करवा चौथ का व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए काफी खास होता है. इस दिन का वे पूरे साल बेसब्री से इंतजार करती है. अपने सुहाग की लंबी आयु की कामना के लिए हर विवाहित महिला करवा चौथ का निर्जला व्रत रखती है. पूरे दिन के इस कठिन व्रत को चंद्र उदय के बाद खोला जाता है. इस साल करवा चौथ का व्रत 4 नवंबर (बुधवार) को रखा जाएगा. करवा चौथ का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है. इस व्रत में शिव परिवार सहित चंद्र देवता को पूजा जाता है.  मान्यता है कि करवाचौथ का व्रत रखने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है.

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पूजा का शुभ मुहूर्त

करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त  बुधवार 4 नवंबर को शाम 05 बजकर 34 मिनट से शाम 06 बजकर 52 मिनट तक का रहेगा. चंद्र उदय के विषय में कहा जा रहा है कि शाम 07 बजकर 57 मिनट पर चांद के दर्शन होंगे.

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करवा चौथ व्रत के नियम

पति कि लंबी आयु के लिए रखा जाने वाला करवाचौथ का व्रत सूर्योदय से पहले शुरू हो जाता है और चांद निकलने के बाद खत्म होता है. सुहागिन महिलाएं चांद को अर्घ्य देने के बाद छलनी में दीपक रख कर चंद्रमा की पूजा करती है और फिर इसी छलनी से पति को देखती हैं. इसके बाद पति के हाथों पानी पीकर अपना दिनभर का निर्जला व्रत खोलती हैं. शाम के समय चंद्र उदय से एक घंटा पहले पूरे शिव परिवार की पूजा का विधान है. पूजन के समय व्रत रखने वाली महिलाओं को पूर्व दिशा की और मुख करके बैठना चाहिए.

चंद्रमा की पूजा क्यों होती है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी रिश्ते की डोर को और अधिक मजबूती प्रदान करता है. चंद्रमा को आयु, सुख और शांति का कारक माना गया है और इनकी पूजा से शादीशुदा जिंदगी खुशहाल बनती है और पति की आयु भी लंबी होती है.

करवा चौथ व्रत कथा

करवा चौथ के व्रत के दौरान व्रत रखने वाली महिलाएं एक पौराणिक कथा सुनती हैं. इस कथा के अनुसार, एक साहूकार के सात बेटे थे और उसकी करवा नाम की एक बेटी भी थी. एक बार करवा चौथ के दिन साहूकार के परिवार में व्रत रखा गया. रात को जब सब भोजन करने लगे तो करवा के भाइयों ने उसे भी भोजन करने के लिए कहा लेकिन उसने मना कर दिया. उसने कहा कि वह चांद को अर्घ्य देकर ही भोजन करेगी. सुबह से भूखी -प्यासी बहन की हालत भाइयों से देखी नहीं जा रही थी. इस कारण सबसे छोटा भाई दूर एक पीपल के पेड़ पर एक दीप प्रज्वलित कर आया और अपनी बहन से बोला- व्रत तोड़ लो चांद निकल आया है. बहन अपने भाई की चतुराई को भांप नहीं पाई और उसने खाने का निवाला मुंह में रख लिया. जैसे ही उसने निवाला खाया उसे उसके पति की मृत्यु की सूचना मिली. दुख के कारण वह अपने पति के शव को लेकर एक साल तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही. अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान के साथ करवा चौथ माता का व्रत किया जिसके फलस्वरूप उसका पति जीवित हो उठा. तभी से हर सुहागिन महिला करवा चौथ का व्रत पूर नियम के साथ रखती आ रही हैं.

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