Jagannath Rath Yatra 2023 Highlight: आज जगन्नाथ जी की रथ यात्रा, जानें 10 दिन के कार्यक्रम की लिस्ट

Puri Jagannath Rath Yatra 2023 highlight: आज से विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ यात्रा शुरू हो रही है. हर साल यह यात्रा जगन्नाथ मंदिर के मुख्य द्वार से शुरू होती है और तीन महीने तक चलती है.

ABP Live Last Updated: 20 Jun 2023 07:04 PM
जगन्नाथ रथ यात्रा के शुभ संदेश

जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ
बड़े भाग से मिलते हैं, जगन्नाथ के भात

Rath Yatra 2023 LIVE: जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर नहीं बैठते पक्षी

आमतौर पर मंदिर, मस्जिद या बड़ी इमारतों पर पक्षियों को बैठे देखा होगा. लेकिन पुरी के मंदिर के ऊपर से न ही कभी कोई प्लेन उड़ता है और न ही कोई पक्षी मंदिर के शिखर पर बैठता है. भारत के किसी दूसरे मंदिर में भी ऐसा नहीं देखा गया है.

Puri Rath yatra 2023: जगन्नाथ रथ यात्रा के बधाई संदेश

रथ की रस्सी को तो थामेंगे हमारे ये दोनों हाथ, 
हमारे जीवन की रस्सी को थामें भगवान जगन्नाथ
आप सभी को रथ यात्रा की हार्दिक शुभकामनाएं


Rath Yatra 2023: जगन्नाथ मंदिर की रसोई की खासियत

जगन्नाथ मंदिर की रसोई में रोजाना भगवान का प्रसाद पकाने के लिए सात मिट्‌टी के बर्तन चूल्हे पर एक के ऊपर एक रखे जाते हैं. आश्चर्य की बात ये है कि इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान सबसे पहले पकता है. मंदिर में आया एक भी भक्त यहां से कभी बिना प्रसाद ग्रहण किए नहीं जाता फिर चाहे लाखों भक्त आ जाएं लेकिन प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता और न व्यर्थ जाता है.

जगन्नाथ यात्रा की शुभकामनाएं (Rath Yatra 2023 Wishes)

जिनकी दृष्टि से त्रिभुवन सनाथ
वो जग के मालिक जग के नाथ
फैलाकर आज अपने दोनों हाथ
आए अपनाने हमें स्वंय जगन्नाथ


क्या है जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व (Jagannath Rath Yatra 2023 Significance)

विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा का हिंदू धर्म में बहुत ही अधिक महत्व है. इस यात्रा को लेकर यह मान्यता है कि, भगवान अपने गर्भ गृह से निकलकर प्रजा का हाल जानने निकलते हैं. इस यात्रा में देश-विदेश से लाखों लोग शामिल होते हैं, जो भक्त इस रथ यात्रा में हिस्सा लेकर भगवान के रथ को खींचते है उनके तमाम दुख, दर्द और कष्ट खत्म हो जाते हैं. साथ ही उन्हें सौ यज्ञ करने के समान पुण्य की प्राप्ति होती है.

रथ यात्रा से पहले एकांत में क्यों रहते हैं जगन्नाथ जी

आज देशभर में रथयात्रा मनाई जा रही है. लेकिन रथ यात्रा से 15 दिन पहले जगन्नाथ भगवान एकांत में रहते हैं और भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलराम की मूर्तियों को गृर्भग्रह से बाहर लाया जाता है और पूर्णिमा स्नान के बाद 15 दिन के लिए वे एकांतवास में चले जाते हैं. माना जाता है पूर्णिमा स्नान में ज्यादा पानी से नहाने के कारण भगवान बीमार हो जाते हैं. इसलिए वे 15 दिनों के लिए एकांत में रहते हैं. इस दौरान उनका उपचार किया जाता है.

धरती का बैकुंठ स्वरूप माना जाता है जगन्नाथ धाम

ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ जी के मंदिर को धरती का बैकुंठ स्वरूप माना जाता है. इस मंदिर से कई मान्यताएं और रहस्य जुड़ी है.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार. श्रीकृष्ण का जन्म जब मानव रूप में हुआ तो प्रकृति के नियमानुसार उनकी मृत्यु भी निश्चित थी. श्रीकृष्ण के देह त्यागने के बाद जब उनका अंतिम संस्कार किया गया तो उनका पूरा शरीर पंचत्व में विलीन हो गया, लेकिन हृदय धड़कता रहा. कहा जाता है कि यह हृदय आज भी जगन्नाथ जी की मूर्ति में धड़कता है. 

