India 74th Republic Day: भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आज़ादी मिले 75 साल से ज्यादा हो चुके हैं. आज भारत दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था है और आने वाले 10 सालों में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत भी बन जाएगा. भारत की तरक्की का आधार है हमारा संविधान.


हमें 15 अगस्त 1947 को आज़ादी मिली थी, लेकिन भारत एक गणराज्य इसके करीब ढाई साल बाद 26 जनवरी 1950 को बना. इसी दिन हमें वो हथियार या फिर कहें आधार मिला, जिसको आधार बनाकर आज भारत दुनिया का नेतृत्व करने की हैसियत में आ गया है. वो आधार था हमारा संविधान, भारत के नागरिकों का संविधान. 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान पूरी तरह से लागू हो गया. और तभी से इस दिन को हम गणतंत्र दिवस (Republic Day) के रूप में मनाते हैं.


भारतीय गणतंत्र के 73 साल पूरे


संविधान सभा में 26 नवंबर 1949 को देश के संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया गया था. नागरिकता, निर्वाचन और अंतरिम संसद से संबंधित प्रावधानों के साथ ही अस्थायी और संक्रमणकारी उपबंधों को इसी दिन से लागू किया गया. बाकी संविधान पूरी तौर से  26 जनवरी 1950 से लागू किया गया.यानी 26 जनवरी 1950 को संविधान में उसके प्रारम्भ की तारीख कहा गया. भारतीय गणतंत्र के 73 साल पूरे हो चुके हैं और इस दौरान हमने अलग-अलग क्षेत्रों में तरक्की की नई इबारत लिखी है.


दुनिया का अनोखा संविधान


भारत का संविधान करीब 60 देशों के अध्ययन के बाद तैयार किया गया था. संविधान के बनने में दो साल 11 महीने 18 दिन लग गए. संविधान में कई देशों के संविधान में समाहित तत्वों को लिया गया है इसके बावजूद इसकी अपनी अलग खासियत है. हमारा संविधान दुनिया में अनोखा है और वो बहुत सारी विशेषता हैं जो इसे बाकी देशों के संविधान से अलग करता है.


शासन का आधार है संविधान


भारत संसदीय प्रणाली की सरकार वाला एक प्रभुतासंपन्न, लोकतंत्रात्मक गणराज्य है. ये गणराज्य भारत के संविधान के मुताबिक चलता है. इसके शासन का आधार संविधान है. भारतीय संविधान उसमें निहित तत्वों और मूल भावनाओं की वजह से दुनिया का सबसे अनोखा संविधान है. हमारे संविधान की शुरुआत ही 'हम भारत के लोग (WE,THE PEOPLE OF INDIA) से होता है. इसी से जाहिर है कि संविधान ने देश के नागरिकों को सबसे ऊंचे ओहदे पर रखा है. मूल संविधान को स्वीकार करने के बाद भी इसमें वक्त-वक्त पर कई तरह के बदलाव होते रहे और इसमें वक्त के साथ अहम परिवर्तन किये जाते रहे है. मूल संविधान में एक प्रस्तावना, 22 भागों में बंटे 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं. उसके बाद से 105 संविधान संशोधन हो चुके हैं. अब 8 की बजाय 12 अनुसूचियां हैं. वहीं संशोधन के जरिए बहुत सारे अनुच्छेद में नए सेक्शन भी जोड़े गए हैं. दुनिया के किसी भी संविधान में इतने अनुच्छेद और अनुसूचियां नहीं है.


