Zero-Dose children Vaccination: कोरोना महामारी के बाद से दुनियाभर में कई स्वास्थ्य सेवाएं पटरी से उतर गईं. खासकर बच्चों के नियमित टीकाकरण को भारी झटका लगा है. अब एक नई वैश्विक रिपोर्ट ने चौंकाने वाले तथ्य सामने रखे हैं. 2023 में "जीरो-डोज" बच्चों का संबंध केवल आठ देशों से है और भारत उनमें शामिल है."जीरो-डोज" यानी वे बच्चे जिन्हें जीवन रक्षक बीमारियों जैसे डिप्थीरिया, टिटनेस का पहला टीका भी नहीं मिला.
एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में बताया गया है कि, साल 2023 में दुनिया के 15.7 मिलियन "ज़ीरो-डोज़" बच्चों में से आधे से ज्यादा केवल आठ देशों में थे. भारत उनमें से एक है. ज़ीरो-डोज उन बच्चों को कहा जाता है जिन्हें DTP (डिप्थीरिया, टेटनस और काली खांसी) का पहला टीका तक नहीं मिला.
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डॉ. हेमेन शर्मा ने क्या बताया
असम के एसोसिएट प्रोफेसर और GBD (ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीजेस) के वरिष्ठ सहयोगी डॉ. हेमेन शर्मा ने बताया कि, यह अध्ययन 1980 से 2023 तक के टीकाकरण के रुझानों पर आधारित है. इसमें देखा गया कि DTP, खसरा, पोलियो और टीबी जैसे प्रमुख टीकों की कवरेज 1980 की तुलना में दोगुनी हो गई है, लेकिन इसमें कई छिपी हुई परेशानियां भी हैं.
2010 से 2019 के बीच कई देशों में टीकाकरण की गति कम हुई है और 36 अमीर देशों में से 21 में कम से कम एक टीके की कवरेज घटी है. इसके बाद आई कोविड-19 महामारी ने हालात और बिगाड़ दिए. 2020 से वैश्विक टीकाकरण दरों में तेजी से गिरावट आई और 2023 तक वे महामारी से पहले के स्तर तक नहीं पहुंच सकीं.
2030 का लक्ष्य हो पाएगा पूरा
न्यूमोनिया में रोटावायरस और खसरे की दूसरी खुराक जैसे नए टीकों की कवरेज महामारी के दौरान भी बढ़ती रही, लेकिन यह बढ़त काफी धीमी थी. केवल DTP की तीसरी खुराक ही है जिसके 2030 तक 90% वैश्विक कवरेज का लक्ष्य पाने की संभावना है. वो भी शायद ही हो पाएगी.
"जीरो-डोज" बच्चों की संख्या बढ़ी
एक और गंभीर बात यह सामने आई कि महामारी के दौरान "जीरो-डोज" बच्चों की संख्या बढ़ गई. 1980 से 2019 तक इनमें लगातार गिरावट आ रही थी, लेकिन 2021 में इनकी संख्या 1.86 करोड़ तक पहुंच गई. इनमें आधिकतर बच्चे अफ्रीका या बेहद पिछड़े इलाकों में रहते हैं, जहां स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित हैं.
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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.