जगन्नाथ मंदिर का रहस्य

विज्ञान का नियम है कि, किसी भी वस्तु, इंसान, पशु, पक्षी, पेड़-पौधे की परछाई बनती है. लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि, जगन्नाथ मंदिर के शिखर की छाया दिखाई नहीं देती है. जगन्नाथ मंदिर करीब चार लाख वर्ग फीट एरिया में है. इसकी ऊंचाई 214 फीट है. लेकिन इसकी परछाई ना बनने का कारण आज भी रहस्य बना है.

Rath Yatra 2023 LIVE: जगन्नाथ मंदिर के शिखर का रहस्य

जगन्नाथ मंदिर करीब चार लाख वर्ग फीट एरिया फैला है और इसकी ऊंचाई 214 फीट है लेकिन जगत के पालनहार भगवान जगन्नाथ के मंदिर के शिखर की परछाई दिखाई नहीं देती. ये रहस्य आज भी विज्ञान से परे है. यहां मंदिर के शिखर की छाया हमेशा अदृश्य ही रहती है.

Rath Yatra 2023: जगन्नाथ रथ यात्रा 2023 संपूर्ण कार्यक्रम

20 जून 2023 - जगन्नाथ रथ यात्रा प्रारंभ 
24 जून, 2023 (हेरा पंचमी)- अपनी मौसी के घर भगवान पांच दिन तक रहते हैं.
27 जून 2023 (संध्या दर्शन) - इस दिन जगन्नाथ जी के दर्शन करने से दस साल तक श्रीहरि की पूजा के समान पुण्य मिलता है.
28 जून 2023 (बहुदा यात्रा) - भगवान की घर वापसी
29 जून 2023 (सुनाबेसा) - जगन्नाथ मंदिर लौटने के बाद भगवान अपने भाई-बहन के साथ शाही रूप लेते है.
30 जून, 2023 (आधर पना) - इस दिन दूध, पनीर, चीनी, मेवा केला, जायफल, अन्य मसालों आदि बना पना पिलाया जाता है.
1 जुलाई, 2023 (नीलाद्री बीजे) -  पुरी मंदिर के गर्भ गृह में भगवान को सिंहासन पर विराजमान कराते हैं.

Jagannath Rath Yatra 2023: जगन्नाथ पुरी का रहस्य

आमतौर पर दिन के समय हवा समुद्र से धरती की तरफ चलती है और शाम को धरती से समुद्र की तरफ, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जगन्नाथ पुरी में ये प्रक्रिया उल्टी है. यहां मंदिर का झंडा हमेशा हवा की दिशा के विपरीत लहराता है. हवा का रुख जिस दिशा में होता है झंडा उसकी विपरीत दिशा में लहराता है.

Rath Yatra Celebration: जगन्नाथ रथ यात्रा शुभकामनाएं

चंदन की खुशबू, बारिश की फुहार
दिल की उम्मीदें और अपनों का प्यार
मंगलमय हो जगन्नाथ रथ यात्रा का त्यौहार

Jagannath Rath Yatra 2023: मौसी के घर क्यों जाते हैं भगवान जगन्नाथ

भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र रथ यात्रा के दौरान गुड़िचा मंदिर अपनी मौसी के घर जाते हैं. यहां उनका खूब आदर-सत्कार होता है, मान्यता है कि मौसी के घर भगवान खूब पकवान खाते हैं, जिससे वो बीमार भी पड़ जाते हैं. भगवान के उपचार के लिए उन्हें पथ्य का भोग लगाया जाता है और पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद ही भगवान भक्तों को दर्शन देते हैं.

Jagannath Yatra 2023: आज पुरी में कब निकलेगी जगन्नाथ रथ यात्रा

उड़ीसा का पुरी में जगन्नाथ जी की रथ यात्रा 20 जून 2023 को रात्रि 10.04 मिनट पर शुरू होगी और यात्रा का समापन 21 जून 2023 को शाम 07.09 मिनट पर होगा. नगर भ्रमण के बाद इस दिन भगवान जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा देवी गुड़िचा मंदिर में अपनी मौसी के घर विश्राम करेंगे.

