चेन्नई: चार वर्षीय रूसी बच्चा लंग ट्रांसप्लांट करानेवाला एशिया का सबसे छोटा मरीज बन गया है. अपने देश में पैदा होने के दो महीने बाद उसके जन्म दोष 'फाइब्रोसिंग एल्वोलिटिस' का इलाज हुआ था. चेन्नई में एमजीएम हेल्थकेयर के डॉक्टरों ने 15 दिसंबर 2020 को उसका सफल बाइलेट्रल लंग ट्रांसप्लांट किया. लंग ट्रांसप्लांट के लिए 20 डॉक्टरों की टीम की अगुवाई डॉक्टर केआर बालाकृष्ण ने की.


4 वर्षीय रूसी बच्चे का सफल बाइलेट्रल लंग ट्रांसप्लांट


फाइब्रोसिंग एल्वोलिटिस के इलाज के बाद बच्चे को वेंटिलेटर पर रखा गया क्योंकि उसका ऑक्सीजन लेवल बहुत कम हो गया था. छह महीने की उम्र में रूस में उसका ट्रेकीओस्टोमी किया गया और फिर एयरलिफ्ट कर 2018 में चेन्नई लाया गया. रूस के डॉक्टरों ने संभावित लंग ट्रांसप्लांट के लिए रेफर किया था. डॉक्टर सुरेश राव ने कहा, "चेन्नई में उसे तीन वर्षों तक वेंटिलेटर पर रखा गया. इस दौरान उसके लिए उपयुक्त लंग डोनर की तलाश जारी रही.


गुजरात के सूरत में दिसबंर 2020 में एक दो वर्षीय ब्रेन डेड बच्चे का पता चला. परिजन उसके लिए अंगदान करने को आगे आए. इजाजत मिलने के बाद डोनर के अंग को एयरलिफ्ट कर चेन्नई लाया गया." जटिल ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया के बाद नजर नामक बच्चे को आईसीयू केयर में रखा गया. डॉक्टर बालाकृष्णन ने कहा, "सफल ट्रांसप्लांट से पहले दुनिया में किसी छोटे बच्चे को वेंटिलेटर पर रखे जाने की सबसे लंबी अवधि है. बच्चा भारत में लंग ट्रांसप्लांट करानेवाला सबसे छोटा है और एशिया में सबसे कम उम्र का है."


मासूम को तीन साल तक रहना पड़ा था वेंटिलेटर पर 


लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रहने से मरीज की स्थिति ज्यादा जटिल हो गई थी. डॉक्टरों का कहना है कि बच्चे में जटिल ट्रांसप्लांट के बाद लंग ठीक से काम कर रहे हैं. अस्पताल के मुताबिक, बच्चे को वर्तमान में न्यूनतम ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है. ये एशिया का सबसे छोटा किया गया लंग ट्रांसप्लांट है. डॉक्टर के आर बालाकृष्णन ने बताया कि ट्रेकीओस्टोमी के कारण बच्चा ठीक से बोल नहीं पाता था. अब, तेजी से स्वस्थ हो रहा है और फिजियोथेरेपी और रिहैबिलेटेशन के बाद भविष्य में सामान्य जीवन जी सकेगा.


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