विशेषताओं से भरा है हमारा संविधान


भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है. इसमें 90 हजार से ज्यादा शब्द हैं. इसके अलावा इसकी एक खास बात ये है कि ये न तो लचीला है न ही सख्त. भारत के संविधान के तहत लोकतांत्रिक व्यवस्था संघात्मक भी है और एकात्मक भी. भारत के संविधान में संघात्मक संविधान की सभी विशेषताएं मौजूद हैं. साथ ही आपातकाल में भारतीय संविधान में एकात्मक संविधानों के अनुरूप केंद्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए भी प्रावधान किए गए हैं. एक ही संविधान में केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों के कार्य संचालन के लिए व्यवस्थाएं की गई है. राज्यो के लिए अलग से नागरिकता की व्यवस्था नहीं रखते हुए इसमें सिर्फ एक नागरिकता का प्रावधान रखा गया है. भारत सरकार का संसदीय रूप दुनिया में अनोखा है. देश में संसदीय संप्रभुता है तो न्यायिक सर्वोच्चता भी है. संसदीय संप्रभुता और न्यायिक सर्वोच्चता का ऐसा संतुलन दुनिया के किसी लोकतंत्र में देखने को नहीं मिलता है. भारत का संविधान एकीकृत और स्वतंत्र न्यायपालिका प्रणाली उपलब्ध कराता है. संविधान देश के नागरिकों को मौलिक अधिकार देता है और उनकी रक्षा भी करता है. इसके अलावा संविधान के चौथे भाग में उल्लेखित राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत भी दुनिया में अनोखे हैं. संविधान देश के नागरिकों को मौलिक अधिकार देता है तो उसके साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों को भी पूरा करने को कहता है. इन तमाम खासियतों के बावजूद संविधान में बदलाव के लिए व्यवस्था की गई है. कुछ मामलों में संविधान में संशोधन आसान है तो कुछ मामलों  में काफी जटिल.


प्रस्तावना है संविधान का आधार


उद्देशिका या प्रस्तावना जिसे PREAMBLE भी कहते हैं, हमारे संविधान का आधार है. इसे संविधान का सार कह सकते हैं. इसमें संविधान के अधिकार का स्रोत या सोर्स 'हम भारत के लोग' के जरिए देश के नागरिकों को बताया गया है. साथ ही भारतीय गणतंत्र के आदशों को भी स्पष्ट किया गया है. इसके जरिए भारत को संप्रभु, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाया गया है. संविधान और शासन के क्या उद्देश्य हैं, उसका भी जिक्र प्रस्तावना में किया है. इसमें कहा गया है कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय ही भारतीय लोकतंत्र का उद्देश्य है. विचार, अभिव्यक्ति, धर्म, विश्वास और उपासना की स्वतंत्रता को भारतीय गणतंत्र को बनाने वाले हर नागरिक के लिए सुनिश्चित किया गया है. साथ ही समता और व्यक्ति की गरिमा को महत्व दिया गया है. इन सबके साथ राष्ट्र की एकता और अखंडता को भी सुनिश्चित किया है.  


हर समुदाय का रखा गया है ख़ास ख्याल


कुछ चुनौतियों के बावजूद भारतीय संविधान देश के आम नागरिकों के साथ-साथ पिछड़े तबको, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को सुरक्षा और समानता की गारंटी देता है. हमारा संविधान देश को एक धर्मनिपरेक्ष राज्य बनाता है. भारत में 18 वर्ष से अधिक उम्र के हर नागरिक को जाति, धर्म, वंश, लिंग, साक्षरता के आधार पर भेदभाव किए बिना मतदान देने का अधिकार हासिल है. सबसे बड़ी बात है कि मतदान देने का अधिकार संविधान लागू होने के साथ ही सभी को एक साथ हासिल हुआ जो भारतीय संविधान की खास विशेषता है. बहुत कम देशों में संविधान लागू होने के साथ ही इस प्रकार की व्यवस्था देखी गई थी.  जब संविधान लागू हुआ था, उस वक्त मतदान के अधिकार के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 21 साल थी, जिसे 1989 में 61वें संविधान संसोधन कानून के जरिए घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया. भारतीय संविधान में विधायिका, कार्यपालिका और न्यापालिका के शक्तियों का अलग-अलग बंटवारा है. इसके अलावा संविधान में निर्वाचन आयोग, नियंत्रक और महालेखाकार, संघ लोक सेवा आयोग जैसे स्वतंत्र निकाय की भी व्यवस्था है जो लोकतांत्रिक तंत्र के अहम स्तंभों की तरह काम करते हैं. इसके अलावा मूल रूप से दो स्तरीय यानी केन्द्र और राज्य सरकारों के अलावा 73वें और 74वें संविधान संशोधन के बाद संविधान में तीन स्तरीय स्थानीय सरकार का प्रावधान है. ये हमारे संविधान की अहमियत को और बढ़ा देता है.


