भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका के पहले राजकीय दौरे की काफी चर्चा है. समर्थक जहां इस दौरे को काफी सफल और ऐतिहासिक बता रहे हैं, वहीं आलोचक इसे हवा-हवाई कह रहे हैं और बता रहे हैं कि जमीन पर कुछ भी भारतीय प्रधानमंत्री हासिल नहीं कर सके हैं. वैसे, भारत और अमेरिका दोनों ही देशों के बीच काफी अहम करार हुए हैं. इसमें तकनीक के हस्तानांतरण को लेकर हुई डील को सबसे अधिक महत्वपूर्ण बताया जा रहा है. जब प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ने औपचारिक स्वागत के बाद आपसी बातचीत की तो उनकी चर्चा में टेक्नोलॉजी एक प्रमुक विषय था. इससे पहले जनवरी में आइसेट (यानी, इनीशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज) पर हस्ताक्षर हो चुके थे. संयुक्त बयान में टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप के चिह्नित कई क्षेत्रों में करीबन दो दर्जन क्षेत्रों पर दोनों नेताओं ने खास चर्चा की. दोनों ही देशों ने सेमी कंडक्टरों को लेकर समझौता किया है, जेट विमान की तकनीक का मामला फाइनल हुआ है तो ड्रोन के लिए भी डील लगभग फाइनल हो गयी है. यह सब दोनों देशों के बीच एक कामयाब रिश्ते और भारत के उभरते कद को दिखाता है.
मोदी और बाइडेन ने दिखाया कि रिश्ते दीर्घकालीन
बाइडेन प्रशासन के ह्वाइट हाउस में आने पर यह आशंका थी कि भारत और अमेरिका के रिश्ते पटरी से उतर सकते हैं. इसकी एक वजह तो यह थी कि ट्रंप के दौरान मोदी ने 'हाउडी मोदी' जैसे इवेंट कर ट्रंप के साथ अपनी नजदीकी कुछ अधिक ही सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित की थी. फिर, अमेरिका में जब दौर बदला और ट्रांसफर ऑफ पावर (जनवरी 2021) के दौरान अमेरिका में प्रदर्शन और दंगे हुए, वह भी अनपेक्षित थे. अनुमान लगाया गया कि बाइडेन एक डेमोक्रेट होने के नाते और व्यक्तिगत नापसंदगी के कारण भारत के अंदरूनी मसलों में दखल देंगे और मानवाधिकार व बाकी मसलों को लेकर भारत को परेशानी में डालेंगे, लेकिन वह चिंता खत्म हो गयी है. अभी जब 75 डेमोक्रेट सांसदों ने पत्र लिखकर कहा कि वह मोदी से मानवाधिकारों और अल्पसंख्यकों (यानी, मुस्लिमों) के ऊपर बातचीत करें, तो ह्वाइट हाउस ने साफ मना कर दिया. दरअसल, अभी चीन दोनों ही देशों का साझा शत्रु है और वैश्विक स्तर पर उसे नियंत्रित करने के लिए भारत और अमेरिका जैसे लाइक-माइंडेड देशों को साथ आना पड़ेगा. इस बात को समझते हुए दोनों देश आपस में साथ आ रहे हैं और आगे भी बढ़ते रहेंगे. भारत-अमेरिकी संबंधों में खास बात यह देखने को मिल रही है कि जॉर्ज बुश हों या ओबामा या ट्रंप हो या बाइडेन, संबंधों को उन्होंने तरजीह दी है. अमेरिका ने मोदी को वीजा देने से इनकार कर दिया था, तो उसकी कड़वाहट उन्होंने भुला दी और उसी तरह बाइडेन ने हाउडी मोदी यानी ट्रंप के लिए मोदी के प्रचार को दिल पर नहीं लिया.
