Constitutional Rights of Married Women in India: भारत में शादीशुदा महिलाओं को सामाजिक, शारीरिक, वित्तीय रूप से सुरक्षित और सशक्त बनाने के लिए संविधान में कई तरह के प्रावधान हैं. वक्त वक्त पर देश की विधायिका और न्यायपालिका की ओर से भी विभिन्न कानूनों में संशोधन, कानून के प्रावधान का स्पष्टीकरण या नए कानून लाए जाते हैं.


एक नजर भारत में हिन्दू पत्नियों को मिले कानूनी अधिकारों पर-



  1. 1. स्त्री धन पर अधिकार (Right To Stree Dhan): हिन्दू विवाह अधीनियम (Hindu Marriage Act, 1955) के अनुसार शादी के वक्त महिलाओं को मिले जेवर और पैसों पर उसका हक होता है. भले ही पति या ससुराल वाले उसे अपनी कस्टडी में रखें, लेकिन उनका खर्च कहां और कैसे करना है इसका अधिकार केवल इस महिला को होता है.

  2. घर का अधिकार (Right To Matrimonial House): पति चाहे पुश्तैनी मकान में रहे, ज्वॉइंट फैमिली वाले घर में रहे, खुद से खरीदे घर में रहे या किराये के मकान में रहे, जिस घर में पति रहता है उसी घर में रहने का अधिकार पत्नियों को भी मिला है.

  3. रिश्ते में प्रतिबद्धता का अधिकार (Right To Commitment In Relationship): जब तक पति पत्नी से तलाक नहीं ले लेता, वह किसी और के साथ शादी या संबंध नहीं बना सकता है. ऐसा करने पर भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 497 के अंतर्गत एडल्ट्री (Adultery In Marriage) के चार्ज लगेंगे. इस आधार पर महिला अपने पति से तलाक ले सकती है.

  4. भरण-पोषण का अधिकार (Right To Maintenance): हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधीनियनम, 1956 के सेक्शन 18 के अनुसार हिन्दू पत्नी, अपने जीवनकाल में अपने पति से भरण-पोषण पाने की हकदार होगी. सेक्शन 25 के अंतर्गत तालक के बाद भी वह एलिमनी की हकदार होगी.

  5. बच्चे की कस्टडी का अधिकार (Right To Child’s Custody): अगर पति और पत्नी अलग-अलग रह रहे हों तो नाबालिग बच्चे को अपने पास रखने का अधिकार मां को होता है. अगर महिला पैसे नहीं अर्जित करती तो बच्चे की परवरिश का खर्च पिता को उठाना होगा.

  6. घरेलू हिंसा से बचाव का अधिकार (Domestic Violence): घरेलू हिंसा अधीनियम, 2005 (Domestic Violence Act, 2005) के अंतर्गत महिला अपने पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा प्रताड़ित किये जाने पर पुलिस में केस दर्ज कर सकती है.


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