Jagannath Swami and Salbeg: पुरी के जगन्नाथ स्वामी जिन्हें कलयुग का भगवान भी कहा जाता है. उनकी लीलाएं और लोककथाओं का कोई अंत नहीं हैं. भगवान जगन्नाथ स्वामी का भक्त केवल हिंदू ही नहीं कोई भी हो सकता है.

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आज के इस लेख में हम आपको उनके एक ऐसे मुस्लिम भक्त की कहानी सुनाएंगे, जिसके लिखे भजन आज भी पुरी की गलियों में गूंजते हैं. 

भगवान जगन्नाथ स्वामी का मुस्लिम भक्त

भगवान जगन्नाथ स्वामी का एक ऐसा मुस्लिम भक्त जिसने अपना संपूर्ण जीवन उनकी भक्ति में समर्पित कर दिया और लिखा वो भजन जो आज भी पुरी के आसमान में गूंजता है. इस भजन का नाम है, अहे नीला शैला...

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क्या आप जानते हैं?ओडिशा के इस पवित्र भजन 'अहे नीला शैला' एक मुस्लिम भक्त सालवेग ने लिखा था और यही भजन भगवान जगन्नाथ स्वामी का सबसे पसंदीदा भजन माना जाता है.

सालबेग का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. पिताजी मुगल सेना के सूबेदार थे, लेकिन मां जगन्नाथ स्वामी की अन्यय भक्त थीं. मां के साथ कथा सुनते-सुनते सालबेग के दिलों दिमाग में जगन्नाथ स्वामी की भक्ति बस गई. 

लेकिन एक दिक्कत ये थी कि, सालबेग को मंदिर में अंदर आने की अनुमति नहीं थी. इसलिए हर साल सालबेग जगन्नाथ स्वामी की रथ यात्रा का इंतजार करते थे और अपनी कुटिया में बैठकर ही जगन्नाथ के गीत और भजन गाते थे. 

“अहे नीला शैला, प्रभु जगन्नाथ…”

समय यू हीं बीतता रहा एक बार वृंदावन से लौटते वक्त उनकी तबीयत बिगड़ गई और वो रथ यात्रा में शामिल नहीं हो पाए. उन्होंने दिल से प्रार्थना की, "प्रभु, अगर आप मंदिर पहुंच गए तो मैं आपसे कैसे मिल पाउंगा?"

भक्त की इस भक्ति को देखकर एक चमत्कार हुआ. जगन्नाथ स्वामी ने अपना रथ सालबेग की कुटिया के सामने रोक लिया.

भक्तों ने रथ खींचने की काफी कोशिश की, लेकिन रथ एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाया.

अगली सुबह पुजारी को एक सपना आया, “मेरा भक्त आ रहा है, जब तक वो नहीं आता, मैं आगे नहीं बढ़ूंगा”

तब से लेकर आज तक, पुरी रथ यात्रा के दौरान जगन्नाथ स्वामी का रथ सालबेग की समाधि पर रुकता है, इस याद के रूप में कि, भगवान अपने भक्तों में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करते हैं.

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