तकनीक देने पर लगी रोक हटना बहुत बड़ी उपलब्धि
पीएम मोदी और राष्ट्रपति बिडेन की मुलाकात के दौरान और बाद में भी स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस एमके2 के जीई के एफ414 इंजिन के भारत में निर्माण को लेकर समझौता हुआ. यह समझौता बहुत बड़ा और बेहद अहम है. इसलिए, क्योंकि यह तकनीकी हस्तानांतरण की बात है. समझौता जनरल इलेक्ट्रिक एयरोस्पेस और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बीच हुआ है. समझौते की खास बात यह है कि 70 के दशक की शुरुआत से 1990 तक जो अमेरिका भारत को तकनीकी हस्तानांतरण (टेक्नोलॉजी ट्रांसफर) से वंचित रखे था और काफी कड़ाई से पेश आता था, वह दीवार अब ढह गयी है. जेट इंजन के साथ ही बेहद खास एक्यू रिपर ड्रोन, स्पेस मिशन और भारत में ही चिप बनाने से जुड़े समझौते भी हुए हैं. इसमें सभी समझौते अहम हैं, लेकिन इंजन बनानेवाली बात बेहद अलग है. इसकी वजह ये है कि जीई का एफ414 सैन्य एयरक्राफ्ट इंजन बोइंग के सुपर हॉर्नेट और साब ग्रिपेन जैसे लड़ाकू विमानों में लगाया जाता है. अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा और भारतीय अंतिरक्ष अनुसंधान संस्थान यानी इसरो के बीच भी समझौता हुआ है. इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष सहयोग को बढ़ावा देना है, और इससे भारत उन देशों में शामिल हो जाएगा जो अंतरिक्ष के क्षेत्र में अमेरिका के सहयोगी हैं. आर्टिमिस समझौते का हिस्सा बनने के बाद भारत और अमेरिका चंद्रमा पर सुरक्षित खोज को सुनिश्चित करने के लिए आंकड़े, तकनीक और संसाधन साझा करेंगे.
उभरता और नया भारत है अमेरिका का साथी
साल 2016 में पीएम मोदी ने अमेरिकी संसद में कहा था कि भारत और अमेरिका ने ऐतिहासिक हिचकिचाहट से पार पा लिया है. यह बात उन्होंने तब कही थी, जब आर्थिक मामलों और सुरक्षा से जुड़े समझौतों को तेज और मजबूत करने की अपील की थी. दरअसल, भारत और अमेरिका के रिश्ते कभी नरम और कभी गरम वाले रहे हैं, जिसमें कभी गरम वाला हिस्सा ही ज्यादा रहा है. यह अमेरिका ही था, जिसने 1965 में गेहूं का निर्यात रोकने की धमकी दी थी, वह भी तब जब हमारे घर में पाकिस्तान घुसा था औऱ वह भी चीन की दगाबाजी के महज तीन साल बाद. तब अमेरिकी भीख में मिले पैटन टैंकों पर पाकिस्तान इठलाता था और पाकिस्तान को मैनेज करना भी अमेरिका के लिए ठीक और आसान था, क्योंकि पाकिस्तान की अपनी कोई नीति तो थी नहीं. उस पर से वहां लोकतंत्र भी कभी पनप नहीं सका. इसके बाद पहले 1974 और फिर 1998 के परमाणु विस्फोटों ने अमेरिका को और नाराज किया. वह तो 2000 में बिल क्लिंटन की भारत यात्रा के बाद बर्फ पिघलनी शुरू हुई, और आखिरकार 2008 में एनएसजी यानी परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को मान्यता दी. तब तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने इसे नयी शुरुआत बताया था. इस पूरे दौर में अमेरिका ने तकनीक साझा करने से हमें वंचित रखा था और काफी कड़ाई से भारत के साथ पेश आता था.
आज जेट इंजन और अहम तकनीकों को साझा करने के लिए हुआ समझौता तकनीक साझा करने से वंचित रखने के दौर का अंत है. इतना ही नहीं, मई 2022 में जो आइसेट (इनीशियएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज) का समझौता हुआ था, उसका नेतृत्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और उनके अमेरिकी समकक्ष जेक सुलिवन कर रहे हैं. इस पहल के तहत डिफेंस, स्पेस, सेमीकंडक्टर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में तकनीकों को साझा किया जाना है. जाहिर तौर पर, भारत अब अमेरिका के साथ बराबरी के स्तर पर खड़ा है और अमेरिका भी उसी तरह से भारत को ट्रीट भी कर रहा है. यह नए, उभरते हुए भारत की बुलंद तस्वीर है.