Rath Yatra Celebration: जगन्नाथ जी की मूर्ति का रहस्य

पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर की परंपरा के अनुसार हर 12 साल में मंदिर की मूर्ति बदली जाती हैं. नई मूर्तियां की स्थापना के समय मंदिर के आसपास अंधेरा कर दिया जाता है. जो पुजारी ये कार्य करता है उसकी आंखों में पट्टी बंधी होती है और  हाथों में कपड़ा लपेट दिया जाता है. कहते हैं कि इस रस्म को जिसने देख लिया उसकी मृत्यु हो जाती है.

Rath Yatra 2023: आज भी भगवान जगन्नाथ जी की मूर्ति में धड़कता है दिल ?

श्रीकृष्ण ने मनुष्य रूप में अवतार लिया था इसलिए उनकी मृत्यु निश्चित थी. जब उन्होंने देह त्यागी तो पूरा शरीर पंचत्व में विलीन हो गया लेकिन उनका हृदय धड़कता रहा. मान्यता है कि आज भी जगन्नाथ जी की मूर्ति में श्रीकृष्ण का दिल सुरक्षित है. भगवान के इस हृदय अंश को ब्रह्म पदार्थ कहा जाता है. 

(Rath Yatra 2023 Live) भगवान जगन्नाथ की मूर्ति है अधूरी 

विश्वकर्मा जी ने भगवान जगन्नाथ, बलराम तथा सुभद्रा जी की मूर्तियां बनाई है. मूर्तियां बनाने से पहले उन्होंने ये शर्त रखी थी कि कार्य पूरा होने तक उनके कक्ष में कोई प्रवेश नहीं करेगा लेकिन तत्कालीन राजा अपने उत्साह को रोक न सके और उन्होंने कक्ष का दरवाजा खोल दिया. इसके बाद विश्वकर्मा जी ने मूर्तियों का काम अधूरा छोड़ दिया. इस वजह से तीनों मूर्तियों में हाथ-पैर और पंजे नहीं हैं.

(Happy Jagannath Rath Yatra 2023 Wishes) जगन्नाथ रथ यात्रा 2023 शुभकामनाएं

धर्म युद्ध हो या कर्म युद्ध, तू बने सारथी, मैं बनूं पार्थ
भगवान जगन्नाथ पूरी करें सबकी मुराद

100 यज्ञों के बराबर मिलता है पुण्य

जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी मान्यता है कि जो भी भक्त रथ को खींचता है उन्हें 100 यज्ञ करने के बराबर फल प्राप्त होता है. उसके समस्त कष्ट खत्म हो जाते हैं और स्वंय भगवान जगन्नाथ उसकी हर संकट से उसकी रक्षा करते हैं.

मौसी के घर रुकते हैं भगवान जगन्नाथ

भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा गुडींचा मंदिर के पास रुकती है. गुंडींचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर कहा जाता है. यहां रथ सात दिनों तक ठहरता है. इसके बाद आषाढ़ शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को रथों को मुख्य मंदिर की ओर फिर से ले जाया जाता है और मंदिर के ठीक सामने लगाया जाता है. हालांकि इस दौरान प्रतिमाओं को रथ से निकाला नहीं जाता है. 

सोने की झाड़ू से होती है रथ के मंडप की सफाई

रथ यात्रा के लिए श्रीकृष्ण, बलदेव और सुभद्रा के लिए अलग-अलग तीन रथ तैयार किए जाते हैं. जब श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा को रथ पर बैठा दिया जाता है तब पुरी के राजा एक पालकी में आते हैं और पूजा-पाठ करते हैं. रथयात्रा शुरू करने से पहले सोने की झाड़ू से रथ मंडप की सफाई की जाती है. इसे छर पहनरा कहा जाता है. झाड़ू लगाने के बाद मंत्रोच्चारण के साथ शुभ मुहूर्त में ढोल, नगाड़े, तुरही और शंख ध्वनि बजाकर भक्तगण रथों को खींचते हैं और भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है.

ऐसा है भगवान बलभद्र का रथ

भगवान बलभद्र को महादेवजी का प्रतीक माना गया है. रथ का नाम तालध्वज है. रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं.13.2 मीटर ऊंचा और 14 पहियों का ये रथ लाल, हरे रंग का होता है

सुभद्रा देवी के रथ की खासियत

सुभद्रा जी के रथ पर देवी दुर्गा का प्रतीक होता है. देवी सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है. लाल और काले रंग का ये रथ 12.9 मीटर ऊंचा होता है. रथ के रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं. इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचुड़ा कहते हैं.

