Guru Purnima 2023, Sant Kabir Das ke Dohe in Hindi: हर साल आषाढ़ पूर्णिमा के दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाया है. इस साल गुरु पूर्णिमा का पर्व 3 जुलाई 2023 को है. ईश्वर के प्रति तो सभी आस्था रखते हैं. लेकिन गुरु के माध्यम से ही हमें ईश्वर के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है.


कलयुग में कबीर दास के दोहे ही हैं, जिससे जीवन को सही दिशा मिलती है. संत कबीर दास अपनी अमृतवाणी में सच्चे गुरु, गुरु की महिमा और जीवन में गुरु के महत्व को बताते हैं. कबीर दास ने गुरु को ईश्वर से भी श्रेष्ठ बताया है. गुरु पूर्णिमा के अवसर पर संत कबीर दास ने इस दोहे के माध्यम से जानते हैं, आखिर जीवन में गुरु का क्या महत्व होता है और कैसा होना चाहिए गुरु.



गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥

अर्थ है: गुरु के समान कोई दाता नहीं और शिष्य के सदृश याचक नहीं. गुरु ने त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढकर ज्ञान और दान दे दिया.


गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय। 
बलिहारी गुरु आपणै, गोविन्द दियो बताय।।


अर्थ हैं: कबीर दास के कई दोहे में यह सबसे लोकप्रिय दोहा है. इसमें कबीर गुरु की महत्ता बताते हुए कहते हैं कि, गुरु के समान जीवन में कोई भी हितैषी नहीं. गुरु ही ईश्वर का ज्ञान देने वाले हैं. अगर किसी व्यक्ति को गुरु कृपा मिल जाए तो वह पल भर इंसान से देवता बन जाता है.


तीन लोकों भय नाहिं...
गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं।
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं॥

अर्थ है: गुरु को अपना सिर मुकुट मानकर उनकी आज्ञा के अनुसार चलें. कबीर कहते हैं कि, जो यह काम करता है ऐसे शिष्यों या सेवकों को तीनों लोकों से भय नहीं रहता.


गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय।
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय॥

अर्थ है: व्यवहार में भी साधु को गुरु की आज्ञानुसार ही आना-जाना चाहिए. संत कबीर कहते हैं कि, संत वही है जो जन्म और मरण से पार होने के लिए साधना करते हैं.


कबीर हरि के रूठते, गुरु के शरण जाय। कहे कबीर गुरु रूठते, हरि नहीं होत सहाय।।


कबीर दास जी इस दोहे में गुरु की महिमा का गान करते हुए कहते हैं कि, यदि कभी भगवान रूठ जाए तो अपने गुरु की शरण में चले जाओ. क्योंकि गुरु आपकी मदद करते हुए हरि को प्रसन्न करने का मार्ग बताएंगे. लेकिन यदि गुरु नाराज हो गए तो फिर ईश्वर भी आपकी मदद नहीं करेंगे.


गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥

अर्थ है: गुरु और पारस पत्थर में अन्तर है, यह सब संच जानते हैं. पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है. लेकिन गुरु शिष्य को अपने समान महान बना देता है.


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