Anant Chaturdashi 2021: हिंदू पंचाग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी (anant chaturdashi) मनाई जाती है. देशभर में इसे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु जी की उपासना की जाती है. इतना ही नहीं, इस दिन गणेश विसर्जन (ganesha visarjan) भी किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा होती है. भगवान विष्णु की पूजा के बाद अनंत सूज्ञ बांधने की परंपरा है. इस सूत्र में 14 गांठ लगी होती हैं. ये रेशम या फिर सूत का होता है. इस अनंत सूत्र को महिलाएं दांए और पुरुष बाएं हाथ पर बांधती हैं. ऐसा माना जाता है कि अनंत सूत्र बांधने से सभी दुख और परेशानियां दूर हो जाती हैं. 


क्यों मनाते हैं अन्नत चतुर्दशी पर्व (why celebrate anant chaturdashi)
अनंत चतुर्दशी का व्रत की काफी मान्यता हैं. पुराणों में इसकी शुरुआत का जिक्र मिलता है. महाभारत में पांडव (pandav in mahabharat) जब जुएं में अपना सारा राजपाट हार गए थे, तब उन्हें 12 साल वनवास और एक साल का अज्ञात वास मिला. अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करते हुए पांडव वन में रह रहे थे. उस समय युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से अपना राजपाट वापस पाने और दुख दूर करने का उपाय पूछा. तो श्री कृष्ण ने उन्हें बोला कि जुआं खेलने के कारण लक्ष्मी जी तुमसे रूठ गई हैं. अपना राजपाठ वापस पाने के लिए तुम अनंत चतुर्दशी का व्रत रखो तो तुम्हें सब कुछ वापस मिल जाएगा.


श्री कृष्ण ने सुनाई थी ये कथा (anant chaturdashi katha in hindi)
श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को व्रत का महत्व बताते हुए एक कथा सुनाई. प्राचीन काल में एक तपस्वी ब्राह्मण रहता था. उसका नाम सुमंत और पत्नी का नाम दीक्षा था. दोनों की सुशीला नाम की धर्मपरायण पुत्री थी. सुशीला के बड़े होते-होते दीक्षा की मृत्यु हो गई. कुछ समय बाद सुंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया और पुत्री सुशीला का विवाह एक ब्राह्मण कौंडिन्य ऋषि से कर दिया.  विदाई के समय कर्कशा ने  कुछ ईंट और पत्थर बांधकर दामाद कौंडिन्य को दिए. ऋषि को कर्कशा का ये व्यवहार बहुत बुरा लगा. वे दुखी होकर अपनी पत्नी के साथ चल दिए. रात में वे एक नदी के किनारे रुक कर संध्या वंदन करने लगे. इसी दौरान सुशीला ने देखा कि बहुत सारी महिलाएं किसी देवता की पूजा कर रही हैं. सुशीला ने उन महिलाओं से पूजा के बारे में पूछा तो उन्होंने भगवान अन्नत की पूजा और उसके महत्व के बारे में बताया. सुशीला ने भी उसी समय व्रत का अनुष्ठान किया और 14 गांठों वाला सूत्र बांधकर कौंडिन्य के पास आ गई.


कौंडिन्य ने सुशीला से उस रक्षा सूत्र के बारे में पूछा तो सुशीला ने उन्हें सारी बात बताई. कौंडिन्य ने यह सब मानने से मना कर दिया और उस रक्षा सूत्र को निकालकर अग्नि में फेंक दिया. जिसके बाद से उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई और वे दुखी रहने लगे. इस दरिद्रता का कारण जब उन्होंने सुशीला से पूछा तो उन्होंने अन्नत भगवान का डोरा जलाने की बात कही. पश्चताप में ऋषि अन्नत डोर की प्राप्ति के लिए वन की ओर चल दिए. कई दिनों तक वन में ढूंढने के बाद भी जब उन्हें अन्नत सूत्र नहीं मिला, तो वे निराश होकर जमीन पर गिर पड़े. 


उस समय भगवान विष्णु प्रकट होकर बोले, 'हे कौंडिन्य', तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ रहा है. अब तुमने पश्चाप किया है, मैं तुमसे प्रसन्न हुआ. अब तुम घर जाकर अन्नत व्रत करो. 14 वर्षों तक व्रत करने पर तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा. तुम्हें धन-धान्य से पूर्ण हो जाओगे. कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उसे सारे कलेशों से मुक्ति मिल गई.    


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