Why Breastfeeding is Must: बच्चों का इलाज करने वाले डॉक्टर्स यानी पीडियाट्रिशियन और बच्चों का जन्म कराने वाली डॉक्टर्स यानी गायनेकॉलजिस्ट्स, दोनों ही आजकल एक नए तरह के ट्रेंड को ऑब्जर्व कर रहे हैं. यह ट्रेंड ब्रेस्टफीडिंग से जुड़ा है,  जिसमें कुछ खास प्रोफेशन और नई जनरेशन की माएं बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग कराने से बचने का प्रयास कर रही हैं. इसका क्या कारण है और इस वजह से किस तरह की समस्याएं जन्म ले रही हैं, इस बारे में हमें बता रही हैं दिल्ली के लाजपत नगर स्थित रिजॉइस हॉस्पिटल की सीनियर पीडियाट्रिशियन डॉक्टर आशू खजूरिया...


ब्रेस्टफीडिंग से जुड़ी किस तरह की समस्या आप देख रही हैं?


अगर कुछ खास प्रफेशन और एलीट क्लास के एक सीमित तबके की बात छोड़ दें तो इस समय भारत में यह कोई बड़ी समस्या नहीं है कि महिलाएं अपनी मर्जी से बच्चे को दूध नहीं पिलाना चाहती हों बल्कि ऐसे कई कारण जरूरी हैं, जिनके चलते महिलाएं बच्चे को सही तरीके से ब्रेस्टफीड नहीं करा पा रही हैं. हां, बाहर के देशों में यह एक समस्या के रूप में जरूर है, जबकि हमारे यहां कुछ मामलों में ही ऐसा होता है कि यंग महिलाएं जिनका हाल-फिलहाल में बेबी हुआ होता है, वे ब्रेस्टफीडिंग से बचना चाहती हैं. इसके पीछे उनके अपने तर्क और सोच होती है. हालांकि ज्यादातर मामलों में ब्रेस्टफीडिंग ना करा पाने के अलग ही कारण होते हैं. जैसे, मां को जानकारी नहीं होती कि ब्रेस्टफीड के दौरान बच्चे को कैसे पकड़ना है, बेबी निपल नहीं ले रहा है तो क्या करना है और बच्चे को ब्रेस्टफीड कैसे करानी है. 


ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़ी इन दिक्कतों की वजह क्या है?


इस समस्या के दो मुख्य कारण हैं. पहला ये कि हमारे देश में गर्भवती महिलाओं को लैक्टेशन काउंसलिंग (Lactation counselling) देने की व्यवस्था नहीं है. जो कि प्रेग्नेंसी के लास्ट ट्राइमेस्टर में तो जरूर हो जानी चाहिए. हालांकि कुछ हॉस्पिटल्स में यह शुरू किया गया है. दूसरा कारण है हमारी सोसायटी में बढ़ रहा न्यूक्लियर फैमिली का ट्रेंड. क्योंकि ऐसे में परिवार की कोई बड़ी महिला या तो साथ होती नहीं है और अगर होती हैं कई मामलों में सही से गाइडेंस नहीं मिल पाती है. इस कारण भी महिलाएं बच्चे को ब्रेस्ट फीड नहीं करा पाती हैं. 


ब्रेस्ट फीड ना कराने से महिला के शरीर पर क्या असर पड़ता है?
ब्रेस्टफीडिंग और ब्रेस्ट मिल्क का प्रोडक्शन दोनों ही डिमांड और सप्लाई के साथ जुड़े हुए हैं. यदि बेबी ब्रेस्टफीड नहीं करेगा तो ब्रेन को ब्रेस्ट मिल्क बनाने का सिग्नल नहीं मिलेगा और धीरे-धीरे ब्रेस्ट मिल्क बनना खुद ही बंद हो जाएगा. ब्रेस्ट फीडिंग कराने के मां को और भी कई फायदे मिलते हैं, जैसे, प्रेग्नेंसी के बाद वजन आराम से कम होता है, ब्रेस्ट कैंसर और ओवेरियन कैंसर का खतरा कम होता है. हॉर्मोनल बैलेंस और चेंज धीरे-धीरे होता है, जिससे कई सेहत संबंधी समस्याओं से बचाव होता है.