हर नागरिक को मूल अधिकार


हमारी संसदीय प्रणाली में संविधान सबसे ऊपर है. संविधान के जरिए ही हर नागरिक को कुछ अधिकार हासिल होते हैं. हमारे संविधान में सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मौलिक अधिकार दिए गए हैं. इन अधिकारों का मकसद ये हैं कि हर नागरिक सम्मान के साथ अपना जीवन जी सके और किसी के साथ किसी आधार पर भेदभाव नहीं हो. संविधान के भाग तीन में अनुच्छेद 12 से लेकर अनच्छेद 35 के बीच मौलिक अधिकारों का जिक्र है. ये ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिये बेहद जरूरी है और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नही कर सकता. संविधान में हर नागरिक को छह मौलिक अधिकार मिले हुए हैं. सबसे ख़ास बात ये है कि हमारे संविधान में इन मूल अधिकारों को राज्य के लिए बाध्यकारी बनाया गया है.  किसी व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने के नजरिए ये मूल अधिकार बेहद जरूरी हैं. 


स्थानीय स्तर पर सत्ता का विकेंद्रीकरण


ऐतिहासिक काल से ही ग्राम स्वराज भारत में लोकतंत्र के अवधारणा की बुनियाद रहा है. संविधान बनाते समय भी ये माना गया कि पंचायती व्यवस्था के जरिए ही ग्राम स्वराज को सही मायने में हासिल किया जा सकता है. इसको ध्यान में रखकर ही संविधान निर्माताओं ने पंचायती व्यवस्था को लागू करने का फैसला चुनी हुई सरकारों पर छोड़ दिया. मूल संविधान में पंचायतों का जिक्र सिर्फ राज्य के नीति निदेशक तत्व के तहत अनुच्छेद 40 में किया गया. विकास की राह में पंचायतों की अहमियत को समझते हुए1992 में संविधान में संशोधन किया किए गए. इस साल हुए 73वां संविधान संशोधन अधिनियम संवैधानिक दर्जा के तहत पंचायती राज व्यवस्था को पूरे देश में लागू किया गया. पंचायती राज की नई व्यवस्था के तहत तीन स्तर ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला पंचायत (जिला परिषद) पर पंचायत का गठन किया गया. वहीं 74वें संशोधन के जरिए पूरे देश में स्थानीय स्तर पर शहरी निकाय की व्यवस्था को अनिवार्य बना दिया गया.


संविधान में संशोधन के लिए अलग प्रक्रिया


संसद के कानून बनाने का अधिकार दिया गया है. संविधान ही हमारी संसदीय प्रणाली की बुनियाद है. यहीं वजह है कि संविधान में संशोधन की प्रक्रिया साधारण कानून बनने की प्रक्रिया से अलग रखी गई है. संविधान के भाग-20 में अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन से संबंधित प्रक्रिया का वर्णन किया गया है.  संविधान संशोधन से जुड़ी पूरी प्रक्रिया अनुच्छेद 368(2) में बताई गयी है. सामान्य कानून बनने में अगर संसद के दोनों सदनों में गतिरोध पैदा हो जाता है तो उसके लिए संविधान में अनुच्छेद 108 के तहत किसी विधेयक को पारित कराने के लिए दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन बुलाए जाने का प्रावधान किया गया है.  यह प्रावधान संविधान के संशोधन सम्बन्धी विधेयकों पर लागू नहीं होता. भारत के संविधान में अब तक 105 बार संशोधन हो चुके हैं.


