आजकल ज्यादातर पैरंट्स की सबसे बड़ी चिंता यही है कि बच्चे हमारी बात नहीं सुनते, हर बात में गुस्सा दिखाते है, हर चीज के लिए जिद करते हैं. पहले के मुकाबले अब पैरंट्स को बच्चों को संभालना कहीं ज्यादा मुश्किल लगने लगा है. जहां पहले बच्चे डर और डिसिप्लिन से चलते थे, वहीं आज के बच्चे अपनी बात रखना चाहते हैं, सवाल पूछते हैं और हर चीज पर अपनी राय देते हैं. ऐसे में जब बच्चे जिद करने लगते हैं, छोटी-छोटी बात पर चिड़चिड़े हो जाते हैं या गुस्सा करते हैं, तो पैरंट्स को समझ नहीं आता कि उन्हें कैसे संभालें. लेकिन थोड़े से समझदारी वाले तरीको से बच्चों के गुस्से और जिद को धीरे-धीरे कम किया जा सकता है. तो आइए जानते हैं कि बच्चों में बढ़ता चिड़चिड़ापन, जिद और गुस्से को कैसे दूर करें, इसके लिए क्या खास तरीके हैं.
क्यों बढ़ रही है बच्चों में जिद और गुस्सा?
बच्चे जब खुद के इमोशन्स को ठीक से समझ नहीं पाते, तो वे गुस्से या जिद के रूप में उन्हें बाहर निकालते हैं. इसके अलावा पेरेंट्स जब दिनभर के कामों में बिजी रहते हैं और बच्चों को समय नहीं दे पाते, तो बच्चे ध्यान खींचने के लिए जिद या चिड़चिड़ापन दिखाते हैं. मोबाइल, टैबलेट और टीवी का ज्यादा यूज बच्चों की समझ को कम कर देता है. इससे वे छोटी बातों पर भी गुस्सा करने लगते हैं. अगर बच्चों की बातों को बार-बार टाल दिया जाए या हर बात पर डांट दिया जाए, तो बच्चे अंदर ही अंदर गुस्से से भरने लगते हैं.
कुछ खास और आसान तरीके, जो बच्चों की जिद और गुस्से को कम कर सकते हैं
आज की जनरेशन यानी Gen Z और Gen Alpha के बच्चे बेहद समझदार हैं. ये बच्चे अपने विचार खुद बनाते हैं और किसी का हुक्म मानने से पहले उसकी वजह जानना चाहते हैं. इसलिए जरूरी है कि आप बच्चों को कंट्रोल करने की जगह उनसे इमोशनल बोंड बनाएं. जब आप बच्चे के साथ एक दोस्त जैसा रिश्ता बनाएंगे, तो वह आपकी बात खुद मानेगा. इसके अलावा कुछ खास और आसान तरीके भी बच्चों की जिद और गुस्से को कम कर सकते हैं. जैसे - 1. हर दिन 15 मिनट बच्चों के साथ बिना किसी सलाह के बातचीत करें. एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर आप हर दिन अपने बच्चे के साथ सिर्फ 15 मिनट बिना कोई सिख दिए, बिना डांटे, सिर्फ उनकी बातें सुनें तो धीरे-धीरे बच्चा शांत और समझदार बनता जाएगा.
2. इसके अलावा बच्चों की फीलिंग्स समझें, जज न करें. जब बच्चा गुस्से में हो या रो रहा हो, तो तुरंत चुप कराने की कोशिश न करें. पहले उसे पूछें और बात को समझें, फिर कहें चलो बात करते हैं.
3. वहीं बच्चों की गलतियों पर डांटें नहीं, उन्हें सिखाएं. अगर बच्चा गलती करता है, तो डांटने की जगह उससे बात करें कि उसकी गलती क्या थी और अगली बार क्या बेहतर किया जा सकता है.इससे बच्चे को लगेगा कि आप उसके गाइड हैं.
4. इसके साथ ही बच्चे का एक रूटीन बनाएं और सिखाएं कि हर चीज का समय होता है. बच्चों को समझाएं कि खाने, खेलने, पढ़ने और मोबाइल देखने का समय तय होता है. एक तय रूटीन होने से बच्चों में बैलेंस रहता है और वे ज्यादा फोकस होते हैं.
5. बच्चों के साथ इमोशनल शब्दों का यूज करें. बच्चों से तुम हमेशा ऐसे ही करते हो जैसे शब्दों से बचें. इनकी जगह बच्चों से कहें कि मुझे अच्छा नहीं लगता जब तुम ऐसी बातें करते हो, क्या हम इसे ठीक कर सकते हैं.