भाषा दो लोगों के बीच संवाद का माध्यम है. लोग चाहे एक दूसरे के सामने हों या बहुत दूर हों भाषा भाव और विषय का संप्रेषण कर देती है. मातृ भाषा सर्वश्रेष्ठ होती है. दुनिया के तमाम जीव जो भी भाषा बोलते हैं वह मातृ भाषा होती है. पशु-पक्षियों का संवाद मातृभाषा में होता है. इसे सीखना नहीं पड़ता है. यह स्वतः सूझ जाती है. ये सबसे अधिक प्रभावी भी होती है. हालांकि, मातृभाषा का क्षेत्र सीमित होता है. इसमें संप्रेषकों को आमने-सामने होना लगभग अनिवार्य होता है. साथ ही अर्थ स्पष्ट होते हैं. भाषायी विज्ञान पीछे छूट जाता है. 


विश्व से संवाद के लिए व्याकरण सक्षम भाषा की जरूरत होती है. हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू ये भाषाएं मातृभाषा से ऊपर उठकर जन संवाद का माध्यम हैं. इनमें कोई कहीं भी हो ये सहज अर्थ का संप्रेषण करने में समर्थ होती हैं. इनमें भाषा और व्याकरण की त्रुटियां क्षमा नहीं की जा सकती हैं. भाषा विषय सम्मत भी होती है. उन शब्दों का प्रयोग विषय विशेष के लिए प्रभावी होता है. विषय सम्मत चर्चा में इन्हें छोड़ा नहीं जा सकता है.


तर्कपूर्ण भाषा में गणित या कहें अंक भाषा आती है. गणित एक भाषा है. इसमें विषय स्वरूप वे समस्याएं और पहेलियां जिन्हें इनके माध्यम से हल किया जाता है. बड़ी सफलताओं के लिए हमें इन भाषाओं की स्पष्ट समझ होना अनिवार्य है.


देश काल और परिस्थिति के अनुरूप भाषा को अपनाए बिना वैश्विक गतिविधियों में सक्रियता से भाग लेना व्यक्ति के लिए असंभव सा है. भाषा संवाद नहीं होती है. संवाद का माध्यम होती है. संवाद माध्यम पर बेहतर पकड़ ही दुनिया से संचार का द्वार खोलती है. देहभाषा भी इसी संवाद माध्यम का एक अंग होती है.