क्या होगा अगर डॉक्टर ब्रेस्ट कैंसर के इलाज के समय ही बता पाएं कि किसी मरीज को सालों बाद दिल की समस्या होने की ज्यादा संभावना होगी या नहीं? दरअसल JAMA Oncology में एक नई स्टडी से पता चला है कि यह जल्द ही संभव हो सकता है. इस स्टडी में शुरुआती स्टेज के ब्रेस्ट कैंसर वाली 26,000 से ज्यादा महिलाओं पर नजर रखी गई है और एक रिस्क प्रोडक्शन मॉडल विकसित किया गया है.

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यह मॉडल उन लोगों की पहचान कर सकता है, जिन्हें हार्ट फेल्योर या कार्डियोमायोपैथी होने की सबसे ज्यादा संभावना है. इस मॉडल में उम्र से पहले से मौजूद हार्ट रोग के खतरों और कैंसर इलाज की किस्म जैसे फैक्टर शामिल है. रिसचर्स का मानना है कि यह मॉडल करीब 79 प्रतिशत सटीकता के साथ फ्यूचर में हार्ट समस्याओं की पहचान कर सकता है.

क्यों जरूरी माना जा रहा है यह मॉडल?

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ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में अक्सर एंथ्रासाइक्लिन और HER2- टारगेटेड दवाइयाें का इस्तेमाल किया जाता है, जो जीवन रक्षक तो हैं लेकिन हार्ट पर भी असर डाल सकती हैं. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि कई बार कैंसर का इलाज हार्ट को प्रभावित कर सकता है. ऐसे में अगर हम पहले ही पता लगा सके कि किन मरीजों में 10 साल में इसका ज्यादा खतरा होगा तो हम पहले ही इसकी निगरानी और इलाज पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं.  भारत में यह और भी जरूरी है, क्योंकि यहां मरीज अक्सर जवान उम्र में ब्रेस्ट कैंसर का सामना करते हैं. वहीं उनको हार्ट से जुड़े हुए खतरे अलग होते हैं और सामाजिक कारणों से फॉलो अप लेना भी कठिन होता है ‌.

किसे होगा हार्ट रोग का सबसे ज्यादा खतरा?

रिसर्च के अनुसार, लो रिस्क ग्रुप की महिलाओं में 10 साल में हार्ट की समस्याओं का खतरा केवल 1.7 प्रतिशत था, जबकि हाई रिस्क ग्रुप में यह लगभग 20 प्रत‍िशत था. ऐसे में इस मॉडल को लेकर एक्सपर्ट्स कहते हैं कि दवाओं की खुराक में बदलाव, सुरक्षित ऑप्शन और हार्ट सुरक्षा वाली दवाओं का इस्तेमाल करके इस इलाज को पर्सनलाइज बनाया जा सकता है. इससे इलाज में दिक्कतें भी कम आएगी और लंबे समय तक रिजल्ट बेहतर रहेगा ‌‌

भारत में क्यों अहम माना जा रहा है यह मॉडल?

  • भारत में इस मॉडल को अहम माने जाने के पीछे कई वजह है. जिसमें पहली वजह भारतीय महिलाओं को अक्सर 40 या 50 की उम्र में ब्रेस्ट कैंसर का पता चलता है.
  • वहीं कई महिलाएं कभी-कभी ज्यादा खतरनाक कीमोथेरेपी लेती है, जो लंबे समय तक हार्ट पर असर डाल सकती है.
  • इसके अलावा ये वैलिडेटेड रिस्क मॉडल उन लोगों की पहचान करने में मदद कर सकता है जो सबसे ज्यादा कमजोर है और शुरुआती दौर में ही बचाव के तरीके अपनाने में मदद कर सकता है

कैसे हेल्प करेगा यह मॉडल?

  • इस मॉडल से हाई-रिस्क वाले मरीजों की पहचान जल्दी ही की जा सकेगी.
  • साथ ही इलाज को पर्सनलाइज और सुरक्षित बनाया जा सकेगा.
  • जरूरत पड़ने पर कार्डियो-प्रोटेक्टिव दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है.

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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.