हिंदू धर्म में ऐसे कई नियम हैं, जिनके बारे में जानते तो सब हैं, लेकिन उनका पालन हर कोई नहीं करता है. इन्हीं नियमों में से एक महत्वपूर्ण नियम सुबह मल-मूत्र त्यागने के बाद नहा धोकर ही भोजन करना चाहिए.
अधिकतर लोग इन नियमों का पालन करते हैं, जबकि बहुत से लोग सुबह बिना स्नान किए ही भोजन करना पसंद करते हैं.
संत राजेंद्र दास महाराज से ने बिना नहाए भोजन करने पर क्या कहा?
वृंदावन के प्रसिद्ध मलूक पीठ के पीठाधीश्वर राजेंद्र दास महाराज ने अपनी एक कथा में बताया कि, जो भी लोग सुबह मल-मूत्र त्यागने के बाद बिना स्नान किए भोजन करते हैं, वो सबसे बड़ी गलती कर रहे हैं.
हिंदू धर्म और भौतिक विज्ञान दोनों ने ही इस बात को स्वीकारा है कि, जब आप अपान वायु से प्रेरित होकर मल-मूत्र के कण शरीर से बाहर निकलते हैं तो शरीर के रोम कूपों से मल के सूक्ष्म अंश बाहर आते हैं.
वो बैक्टीरिया तब तक खत्म नहीं होते हैं, तब तक शरीर पवित्र नहीं हो जाए. इसलिए सनातन संस्कृत में बिना नहाए भोजन करना निषिद्ध माना गया है. सुबह अच्छे से स्नान करो, इसके बाद सूखे तौलिए से रगड़-रगड़ के शरीर को पोंछें. इसके बाद साफ और स्वच्छ कपड़ों को पहनें और फिर भोजन करना सही माना जाता है.
हिंदू धर्म ग्रंथों में बिना नहाए भोजन करने को लेकर स्पष्ट रूप से बातें लिखी गई हैं, और तो और ये बात कोई हल्की नहीं, बल्कि अनुशासन को तोड़ने वाली आदत के रूप में देखा गया है.
मनुस्मृति में लिखा है कि, बिना नहाए भोजन करने से शरीर और मन दोनों अपवित्र होते हैं, जिसका प्रभाव तन-मन पर पड़ता है.
गरुड़ पुराण में कहा गया है कि, अशुचि अवस्था शरीर, प्राण और भोजन तीनों की ऊर्जा को बाधित करने का काम करती है.
आयुर्वेद भी कहता है कि, स्नान डाइजेस्टिव फायर को संतुलित करने में मदद करता है. बिना नहाए भोजन करने से पाचन संबंधित समस्या का सामना करना पड़ सकता है.
धर्म शास्त्र में इस आदत को 'अशुचिः भोजने दोषः' बताया गया है. जिसका मतलब अशुद्ध अवस्था में भोजन ग्रहण करने से दोष पैदा होता है.
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