Consumer Protection Act: हर पल बदलने वाली आधुनिक दुनिया में हर व्यक्ति अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त रहता है. भारी व्यवस्था के बीच व्यक्ति तरह-तरह की खरीददारी से नहीं चूकता है. मौका मिलते ही लोग अपनी सामर्थ्य के अनुसार हर सुख सुविधा खरीदना चाहते हैं. इस बीच किसी उत्पाद या सेवा लेने के दौरान जालसाजी भी आम बात हो गई है. कभी प्रोडक्ट खराब निकलता है तो कभी सेवा देने वाली कंपनी धोखा देकर चली जाती है, या फिर नामचीन ब्रांड के प्रोडक्ट रिप्लेस नहीं हो रहे हैं तो इन सब झंझटों से आप मुक्ती पा सकते हो. 


अगर खरीददारी या सेवा लेने के दौरान थोड़ी सतर्कता दिखाएं. कोई भी सबूत या कागजात के सहारे आप संबंधित कंपनी, फर्म या विक्रेता के खिलाफ कार्रवाई करा सकते हैं. क्योंकि उपभोक्ता न्यायालय से तुरंत और आसानी से न्याय पाया जा सकता है. खास बात यह है कि इसके लिए वकील होने की जरूरत नहीं है. उपभोक्ता न्यायालय आम आदमी की शिकायत और पैरवी पर उपचारात्मक क्षतिपूर्ति तो दिलाता ही है. साथ ही आवश्यकता पड़ने पर वह संबंधित दूसरे पक्ष के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई भी कर सकता है. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act) से कई सारे अधिकार मिलते हैं. आइये जानते हैं क्या है उपभोक्ता न्यायालय और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम...


उपभोक्ताओं को मिलते हैं यह अधिकार
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में एक उपभोक्ता के लिए छह अधिकार शामिल किये गए हैं. जिसमें सुरक्षा का अधिकार, संसूचित (Communicated) किये जाने का अधिकार, चयन का अधिकार, सुनवाई का अधिकार, प्रतितोष पाने का अधिकार और उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार शामिल है. जिला स्तर पर जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच या आयोग, राज्य स्तर पर राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग या राज्य आयोग और राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग अथवा राष्ट्रीय आयोग में ग्राहक अपनी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं. छोटे मामले जिला स्तर, थोड़े बड़े मामले राज्य और उससे भी बड़े मामले राष्ट्रीय स्तर पर सुने जाते हैं. 


उपभोक्ता न्यायालय उपलब्ध कराता है सरल, जल्दी और किफायती न्याय
उपभोक्ता न्यायालय तीन वर्गों में बांटे गए हैं. जिला स्तर पर इसका नाम जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच या आयोग है. राज्य स्तर पर इसे राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग या राज्य आयोग कहा जाता है. जबकि राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग अथवा राष्ट्रीय आयोग लिखा जाएगा. धनराशि के वर्गीकरण के हिसाब से इन तीनों न्यायालय में उपभोक्ताओं की सुनवाई होती है. कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट ग्राहकों के हित में कई सारी विशेषताएं रखता है. इसके जरिए उपभोक्ता न्यायालय ग्राहकों को उचित और अतिरिक्त समाधान उपलब्ध करवाता है. अधिनियम के सारे प्रावधान क्षतिपूर्ति (compensation)  
और प्रतिपूरक (Compensatory) प्रकृति के हैं. 


वेबसाइट के मामले में भी दर्ज की जा सकती है शिकायत
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सभी वस्तुओं और सेवाओं पर लागू रहता है. इसमें निजी, सार्वजनिक और सहकारी क्षेत्र आते हैं. आजकल ऑनलाइन प्लेटफार्म पर खरीद-फरोख्त का चलन काफी बढ़ गया है. ऐसे में अगर ई-कॉमर्स वेबसाइट के जरिए आपसे कोई धोखाधड़ी कर रहा है तो इसकी शिकायत भी की जा सकती है. शिकायत में आपको वह दस्तावेज लगाने होंगे. जिसके माध्यम से पता चल सके कि आपके साथ धोखाधड़ी हुई है. भले ही वह आर्डर, बुकिंग, पेमेंट आदि के स्क्रीन शॉट्स ही क्यों न हों. अगर आप भी शिकायत दर्ज कराना चाहते हैं और जिला मंच की जानकारी नहीं है तो एनसीडीआरसी की वेबसाइट http://ncdrc.nic.in से जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं. 