क्या वाकई ब्रेस्टफीडिंग से फिगर खराब हो जाता है?
यह बात पूरी तरह सही नहीं है. क्योंकि ब्रेस्टफीडिंग के दौरान या इसके बाद महिलाएं यदि अपनी डायट और फिटनेस का ध्यान रखें तो फिगर पर कोई खास असर नहीं पड़ता है. ब्रेस्ट सैगिंग होना एक नैचरल प्रॉसेस है, जब प्रेग्नेंसी के दौरान वेट बढ़ता है तो ब्रेस्ट साइज भी बढ़ता है. फिर मिल्क प्रोडक्शन के बाद ब्रेस्ट की स्किन हल्की लूज होती है, लेकिन यह कोई इतना बड़ा इश्यू नहीं है कि बच्चे को ब्रेस्ट फीड से दूर कर दिया जाए.


माओं के क्या डर होते हैं?
सबके अलग-अलग कारण होते हैं. हमारे देश में ज्यादातर मामलों में यही समस्या होती है कि महिलाएं ब्रेस्टफीड कराने का सही तरीका नहीं जानती हैं, क्योंकि उन्हें यह सिखाया ही नहीं गया होता है. कुछ खास प्रोफेशन जैसे, मॉडलिंग, एक्टिंग या अन्य मीडिया से जुड़ी कुछ महिलाओं को फिगर खराब होने का डर होता है. कुछ महिलाएं इस डर से फिगर के प्रति सतर्क रहती हैं कि फिगर खराब हुआ तो हसबैंड मुझमें इंट्रस्ट नहीं लेंगे. जबकि कुछ महिलाओं को लगता है कि फिगर खराब होने से उनकी सेक्स लाइफ डिस्टर्ब हो जाएगी. 


वहीं, इन सब कारणों से दूर कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं, जिन्हें एल्कोहॉल या एल्कोहॉल वैब्रेज लेने का शौक होता है. कुछ चेन स्मोकर होती हैं और कुछ महिलाएं चाय-कॉफी का अधिक सेवन करती हैं. ऐसे में जिसकी जो आदत होती है, यदि वह उसे छोड़ना नहीं चाहती और बच्चे को इनके बुरे असर से भी बचाना चाहती हैं तो उन्हें सबसे आसान तरीका लगता है कि बच्चे को ब्रेस्टफीड मत कराओ. हालांकि यह ट्रेंड भी विदेशों में अधिक है, हमारे देश में ज्यादातर महिलाएं इस तरह के शौक नहीं रखती हैं. जिन्हें होते हैं वे प्रेग्नेंसी के दौरान ये सब शौक छोड़ देती हैं. रही बात चाय और कॉफी की तो इसकी अवेयरनेस हमारे देश में अभी कम ही लोगों को है.


ब्रेस्टफीड की जरूरत किसी और विधि से पूरी की जा सकती है?
ब्रेस्टफीड के विकल्प तो कई हैं, लेकिन ब्रेस्टफीड जैसा प्रभावी कोई नहीं है. पिलाने के लिए बच्चों को न्यूबॉर्न फॉर्म्युला मिल्क पिलाया जाता है, बॉटल से भी बच्चों को फीड किया जाता है. हालांकि मां के दूध का असल सब्स्टिट्यूट कुछ नहीं है. इसलिए हमारे पास जो भी न्यू बॉर्न बेबी ट्रीटमेंट के लिए आते हैं, हम उनके लिए ब्रेस्ट फीडिंग अनिवार्य रखते हैं.


ब्रेस्टफीडिंग इतनी जरूरी क्यों है?


देखिए, मेडिकल साइंस की तरक्की अपनी जगह है और मां के दूध का कंपोजिशन अपनी जगह. जब हम बच्चे को ऑरिजनल फूड दे सकते हैं तो आर्टिफिशयल का विकल्प क्यों चुनना. मां का दूध ऐंटिबॉडीज, विटामिन्स, प्रोटीन, माइक्रोन्यूट्रिऐंट्स का पर्फेक्ट मिश्रण होता है और यह बच्चे के लिए नेचर द्वारा दी गई डायट है. इसकी बराबरी वाला इसका कोई विकल्प नहीं हो सकता.


मां का दूध बच्चे को और क्या फायदे देता है?
एक न्यूबॉर्न बेबी के लिए हेल्थ के अलावा और भी कई कारणों से मां का दूध जरूरी होता है. जैसे बच्चे के कॉग्नेटिव, मेंटल और फिजिकल डवलपमेंट में भी मां का दूध अहम रोल निभाता है. इसलिए कम से कम 6 महीने की उम्र तक हर बच्चे को मां का दूध जरूर मिलना चाहिए.


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