सालमन, बांगरा और सार्डीन मछली को हफ्ते में कम से कम दो बार बचपन में खाने से अस्थमा का खतरा आधा कम हो सकता है. क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी लंदन के रिसर्च में शोधकर्ताओं ने 45 सौ बच्चों के डेटा का अध्ययन कर नतीजा निकाला है. ये बच्चे 1990 के दशक में ब्रिटेन में पैदा हुए थे और वैज्ञानिक जन्म के समय से उनके डेटा पर नजर रख रहे थे. आपको बता दें कि मछली खासकर सालमन, बांगरा और सार्डीन में ओमेगा-3 फैट्टी एसिड के अहम स्रोत हैं.


बचपन में खास मछलियों के सेवन से क्या होता है असर?


रिपोर्ट के मुताबिक, जिन बच्चों ने ओमेगा-3 से भरपूर मछली के दो हिस्सों का सेवन किया, उनके 11-14 की उम्र के बीच जानलेवा श्वसन की बीमा का खतरा 50 फीसदी कम हो गया. 5-11 साल की उम्र के बच्चों समेत ब्रिटिश परिवार में मछली खाने का रुझान बहुत कम है और सिर्फ 25 फीसदी परिवार हफ्ते में कम से कम दो बार मछली का सेवन करते हैं.


शोधकर्ता सैफ शाहीन कहते हैं, "अस्थमा की बीमारी बचपन की पुरानी बीमारियों में सबसे आम है और हमें वर्तमान में जानकारी नहीं है कि कैसे उसकी रोकथाम की जाए. ये संभव है कि खराब डाइट बीमारी का खतरा बढ़ा दे, लेकिन अब तक के रिसर्च जल्दबाजी में अंजाम दिए गए, उसमें डाइट और अस्थमा को संक्षिप्त समय के दौरान मापा गया है." उन्होंने आगे बताया, "इसके बजाए, हमने कई वर्षों तक डाइट को मापा और बच्चों का मुआयना जारी रखा, जिससे पता लग सके कि किसे अस्थमा हुआ है और किसे नहीं."


अस्थमा का जोखिम 50 फीसदी कम होने का खुलासा 


उन्होंने कहा कि टूना, ट्राउटर और सुखाई हुई नमकयुक्त मछली समेत समुद्री खुराक में स्वस्थ ओमेगा-3 फैट्टी एसिड बहुत ज्यादा पाया जाता है. रिसर्च को यूरोपीयन रेस्पिरेट्री जर्नल में प्रकाशित किया गया है. शाहीन कहते हैं, "हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि ज्यादा मछली खाने से बच्चों में अस्थमा की बीमारी रुक जाएगी, लेकिन हमारे नतीजों के आधार पर ब्रिटेश बच्चों के लिए ज्यादा मछली का खाना समझदारी होगा."


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