Daan Punya : दान बहुत ही अद्भुत और अनमोल चीज है. दान करने से पुण्यों में वृद्धि होती है. दान से पाप कटते हैं. कई बार लोग त्यागने को ही दान समझते हैं. सर्वप्रथम एक बात यह समझ लें कि दान और त्याग में क्या अंतर होता है. त्याग में किसी दूसरे व्यक्ति की आवश्यकता नहीं होती है. त्याग हठ करके भी किया जा सकता है. परंतु दान में ऐसा नहीं है. दान के लिए दूसरा व्यक्ति भी आवश्यक है. 


दान में एक संकल्प करना होता है. वह मंत्रों से किया जाए या फिर मानसिक रूप से. दान देने के प्रावधानों में यह भी है कि दान सदैव सुपात्र को करना चाहिए तभी दान का पूर्ण फल प्राप्त होता है. जैसे मानिये कि कोई व्यक्ति के घर में भोजन के लिए एक दाना अनाज नहीं है. और उसको दान में वस्त्र मिल जाए. इसलिए दान दी जाने वाली वस्तु दान लेने वाले व्यक्ति के लिए  जरूरी हो.   


दान देने वाले के पास योग्यता का होना, दान ग्रहीता का पात्र होना तथा दान ग्रहण करने के पश्चात् उसको स्वीकार करना यह सब दान के आवश्यक तत्व हैं. एक बात और है.. धनी होना ‘दानी’ होने का प्रमाण नहीं है. जन्म जन्मांतर के अच्छे कर्म जब फलित होते हैं तब दान की इच्छा प्रकट होती है और व्यक्ति दान का संकल्प करता है. दान का नाम आते ही राजा बाली, दानवीर कर्ण और सम्राट हर्ष का नाम अपने आप ही ध्यान में आ जाता है. राजा बली और कर्ण से स्वयं ईश्वर ने ही दान प्राप्त किया था. दान आपका  फिक्स डिपॉजिट. जिस प्रकार हम लोग कोई भी निवेश करते हैं तो वह सेविंग हमें संकट के समय काम आती है इसी प्रकार जो भी दान करते हैं वह हमारे बुरे कर्मों को समाप्त करते हैं यही नहीं अगले जन्म को संवारते भी हैं. दान वह नहीं जो दिखावे के लिए किया जाए बल्कि दान वह है जो सच्ची भावना से किसी की मदद के उद्देश्य से किया जाए. दान एक प्रकार का फिक्स डिपॉजिट है. दान करने से पूर्व जन्मों के कष्टों में कमी आती है और भगवान की बैलेंस शीट में यदि पाप या कष्ट नहीं हैं तो वह पुण्य के रूप में संचित हो जाते हैं. 


ज्योतिष कर्म सिद्धांत पर आधारित है. यही अच्छे या बुरे कर्म हमारा भविष्य तय करते हैं. दान हमेशा सच्ची भावना से करना चाहिए, और इसका बहुत ढिंढोरा भी नहीं पीटना चाहिए. शास्त्रों कहते हैं कि दाएं हाथ से दिया गया, बाएं हाथ को भी पता न लगे.  


दान देते समय क्या करें- 
-एक बात ध्यान रखें कि दान देने से पहले भगवान विष्णु जी का ध्यान अवश्य करना चाहिए. ऐसा करने से दान का पूर्ण फल प्राप्त होता है.  


यदि कोई व्यक्ति दान कर रहा हो तो उसको कभी भी टोकना नहीं चाहिए, और सदैव ध्यान रखना चाहिए कि दान करने वाले को रोकना बहुत बड़ा पाप होता है. शास्त्रों में तो यहां तक लिखा है कि जो दान न करने की सलाह देते हैं उसको पक्षी योनि प्राप्त होती है. अन्न का दान बहुत बड़ा दान होता है. इस संसार का मूल अन्न है, प्राण का मूल अन्न है. यह अन्न अमृत बनकर मुक्ति देता है. सात धातुएं अन्न से ही पैदा होती हैं.  इन्द्र आदि देवता भी अन्न की उपासना करते हैं. वेद में अन्न को ब्रह्मा कहा गया है. सुख की कामना से ऋषियों ने पहले अन्न का ही दान किया था. इस दान से उन्हें तार्किक और पारलौकिक सुख मिला. अन्न दान करने से यश कीर्ति और सुख की प्राप्ति होती है.


दान करने में कोई शर्त नहीं होनी चाहिए. जैसे एक उदाहरण से समझते हैं कि किसी गरीब जीवन चलाने के लिए एक रिक्शा दान किया लेकिन दान करते समय एक शर्त लगा दी कि हमारे बच्चों को स्कूल निशुल्क छोड़ना अनिवार्य है तभी हम रिक्शा देंगे. तो  इस दान का कोई मतलब नहीं. एक बात बहुत ध्यान रखने वाली है कि कभी भी दान देकर वह वस्तु वापस नहीं लेनी चाहिए अन्यथा पुण्य के बजाय पाप के भागी हो जाते हैं.  


ग्रहों के निमित्त दान वस्तुएं-
सूर्य- क्रीम रंग वस्त्र, गुड़, मिठाई, सोना, गेहूं, करना चाहिए. 
चंद्र-   सफेद वस्त्र, दही, मोती, चांदी, दूध पानी 
मंगल -गेहूं, लाल कपड़ा, गुड़, स्वर्ण, तांबा, मीठा
बुध -हरा वस्त्र, मूंग की दाल, वनस्पति. 
गुरु - किताबें, चने की दाल,  पीला कपड़ा, समिधा, गाय का दान,घी
शुक्र- फैशन के हिसाब से नवीन कपड़ा, शक्कर,  हीरा एवं जूस 
शनि- नीला वस्त्र, तिल, लोहे का सामान, रिक्शा, ट्राईसाईकिल
राहु- हवन सामग्री, चंदन, विदेशी भाषा की पुस्तकें, गोमेद
केतु - कंबल, चप्पल, हेयरबैंड, जनेऊ, लहसुनिया का दान करना चाहिए. 


दान कब किया जाए?  
-सूर्य की 12 संक्रांतियां दान के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है. 
-अमावस्या 
-पूर्णमासी (पूर्णिमा)
-ग्रहण काल 


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