बहुत भारी-भरकम सबूतों की नहीं पड़ती है जरूरत
कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट सिर्फ और सिर्फ उपभोक्ता के लिए बनाया गया है. इसकी शिकायत के लिए कोई भारी-भरकम सबूतों की आवश्यकता नहीं है. बल्कि जालसाजी या वस्तु-सेवा में कमी के प्रकरण को जस्टिफाई करते हुए उपलब्ध सबूत या कागजातों के आधार पर ही केस लड़ सकते हैं. बस आपको शिकायत में अपना पूरा नाम, विवरण, पता आदि सही तरीके से लिखना है. प्रयास करें कि अपनी शिकायत को टाइप करवा लें. इससे न्यायालय आसानी से आपकी बातों को समझ पाएगा. यह बात भी ध्यान रखनी है कि शिकायत करते समय दूसरी पार्टी (कोई कंपनी, नाम या फर्म, जिसने गलत सेवा या उत्पाद दिया है) का नाम, पता, फोन नंबर, वेबसाइट सहित सभी विवरण दर्ज कराने हैं. अगर किसी सेवा में कई कंपनियों का समावेश है तो सभी कंपनियों को पार्टी बनाया जा सकता है. इसके बाद शिकायत के तथ्य और उसके बारे में जानकारी देनी होगी. कब, कहां और कैसे उपभोक्ता हितों को कुचला गया है. अगर आप कोई आरोप लगाना चाहते हैं तो उसे भी लिख डालिए. अंत में संबंधित पार्टी से आप किस तरह की राहत चाहते हैं, इसका वर्णन भी करना होगा. 


रसीद न होने पर काम आते हैं अन्य सबूत
अगर उपभोक्ताओं के पास कोई रसीद नहीं है तो वह शिकायत करने अथवा अपनी बातों को न्यायालय के समक्ष ले जाने से हिचकिचाते हैं. लोगों का मानना है कि बिना रसीद हम कोर्ट में केस साबित कैसे करेंगे. यहां ऐसा सोचने की जरूरत नहीं है, क्योंकि रसीद न होने पर अन्य सबूत (जिन्हें सेकेंडरी एविडेंस में दाखिल किये जा सकते हैं) आपके हितों की रक्षा कर सकते हैं. देश में कोई रसीद दे या न दे, आप रसीद मांगे. रसीद न होने पर कोई विजिटिंग कार्ड, पर्ची या हाथ से तैयार की गई कोटेशन को भी लगा सकते हैं. जिस पर सेवा प्रदाता ब्रिकी के समय आपको तरह तरह के प्रलोभन देता है. इस तरह के दस्तावेजों को कोर्ट मानता है. वहीं, कई बार ऐसा होता है कि सेवा के लिए कागज जारी हुए, जो कहीं गुम हो गए हैं. ऐसे में थोड़े बहुत सबूतों के आधार पर शिकायत दर्ज करते हैं और कोर्ट को लगता है कि शिकायत सही लग रही है तो वह दूसरी पार्टी से भी कागजात ले सकता है. 


उपभोक्ता न्यायालय से यह ले सकते हैं लाभ
• वस्तुओं में निकाले गए दोष को दूर करा सकते हैं.
• खरीदी हुई वस्तु या सेवा को दोषमुक्त वस्तु अथवा सेवा से बदल सकते हैं.
• शिकायतकर्ता कीमत अथवा भुगतान वापस ले सकते हैं.
• उपभोक्ता मंच नुकसान की भरपाई के लिए क्षतिपूर्ति खुद भी निर्धारित कर सकता है. वह उचित दंडात्मक उपचार  कर सकता है.
• शिकायत वाली वस्तुओं के दोषों को दूर करा सकते हैं.
• अनुचित व्यापार प्रथा अथवा प्रतिबंधित व्यापार प्रथा को समाप्त करवा सकते हैं.
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