श्रीकृष्ण के रथ की विशेषता

832 लकड़ी के टुकड़ों से बना जगन्नाथ जी का रथ 16 पहियों का होता है, जिसकी ऊंचाई 13 मीटर तक होती है. इसका रंग लाल और पीला होता है. गरुड़ध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष ये भगवान जग्गनाथ के रथ के नाम हैं. रथ की ध्वजा यानी झंडा त्रिलोक्यवाहिनी कहलाता है. रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है, वह शंखचूड़ नाम से जानी जाती है.भगवान जगन्नाथ रथ के रक्षक भगवान विष्णु के वाहन पक्षीराज गरुड़ हैं.

जगन्नाथ रथ की खासियत

भगवान जग्गनाथ, बलभद्र व सुभद्रा देवी के रथ नीम की पवित्र और परिपक्व लकड़ियों से बनाये जाते है. इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील या कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है. सभी रथ इसमें इतनी हल्की लकड़ियां होती है कि रथ को आसानी से खींचा जा सकता है. यह रथ बनाने में दो महीने का समय लगता है. जब तक रथ बनकर तैयार नहीं हो जाता तब तक पूरे 2 महीने के लिए कारीगर वहीं रहते हैं और सभी नियमों का पालन करते हैं.

जनता का हाल जानने निकलते हैं भगवान जगन्नाथ

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के पीछे की मान्यता है कि इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई और बहन के साथ रथ पर सवार होकर जनता का हाल जानने के लिए निकलते हैं. एक कथा के अनुसार एक बार देवी सुभद्रा ने अपने भाई श्रीकृष्ण और बलराम से द्वारिका दर्शन की इच्छा जाहिर की, जिसे पूरी करने के लिए तीनों रथ पर सवार होकर द्वारका नगर भ्रमण पर निकले तभी से रथयात्रा हर साल होती है.

यात्रा के लिए बने भव्य रथ

जगन्नाथ यात्रा के लिए तीन भव्य रथ बनाए गए हैं. पहले रथ में भगवान जगन्नाथ, दूसरे रथ में भाई बलभद्र और तीसरे रथ में उनकी बहन सुभद्रा सवार हैं. रथ बनाने के लिए खास तरह के 884 पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल होता है और इसमें पहला कट सोने की कुल्हाड़ी से किया जाता है. रथ बनाने वाले लोग दिन में एक बार ही सादा भोजन करते हैं. 

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू

ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू हो गई है. भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ तकरीबन ढाई से तीन किमी दूर गुंडिचा मंदिर जाएंगे. यह उनकी मौसी का घर माना जाता है. इस रथयात्रा में तकरीबन 25 लाख लोगों के आने की संभावना है.

बैकग्राउंड

Rath Yatra 2023: भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण का अवतार माना गया है. पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के पवित्र धामों में से एक है. पुरी की जगन्नाथ यात्रा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि से इस रथ यात्रा की शुरुआत होती है. इस दौरान भगवान जगन्नाथ के अलावा उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा रथ पर सवार होकर जनता का हाल जानने निकलते हैं. 


हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का शुभारंभ होता है. इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा जी के साथ अपने मंदिर से निकलने के बाद पुरी नगरी का भ्रमण करते हुए जनकपुर के गुण्डिचा मंदिर पहुंचते है.  मान्यताओं के अनुसार यहां भगवान विश्राम करते हैं. रथयात्रा में सबसे आगे बड़े भाई, बीच में बहन और अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ होता है. यह यात्रा पूरे भारत में एक पर्व की तरह मनाया जाता है. 


जगन्नाथ यात्रा का महत्व


यह यात्रा हर साल जगन्नाथ मंदिर के मुख्य द्वार से शुरू होती है और पूरी नगर में तीन महीने तक चलती है. भक्ति और धार्मिक महत्व की दृष्टि से यह यात्रा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. इसमें लाखों भक्तों शामिल होते हैं. माना जाता है कि जो लोग भी सच्चे भाव से इस यात्रा में शमिल होते हैं, उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. इस यात्रा के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.  जगन्‍नाथजी की रथयात्रा में शामिल होने का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है. 

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