जैसे ही दिल्ली में ठंड बढ़ने लगती है, लोगों की अलमारियों से ऊनी कपड़े निकलने लगते हैं.जैकेट, स्वेटर, कोट और शॉल के बीच अब एक नया लेकिन ट्रेडिशनल परिधान भी तेजी से अपनी जगह बना रहा है. यह ट्रेडिशनल परिधान कश्मीरी फेरन है. जो परिधान कभी सिर्फ कश्मीर की ठंडी वादियों तक सीमित था, आज वह दिल्ली की सर्दियों की पहचान बनता जा रहा है.
दिल्ली की सड़कों, कॉलेजों, दफ्तरों, पार्कों और बाजारों में आजकल कढ़ाईदार, ढीले-ढाले फेरन पहनी महिलाएं आम नजर आने लगी हैं.कभी जो पहनावा अलग और अनोखा माना जाता था, अब वही फैशन का हिस्सा बन चुका है.यह कहानी सिर्फ एक कपड़े की नहीं है, बल्कि संस्कृति, कारीगरी, रोजगार और बदलते फैशन ट्रेंड्स की भी है.
फेरन से शुरू हुआ एक निजी रिश्ता
लगभग 20 साल पहले दिल्ली की मीडियाकर्मी मेघा चतुर्वेदी ने कश्मीर की पारिवारिक यात्रा के दौरान अपना पहला फेरन खरीदा था. उन्हें तब शायद अंदाजा नहीं था कि यह परिधान उनके जीवन का हिस्सा बन जाएगा.मेघा बताती हैं कि तब से उन्होंने फेरन पहनना कभी छोड़ा नहीं, पहले वे दिल्ली में लगने वाले हस्तशिल्प मेलों या कश्मीरी दुकानों से फेरन खरीदा करती थीं.उनके कपड़े अक्सर लोगों को अलग और खास लगते थे, और तारीफ मिलना आम बात थी. लेकिन आज, 2025 में, तस्वीर बदल चुकी है. अब मेघा अलग नहीं दिखतीं, क्योंकि दिल्ली में फेरन पहनने वालों की संख्या तेजी से बढ़ गई है.
दिल्ली की सर्दी और फेरन का मौसम
आज दिल्ली में सर्दी का मतलब सिर्फ जैकेट या कोट नहीं रह गया है. अब सर्दियों को लोग मजाक में नहीं, बल्कि सच में फेरन का मौसम कहने लगे हैं. कॉलेज कैंपस हों या ऑफिस, शॉपिंग मार्केट हों या मॉर्निंग वॉक के पार्क, हर जगह महिलाएं खूबसूरती से कढ़ाई किए गए फेरन पहने नजर आती हैं. कई लोग इन्हें बूट्स, जींस या पलाजो के साथ स्टाइल कर रहे हैं, जिससे यह परंपरागत परिधान एक मॉडर्न लुक भी देता है.
फेरन क्या है और क्यों है खास?
फेरन कश्मीर का पारंपरिक ऊनी परिधान है, जो स्थानीय ऊन से बनाया जाता है. इस पर अक्सर जरी और टिल्ला की हाथ की कढ़ाई की जाती है, जो इसे बेहद खूबसूरत बनाती है.पहले यह पुरुषों और महिलाओं दोनों के पहना जाता था. लेकिन दिल्ली और एनसीआर में यह खासतौर पर महिलाओं की पसंद बन गया है. फेरन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह बहुत गर्म होता है, पहनने में हल्का और आरामदायक लगता है, शरीर को जकड़ता नहीं और लगभग हर तरह की पैंट या जींस के साथ अच्छा लगता है.
मांग में जबरदस्त बढ़ोतरी
फेरन की बढ़ती लोकप्रियता का असर सीधे कश्मीरी व्यापारियों और कारीगरों पर पड़ा है. श्रीनगर के 28 वर्षीय विक्रेता जुनैद नाज़िर बताते हैं कि पिछले दो सालों में फेरन की मांग असाधारण रूप से बढ़ी है. सीजन शुरू होते ही वे दिल्ली में 500 से ज्यादा फेरन भेज चुके हैं.उनका परिवार श्रीनगर में दुकान, फैक्ट्री और थोक व्यापार चलाता है. अब वे व्हाट्सएप और ऑनलाइन ऑर्डर के जरिए भी बिक्री कर रहे हैं. दिल्ली की भारी मांग के कारण उन्होंने लाजपत नगर में भी स्टॉक भेजना शुरू कर दिया है. राजौरी गार्डन की रहने वाली दिव्या अरोरा बताती हैं कि पहले उनके इलाके में सिर्फ दो दुकानदार फेरन बेचते थे. अब यह संख्या बढ़कर सात–आठ हो गई है, सिर्फ दिल्ली ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत में फेरन की मांग बढ़ने से कश्मीर के कारीगरों को बड़ा फायदा हुआ है.
ऑनलाइन और सोशल मीडिया ने बदली तस्वीर
पहले कश्मीरी विक्रेता सर्दियों में दिल्ली जैसे शहरों में आकर घर-घर या बाजारों में फेरन बेचते थे. अब सोशल मीडिया और ऑनलाइन शॉपिंग ने सब कुछ बदल दिया है. कश्मीर बॉक्स नाम की ई-कॉमर्स कंपनी के सह-संस्थापक मुहीत मेहराज बताते हैं कि 2021 के बाद से फेरन की मांग में जबरदस्त उछाल आया है.उनकी कंपनी अब तक 70,000 से 80,000 ग्राहकों तक डिजिटल माध्यम से पहुंच चुकी है.उनकी कंपनी सिर्फ फेरन बनाने के लिए 600 से 700 कश्मीरी कारीगरों के साथ काम कर रही है.
सेलिब्रिटी फैशन और नए ट्रेंड
मुहीत बताते हैं कि जब अभिनेत्री कंगना रनौत ने एयरपोर्ट पर काला फेरन पहना, तो यह एक बड़ा फैशन मोमेंट बन गया. इससे फेरन को सिर्फ पारंपरिक नहीं, बल्कि स्टाइलिश परिधान के रूप में पहचान मिली. ढीले कपड़ों का चलन, ओवरसाइज फैशन और आरामदायक पहनावे ने भी फेरन को युवाओं के बीच लोकप्रिय बना दिया है. अब तो दिल्ली की शादियों में भी सजे-धजे फेरन देखने को मिल जाते हैं.
पहले फेरन वन साइज फिट्स ऑल होते थे. लेकिन अब अलग-अलग साइज आने से बिक्री कई गुना बढ़ गई है. मुहीत बताते हैं कि 70 प्रतिशत बिक्री छोटे साइज के फेरन की हुई है, जो यह दिखाता है कि जनरेशन Z और मिलेनियल्स इसे खूब पसंद कर रहे हैं.अब बेंगलुरु, पुणे और मुंबई से भी ऑर्डर आने लगे हैं.
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