक्ष


सब-इंजीनियर ने बताया वह आपसे बुद्धिमान है. अपने काम में दक्ष है. इसलिए उसे अधिक पारश्रमिक मिलता है. काम में भी सहूलियत होती है. श्रमिकों ने नहीं माना कि ऐसा है. तभी सब-इंजीनियर ने देखा कि एक श्रमिक ने अपने घर पर मुर्गी का अंडा ले जाने के लिए रखा हुआ है. उसने तुरंत श्रमिकों को कहा इसके मुर्गी के अंडे को जमीन पर खड़ा करो.


श्रमिकों ने कहा कभी मुर्गी का अंड़ा भी जमीन पर खड़ा हो सकता है. यह नहीं होगा. तब सब-इंजीनियर ने मेट से कहा मुर्गी का अंडा जमीन पर खड़ा करो. मेट ने तुरंत जमीन पर धूल इकट्ठी की और मुर्गी का अंडा खड़ा कर दिया. श्रमिकों ने कहा आपने नहीं कहा था कि धूल में भी अंडा खड़ा किया जाए, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है. सभी कर सकते हैं.


इस पर सब-इंजीनियर ने कहा अब अंडे के ऊपर दूसरा अंडा खड़ा करो. सभी श्रमिक फिर एक दूसरे का मुंह ताकने लगे. अब कैसे मुर्गी के अंडे के ऊपर दूसरा अंडा खड़ा किया जाए. श्रमिकों ने कहा असंभव है. सब-इंजीनियर ने फिर मेट से कहा कि मुर्गी के अंडे के ऊपर दूसरा अंडा खड़ा करो. थोड़ी देर सोचने के बाद मेट ने अपनी अंगूठी निकाली और पहले अंडे के ऊपर रख दी फिर आराम से दूसरा अंड़ा भी उसके ऊपर खड़ा कर दिया. उसने अपनी योग्यता सिद्ध कर दी कि वह उन श्रमिकों से ज्यादा पारश्रमिक पाने का हकदार है.


कहने का इतना मतलब है कि परिस्थियां सभी को समान मिलती हैं. कोई अपनी अक्ल लगाकर अवसर को पहचानते हुए कार्य कर सकता है, और सफल हो सकता है.