भारत के महान दार्शनिक आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों से मानव कल्याण के लिए नियम बताएं हैं. जिन्हें अपनाकर कोई भी सुखी जीवन जी सकता है. आचार्य ने बताया है कि आपके स्वयं से ही पूरी दुनिया है. अगर खुद का जीवन दांव पर हो तो सबसे पहले अपने जीवन की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि यह संसार आपसे है. संसार से आप नहीं.


आपदर्थे धनं रक्षेद दारान् रक्षेद्धनैरपि।
आत्मानं सततं रक्षेद् दारैरपि धनैरपि॥


अर्थात- धन, स्त्री और प्राण रक्षा के संबंध में चाणक्य का कहना है कि मनुष्य को आकस्मिक विपत्ति के लिए धन बचाना और संचित करना चाहिए लेकिन धन की बजाय अगर स्त्रियों की रक्षा करनी पड़े तो धन का व्यय कर देना चाहिए. मनुष्य को अपनी रक्षा के लिए इन दोनों चीजों का भी बलिदान करना पड़े तो इनका भी बलिदान करने से पीछे नहीं हटना चाहिए.


आचार्य चाणक्य के मतानुसार बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि आपत्तिकाल (विपत्ति) के लिए धन का संग्रह करे. उसकी रक्षा करे. धन से भी अधिक पत्नी की रक्षा करनी चाहिए. पत्नी की रक्षा करने के लिए धन को खर्च करना पड़े तो बिना किसी संकोच के करना चाहिए लेकिन धन और स्त्री से भी अधिक अपनी रक्षा करनी आवश्यक है क्योंकि अपना विनाश हो जाने पर धन और स्त्री का प्रयोजन ही क्या है. बताया गया है कि कुल की रक्षा के लिए व्यक्ति को त्याग देना चाहिए. जनपद की रक्षा के लिए गांव को छोड़ देना चाहिए और आत्मरक्षा के लिए सम्पूर्ण पृथ्वी को छोड़ देना चाहिए.


भावार्थ- आचार्य चाणक्य धन का महत्व कम नहीं आंकते हैं क्योंकि उससे मनुष्य को अनेक दुखों से मुक्ति मिलती है. उसका जीवन खुशहाल हो जाता है. उनका यह भी कहना है कि परिवार की स्त्रियों का महत्व धन से कई गुना अधिक होता है. उनकी मान मर्यादा की रक्षा मे व्यक्ति की मान-मर्यादा की रक्षा होती है. लेकिन मनुष्य का अपना महत्व सबसे अधिक है. अपने ऊपर बात आ जाए तो सब कुछ त्यागकर अपनी रक्षा करना चाहिए. किसी भी अवस्था में अपनी रक्षा करना अत्यंत आवश्यक है.