करवा चौथ का व्रत रखने का अधिकार केवल स्त्री को ही है. भारत में इस पर्व को स्त्रियां बहुत धूम–धाम से मानाती हैं. यह पर्व पति और पत्नी के बीच प्रेम में वृद्धि लाने का काम करता हैं. चलिए इस पर्व के शास्त्रीय स्वरूप पे दृष्टि डालते हैं.


नारद पुराण पूर्वभाग चतुर्थ पाद अध्याय क्रमांक 113 के अनुसार, कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को 'कर्काचतुर्थी' (करवा चौथ) का व्रत बताया गया है. यह सात्विक व्रत केवल स्त्रियों के लिए है. इसलिए उसका विधान बताया है- स्त्री स्नान करके वस्त्राभूषणों से विभूषित हो भगवान गणेशजी की पूजा करें. उनके आगे पकवान से भरे हुए दस करवे रखे और भक्ति से पवित्र चित्त होकर गणेशजी को समर्पित करें. समर्पण के समय यह कहना चाहिये कि 'भगवान कपर्दि गणेश मुझपर प्रसन्न हों. तत्पश्चात् सुवासिनी स्त्रियों और वेदपाठी ब्राह्मणों को इच्छानुसार आदरपूर्वक उन करवों को बांट दें.


इसके बाद रात में चन्द्रोदय होने पर चन्द्रमा को विधिपूर्वक अर्घ्य दें. व्रत की पूर्ति के लिये स्वयं भी मीठा भोजन करें. इस व्रत को सोलह या बारह वर्षों तक करके नारी इसका उद्यापन करें. उसके बाद इसे छोड़ दे अथवा स्त्री को चाहिये कि सौभाग्य की इच्छा से वह जीवनभर इस व्रत को करती रहे. क्योंकि स्त्रियों के लिये इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत तीनों लोकों में दूसरा कोई नहीं है.


करवा चौथ का उल्लेख व्रतुत्स्व चंद्रिका 8.1 में भी मिलता हैं जिसके पृष्ठ संख्या 234 (एक प्रतिष्ठित प्रकाशन) में कहते हैं कि एक समय अर्जुन कीलगिरि पर चले गये थे, उस समय द्रौपदी ने मन में विचार किया, कि यहां अनेक प्रकार के विघ्न उपस्थित होते हैं और अर्जुन हैं नहीं, अतः अब मैं क्या करूं ? यह विचार कर द्रौपदी ने भगवान कृष्ण का चिन्तन किया. भगवान के पधारने पर द्रौपदी ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की, "भगवन्! शांति का यदि कोई सुलभ उपाय हो, तो कृपया मुझको बतलाएं."


यह श्रवण कर भगवान कृष्ण बोले, "इसी प्रकार का एक प्रश्न पार्वती ने महादेव जी से किया था, जिसका उत्तर देते हुए महादेव जी ने सर्व- विघ्नों का नाशक करवाचतुर्थी (करवा चौथ) का व्रत बतलाया." विद्वान् ब्राह्मण का निवास- स्थान और वेद वेदाङ्गकी ध्वनियों से निनादित इन्द्रप्रस्थ नगर में विद्वच्छिरोमणि वेदशर्मा नामक ब्राह्मण रहता था. उसकी लीलावती नामक पत्नी से सात पुत्र और सर्व लक्षणों से युक्त शुभ लक्षणा वीरावती नाम की एक कन्या हुई. समय प्राप्त होने पर उसने वेद-वेदांत हमें श्रेष्ठ एक ब्राह्मण वाहक के साथ वीरावती का विवाह कर दिया. एक दिन इस कन्या ने विधि-विधान से करवाचौथ का व्रत किया, परन्तु सायंकाल होने से प्रथम ही इस कन्या को क्षुधाने सताया, जिससे वीरावती दुःखी हो गयी. बहन को बहुत दुःखी देखकर इसके भाई ने अत्यन्त ऊंचे एक शिखर पर जाकर उलका का प्रकाश कर दिया. वीरावती ने चन्द्रोदय जानकर और अर्ध्य प्रदान करके व्रत को समाप्त कर दिया. इसका फल यह हुआ, कि तत्काल उस स्त्री का पति मर गया.


पति के मरने पर इस वीरावती को बड़ा भारी दुःख हुआ और इसने एक वर्ष पर्यन्त अनशन व्रत का पालन किया. जब वही करवा चतुर्थी का समय आया, तो स्वर्गलोक से इन्द्राणी आई और उसके साथ अन्य स्वर्गीय देवियों का भी भूतल पर आगमन हुआ. ऐसे सुन्दर समय को पाकर वीरावती ने अपने कान्त की आकस्मिक मृत्यु का कारण पूछा. इन्द्राणी ने कहा, "करवाचौथ के चन्द्रमा को अर्ध्य न देकर व्रत को समाप्त कर देना ही तेरे पति की मृत्यु का कारण है. यदि अब भी विधि-विधान से करक-व्रतका पालन करे तो तेरे पति को पुनर्जीवन मिल सकता है..”


वीरावती ने रीतिपूर्वक व्रत का पालन किया और इन्द्राणी ने जल से मृत पति का प्रोक्षण किया, जिससे वह जीवित हो गया. वीरावती ने चिरकाल में पति-सौभाग्य को प्राप्त किया. इस कारण श्री कृष्ण ने द्रौपदि से कहा कि "यदि तुम भी इस करवा चतुर्थी को करोगी, तो सर्व विकारो का नाश होगा."


सूतजी ने कहा, कि द्रौपदी ने जब इस व्रत का आचरण किया, तब कुरु (दुर्योधन आदि) सेना की पराजय होकर पाण्डवों की विजय हुई. इस कारण सौभाग्य और धनधान्य की वृद्धि चाहने वाली स्त्रियों को इस व्रत का अवश्य ही पालन करना चहिए.


शिक्षा: इस व्रत का साधारण प्रचार तो प्रायः सभी देशों में पाया जाता है, परन्तु पंजाब , हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, आदि और राजपूताने में विशेष रूप से है. जिस प्रकार अन्य व्रत के रूपान्तर हो गये हैं, इसी प्रकार इस व्रत में भी कुछ कल्पित अंश अवश्य आ गया है. कारण कि शास्त्रीय पद्धति से न होकर परम्परा के अनुसार होता है और मूल कथा के स्थान में भी कल्पित कहानी का समावेश हो गया है.


करवाचौथ के व्रत में केवल स्त्रियों का ही अधिकार है. हमारे सनातन धर्म में नारियों का विशेष स्थान हैं मनु स्मृति (3.56) में कहा गया है:–


यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।


अर्थात: – देवता उस स्थान में निवास करते हैं जहां नारी की पूजा होती है और जहां उन्हें पूजा नहीं जाता, वहां सारे अच्छे कर्म भी निस्तेज ही जाते हैं. इसलिए सदैव इसका ध्यान रखें कि कहीं नारी शक्ति का अपमान तो नहीं हो रहा.


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