विश्वास करें या न करें, ज्यादातर लोगों की आदत सोने से पहले मोबाइल फोन पर हाथ फेरना या सीरियल देखने की हो गई है. हम सभी वाकिफ हैं कि गैजेट्स से निकलनेवाली नीली रोशनी हमारी नींद को प्रभावित कर सकती है. हालांकि एक नए रिसर्च में कुछ चौंकानेवाला खुलासा किया गया है.


देर रात गैजेट्स के इस्तेमाल से बांझपन बढ़ने का है खतरा


वर्चुअल स्लीप 2020 मीटिंग में शेयर किए गए रिसर्च के मुताबिक, शाम और देर रात गैजेट्स की रोशनी का संपर्क और स्पर्म की खराब गुणवत्ता के बीच स्पष्ट संबंध पाया गया है. रिसर्च में पुरुषों के स्वस्थ स्पर्म और प्रजनन क्षमता पर मोबाइल रेडिएशन के प्रभाव का अध्ययन किया गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, आम आबादी में बांझपन का प्रसार 15-20 फीसद है. उसमें पुरुषों की प्रजनन क्षमता का योगदान 20-40 फीसद की दर से है.


भारत में, 23 फीसद पुरुष बांझपन की समस्या से प्रभावित हैं. डेटा वक्त की अहम जरूरत को समझने की मांग करता है. उसके तहत बांझपन की वजहों और उसके इलाज को जानना जरूरी है. रिसर्च के मुताबिक, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया डिवाइस के इस्तेमाल का बड़ा असर हो सकता है. शाम के बाद मोबाइल फोन, टैबलेट्स के इस्तेमाल से स्पर्म गतिशीलता, स्पर्म का असर और स्पर्म एकाग्रता कम होता है.


नीली रोशनी, स्पर्म की खराब गुणवत्ता के बीच स्पष्ट संबंध


रिसर्च में पाया गया कि इन डिवाइसों से निकलनेवाली शॉर्ट वेव लेंग्थ के जितने ज्यादा संपर्क में रहा जाए, गतिहीन स्पर्म का प्रतिशत उतना ही ज्यादा होता है. इसके अलावा, रिसर्च से ये भी पता चला कि नींद की लंबी अवधि कुल स्पर्म काउंट यानी शुक्राणु की संख्या और संपूर्ण स्पर्म की सीधी गति से संबंधित है. आसान शब्दों में कहा जाए तो इन गैजेट्स से निकलनेवाली रोशनी नींद को बाधित कर सकती है और स्पर्म के मंजिल तक पहुंचने को रोक सकती है.


स्पर्म का अपनी मंजिल तक नहीं पहुंचना पुरुष बांझपन की दर में बढ़ोतरी की वजह बनता है. मोबाइल फोन के बहुत ज्यादा इस्तेमाल पर रेडिएशन किसी शख्स के डीएनए को नुकसान पहुंचा सकता है. जिसके चलते कोशिकाओं का खुद से रिकवर होने की क्षमता खत्म होना शुरू हो जाता है. खतरों से बचने के लिए जरूरी है कि गैजेट्स पूरी तरह दूरी न बनाएं बल्कि सोने से पहले उसका इस्तेमाल नहीं करें.


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