संविधान की कुछ अनसुनी कहानियां


साल 1946 में जब कैबिनेट मिशन प्लान के तहत संविधान सभा का गठन हुआ तब बी एन राव (Benegal Narsing Rau) की कानून में रुचि और विशेषज्ञता को देखते हुए उन्हें संविधान सभा का संवैधानिक सलाहकार बनाया गया. ये वहीं शख्स हैं, जिन्होंने लोकतांत्रिक भारत के संविधान की नींव रखी थी. सर बी एन राव ने अक्टूबर 1947 में भारतीय संविधान का शुरुआती मसौदा तैयार किया था. बी एन राव के मूल मसौदे में 243 अनुच्छेद और 13 अनुसूचियां थीं. यही हमारे भारतीय संविधान का पहला मूल मसौदा यानि ड्राफ्ट था. संविधान सभा के तहत डॉ बीआर अंबेडकर के नेतृत्व में गठित मसौदा या प्रारूप समिति ने बी एन राव के तैयार किए गए मूल मसौदे पर ही विचार किया था और इसके अलग-अलग बिंदुओं का अध्ययन कर संविधान के अंतिम मसौदे को तैयार कर संविधान सभा के सामने रखा था. संविधान सभा ने इसी मसौदे पर तीन चरणों में विचार कर भारत के संविधान को 26 नवंबर 1949 को स्वीकर या अंगीकार किया था. आपको जानकर हैरानी होगी कि बीएन राव ने संविधान सभा में सारे समय अवैतनिक रूप में काम किया था. देश के संविधान बनाने में कई लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.  जब 29 नवंबर 1949 को संविधान स्वीकार किया गया तो उस संविधान पर संविधान सभा के 299 सदस्यों में 284 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे.


संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में बना संविधान


संसद भवन के केंद्रीय कक्ष (Central Hall) का गुबंद विश्व के भव्यतम गुम्बदों में एक है. भारत के इतिहास में इसकी खास जगह है. यहीं 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन ने भारत सत्ता हस्तान्तरित की. भारतीय संविधान की रचना भी केन्द्रीय कक्ष में ही हुई. शुरू में संसद भवन के केंद्रीय कक्ष का उपयोग केन्द्रीय विधान सभा और राज्य सभा के पुस्तकालय के रूप में होता था. बाद में 1946 में इसका स्वरूप बदला औऱ इसे संविधान सभा कक्ष में बदल दिया गया. 9 दिसंबर 1946 से 24 जनवरी 1950 तक यहीं संविधान सभा की बैठकें हुई और अहम फैसले लिए गए.


संविधान सभा से लिए गए कुछ महत्वपूर्ण फैसले:


-22 जुलाई 1947 को भारत के राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया गया.
-24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के सदस्यों ने अंतिम रूप से हस्ताक्षर किए.
-24 जनवरी 1950 को 'जन गण मन' को राष्ट्रीय गान के तौर पर अपनाया गया.
-24 जनवरी 1950 को ही 'वन्दे मातरम्' को jराष्ट्रीय गीत के तौर पर अपनाया गया.
-24 जनवरी 1950 को डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद को पहले राष्ट्रपति के रूप में चुना गया.


अधिकार और कर्तव्यों का समन्वय


26 जनवरी को तो हम गणतंत्र दिवस मनाते हैं. वहीं 26 नवंबर का दिन संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाता है. 19 नवंबर 2015 को भारत सरकार ने गजट नोटिफिकेशन के ज़रिए 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था. इसके बाद 26 नवंबर 2015 को पहला संविधान दिवस मनाया गया. किसी भी देश को जब उसका संविधान मिलता है, तो उसके पीछे एक लंबा संघर्ष और परिस्थितियां जुड़ी होती है. भारत के संविधान के साथ भी कुछ ऐसा ही है. भारतीय गणतंत्र का संविधान किसी राजनीतिक क्रांति का परिणाम नहीं है. ये यहां के जनता से चुने गए प्रतिनिधियों ( संविधान सभा ) के गहन शोध और विचार-विमर्श के बाद बना है. संविधान से ही हमें अधिकार भी मिलते हैं और कर्तव्यों का भान भी होता है. संविधान से ही देश के शासन के मूलभूत सिद्धांत और नियम कायदे सामने आते हैं. एक नागरिक के तौर पर हर लोगों को संविधान की बुनियादी बातों की जानकारी होनी चाहिए.


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