World Most Expensive Tea: दुनिया में एक से बढ़कर एक लोग चाय के शौकीन हैं. भारतीय लोगों के लिए तो चाय एक इमोशन है. खुशी हो तो, चाहे दुख हो तो चाय, डिप्रेस्ड हो तो चाय, हर मौके पर चाय चाहिए ही चहिए,शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे चाय पसंद ना हो. अब जब शौक की बात आई है तो लोग महंगी से महंगी चाय पीते हैं. आमतौर पर भारतीय दुकानों में 10 से ₹20 गिलास या कप चाय मिलती है, वहीं अगर कोई बड़े होटल- रेस्टोरेंट में चले जाएं तो ₹100 से लेकर 1000 रुपए तक की चाय मिलेगी, लेकिन क्या आप जानते हैं दुनिया के एक कोने में ऐसी चाय मिलती है जिसका नाम सुनते ही आपको शायद करंट लग जाए.


हम बात कर रहे हैं चीन में मिलने वाली डा-हॉन्ग-पाओ-टी की. इस चाय पत्ती का नाम दुनिया में मिलने वाली सबसे महंगी चाय की पत्तियों में शुमार है. दाम इतने किस सोना भी इसके सामने शर्मा जाए. ये चाय सिर्फ चीन में पाई जाती है जिसको खरीद कर पीना सबके बस की बात नहीं है


कीमत इतनी की सोना भी शर्मा जाए


ये मार्केट में 10 करोड़ रुपए पर केजी बिकता है. जी हां अगर आपको 1 किलो चाय खरीदना हो तो आपको लगभग 10 करोड़ रुपए कीमत अदा करनी होगी. एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में 2022 में एक आदमी ने 20 ग्राम डा-हॉन्ग-पाओ-टी खरीदा, जिसके लिए उसने 1.80 लाख युआन चुकाए. भारत के हिसाब से आज के वक्त में यह 20. 43 लाख रुपए होगी. ऐसे में यह चाय सोने से ज्यादा महंगी है.


कई गंभीर बीमारियों को ठीक कर सकता है चाय


जानकारी के मुताबिक डा हॉन्ग पाओ टी की खेती चीन के फोजियान के वूईसन इलाके में की जाती है. जिन पेड़ों में यह चाय लगती है वह रेयर पेड़ होते हैं और उन्हें मदर्स ट्री भी कहते हैं. ऐसे कुछ 6 पेड़ हैं, जो दुनिया भर में मौजूद है और यही कारण है कि चीन के इन पेड़ों को नेशनल ट्रेजर के रूप में घोषित किया गया है. यह पौधा बहुत ही दुर्लभ होता है .इसकी देखभाल में काफी मेहनत लगती है दवा तो यह भी किया जाता है कि इसे पीने से शरीर की कई गंभीर बीमारियों से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है.


डा-हॉन्ग-पाओ-टी का इतिहास


चीनी लोगों के मुताबिक इस चाय का इतिहास से बहुत ही पुराना है मिंग शासन के दौरान एक बार महारानी की तबीयत खराब हुई थी जिसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें यह चाय पिलाई. चाय ने कमाल दिखाते हुए महारानी को ठीक कर दिया. रानी को ठीक होता देख राजा खुश हुए और उन्होंने डा-हॉन्ग-पाओ टी की खेती करने का आदेश दे दिया. और तभी से इसकी खेती की जाने लगी. राजा के लंबे चौड़े पर ही इस चायपत्ती का नाम पड़ा.


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