देह भाषा की सबसे आवश्यक कड़ी आंखें. चर्चा और मीटिंग्स में यहां-वहां देखने वालों को गंभीर नहीं माना जाता है. आंखें हमेशा से सामने वाले को देखती हुईं रहने से संवाद का स्तर बढ़ जाता है. इससे बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं.


आंखों के प्रयोग में ध्यान रखें कि इन्हें आड़ा-तिरक्षा घुमाकर वस्तुएं देखने की आदत से बचें. इसे प्रभावकारी नहीं माना जाता है. आप अधिकाधिक गर्दन घुमाकर कर वस्तु या व्यक्ति पर दृष्टि डाल सकते हैं.


चर्चा में दोनों पैरों सीधे खड़े होने की आदत डालें. इससे बॉडी पॉश्चर बेहतर होने के साथ आराम भी अधिक मिलता है. लंबे समय स्थिर और एक मुद्रा में वार्ता संभव हो पाती है. एक पैर अधिक जोर देकर अथवा तिरछे खड़े होने से अच्छा असर नहीं पड़ता है. संवादऔर सम्प्रेषण प्रभावित होता है.


देहभाषा में श्रवण कला को भी महत्व दिया जाना चाहिए. अपनी ही बात कहते रहने की अपेक्षा स्वयं को सुनने की मुद्रा में भी बने रहने की आदत रखें. सामने वाला जब कोई आवश्यक बात कह रहा हो तो कुर्सी पर टिककर बैठे रहने की अपेक्षा व्यक्ति की ओर थोड़ा झुक जाना अधिक प्रभावशाली बनाता है.


भेंट के दौरान आदरभाव के साथ ही हाथ मिलाना चाहिए. न हाथ को अधिक दबाना चाहिए, न ही एकदम हल्के से हाथ बढ़ाना चाहिए. हाथ मिलाएं तो वार्म वेलकम का भाव आना चाहिए. ऐसा न होने पर आप नमस्कार की मुद्रा में ही सहज रहें.