Shraddha Murder Case: श्रद्धा मर्डर (Shraddha Case) केस ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है. हर तरफ यही चर्चा हो रही है कि दो प्यार करने वाले लोग आपस में कुछ ऐसा भी कर सकते हैं ? इस केस के सामने आने के बाद शायद ही किसी का प्यार पर भरोसा कायम होगा. अब सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ होगा कि आफताब ने श्रद्धा के 35 टुकड़े कर दिए. वहीं श्रद्धा की लव स्टोरी जो सामने आई है उसमें यह बात कही गई कि वह आफताब की बात मानकर अपनी फैमिली को छोड़कर मुंबई से दिल्ली तक आ गई थी.


'क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट' श्वेता शर्मा ने इस पूरे मामले पर क्या कहा-


इस पूरे मामले पर ABP LIVE PODCASTS की पॉडकास्टर मानसी ने शो  FYI में 'क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट' श्वेता शर्मा (Clinical Psychologist Shweta sharma) से खास बातचीत की.क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट  श्वेता शर्मा से हमारा सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है कि आखिर ऐसा क्या कारण होता है जब एक इंसान के अंदर से सिम्पथी क्यों मर जाती है की वो किसी को मार डालता है ? इसके साथ ही हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि आपके इर्द गिर्द रह रहे ऐसे लोगों को आप कैसे पहचानें और सुरक्षित रहें ?


ऐसे लोगों में कंडक्ट डिसऑर्डर होता है


श्वेता कहती हैं,' हमें ऐसे लोगों के बारे में तब पता चलता है जब ऐसे केसेस सामने आते हैं.  लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि ऐसे लोगों का अगर बचपन उठा कर देख लें तो उनका नेचर शुरू से ही नॉर्मल बच्चों की तुलना में अलग होता है. ऐसे लोगों को बचपन से ही कंडक्ट डिसऑर्डर, ओडीडी होता है जो आगे जाकर एंटीसोशल पर्सनालिटी डिसऑर्डर लीड करते हैं.


एंटीसोशल पर्सनालिटी डिसऑर्डर


ऐसे लोगों को हम साइकोपैथ कहते हैं. ऐसे लोगों का जल्दी पता नहीं लगता है लेकिन अगर ठीक तरीके से जांच की जाए तो हम इसे एंटीसोशल पर्सनालिटी डिसऑर्डर कहेंगे. यह कोई एक दिन में नहीं होता है. बचपन से लेकर 16 साल तक यह किसी इंसान में डेवलप होता रहता है. और बाद में बढ़ते उम्र के साथ इसमें और भी दूसरी तरह की पर्सनालिटी इसमें जुड़ती जाती है. 


श्वेता बताती है,'ऐसे लोगों का बचपन काफी खराब होता है. हो सकता उसने बचपन में बहुत ज्यादा मार- काट, गाली गलौज देखा है. इसकी वजह से उसका नेचर इस तरह का बन गया है. दूसरा चीज यह भी हो सकता है आप अगर किसी बच्चे को हमेशा डांट रहे हैं और उसे अपनी बात कहने का मौक नहीं दे रहे हैं. ऐसे में कई बार यह होता है कि एक टाइम के बाद उस बच्चे के अंदर इमोशन पूरी तरह खत्म हो जाता है. जब ऐसा बच्चा बड़ा होता है तो उनके अंदर दूसरे लोगों से इमोशनली अटैचमेंट पूरी तरह से खत्म होता है. एक टाइम के बाद वैसे लोगों में गुस्सा और अग्रेशन दिन पर दिन बढ़ने लगता है और वह आगे जाकर कंट्रोलिंग नेचर के हो जाते हैं.'


पैरेंटिग स्टाइल में बैलेंस करना बहुत जरूरी


बच्चे को बहुत ज्यादा पैंपरिंग कर रहे हैं और उन्हें सही गलत का फर्क नहीं बता रहे हैं तो यह भी गलत है.सबसे जरूरी बात यह कि बच्चे ने जैसे ही कोई मांगा जरूरी नही है कि आप हर चीज उसको ला कर दे दो. बच्चे के ऐसे नेचर को बिल्कुल भी बढ़ावा न दें.आपको कभी- कभी मना भी करना चाहिए और सारे सामान बच्चे को लाकर नहीं देना चाहिए. आपको बच्चे का रिएक्शन भी देखना चाहिए कि सामान नहीं देने पर क्या करते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए कि बच्चे रहो रहे हैं तो उसको सबकुछ लाकर दे.


अपने इर्द- गिर्द के लोगों को पहचाने


श्रद्धा के बॉयफ्रेंड आफताब से पूछा गया कि किस तरह से आपने श्रद्धा के 35 टुकड़े कर दिए तो इस पर वह जवाब देता है कि इसका आइडिया उसे साइकोलिजकल थ्रीलर सीरीज से मिला था. इस पर डॉक्टर श्वेता कहती हैं,'आजकल वेब सीरीज, फिल्म में विलेन को हीरो की तरह दिखाया जाता है. इसे देखकर यंग जेनरेशन काफी ज्यादा खुश होती है. ऐसे में हमें यह जानना चाहिए कि समाज के लिए असली में कौन विलेन है और कौन हीरो. फिल्म या वेबसीरीज में यह भी दिखाना चाहिए कि क्या गलत है और क्या सही. कुछ लोगों को थ्रीलर देखने में मजा आता है. उन्हें अच्छा लगता है कैसे एक इंसान दूसरे को काट रहा है. तो ऐसे लोगों के लिए मै यही बोलूंगी कि अगर आपको किसी फिल्म या वेबसीरीज में मार- काट देखकर मजा आ रहा है. या किसी के मरने पर आपको रोना नहीं आ रहा है तो आपको किसी अच्छे साइकोलॉजिस्ट से मिलना चाहिए. क्योंकि इमोशन, रोना, हंसना ह्यूमन नेचर है.' 


पहचाने आप कहीं साइकोपैथ तो नहीं?


कोई भी फिल्म देखकर हंसना, रोना या किसी के मरने पर कुछ नहीं हो रहा है तो यह दिक्कत वाली बात है. हम अपने इर्द- गिर्द रहे साइकोपैथ लोगों को कैसे पहचाने? डॉक्टर श्वेता कहती हैं,' आप किसी के साथ रिश्ते में हैं तो आपको समझना चाहिए कि उसका नेचर कैसा है. अगर आपका पार्टनर बहुत ज्यादा कंट्रोलिंग है और आपको बात में रोकता या टोकता है तो फिर दिक्कत वाली बात है. श्रद्धा या आफताब की बात करें तो ऐसा नहीं है कि दोनों में यह पहली बार लड़ाई हुई होगी. लड़ाई पहले भी हुई होगी लेकिन वह लड़का कितना कंट्रोल करता था इससे पता लगा सकते है कि उसने लड़की को समझा बुझाकर लड़की को दिल्ली लेकर आया. वह लड़के की बात मानकर दिल्ली आ गई. लड़ाई सब की होती है और फेशियल एक्सप्रेशन सबका बदलता है. लेकिन कोई इंसान आपको बार- बार अपनी हर बात के जरिए आप पर कंट्रोल बनाने की कोशिश कर रहा है तो यह आने वाले समय में आपके लिए मुश्किल पैदा कर सकता है.'  


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