President Address: राष्ट्रपति के अभिभाषण से ही हर साल संसद के पहले सत्र की शुरुआत होती है. साल के पहले सत्र को बजट सत्र के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा लोक सभा के लिए हर आम चुनाव के बाद संसद के पहले सत्र में राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है.


दरअसल हमारे संविधान में राष्ट्रपति के अभिभाषण की व्यवस्था है. राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए संविधान में संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक (सेंट्रल हॉल में) का प्रावधान है. संसद की संरचना राष्ट्रपति, राज्य सभा और लोक सभा तीनों से मिलकर होती है. हालांकि राष्ट्रपति किसी भी सदन के सदस्य नहीं होते लेकिन राष्ट्रपति का अभिभाषण हमारी संसदीय प्रक्रिया का खास हिस्सा है.


संविधान में राष्ट्रपति के अभिभाषण का जिक्र


संसद, भारत संघ की सर्वोच्च विधायिका है और भारतीय संसदीय प्रक्रिया में राष्ट्रपति के अभिभाषण की बेहद ही खास जगह है. हमारे संविधान के अनुच्छेद 79 में संसद की व्यवस्था की गई है. इसके मुताबिक संघ के लिए एक संसद होगी, जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी जिनके नाम राज्य सभा और लोक सभा होंगे. इस तरह से राष्ट्रपति संसद का एक संघटक अंग हैं. संविधान के अनुच्छेद 86 और अनुच्छेद 87 में राष्ट्रपति के अभिभाषण के बारे में जिक्र है.


राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण


संविधान के अनुच्छेद 87 में कहा गया है कि राष्ट्रपति लोक सभा के लिए हर आम चुनाव के बाद पहले सत्र के शुरू होने पर और हर वर्ष के पहले सत्र की शुरुआत में एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण करेंगे और संसद को उसे बुलाए जाने के कारणों से अवगत कराएंगे. किसी भी वर्ष में के पहले सत्र को ही बजट सत्र कहा जाता है. यानी बजट सत्र के शुरू में संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है. इसके साथ ही लोक सभा चुनाव के बाद पहले सत्र के शुरुआत में भी राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए संयुक्त बैठक का प्रावधान है. अनुच्छेद 87 में जिस अभिभाषण का जिक्र है, उसे राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण कहते हैं.


एक और तरह का राष्ट्रपति के अभिभाषण


संविधान में एक और स्थिति का जिक्र किया गया है जब संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक या संसद के किसी एक सदन में राष्ट्रपति का अभिभाषण हो सकता है. इसका प्रावधान अनुच्छेद 86 में किया गया है. इसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति संसद के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण कर सकेंगे और इस प्रयोजन के लिए सदस्यो की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेंगे. हालांकि संविधान लागू होने से अब तक राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 86 के तहत संसद की किसी एक सभा में या दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में अभिभाषण नहीं किया है.


सरकार की नीतियों का विवरण


अमूमन हम जिस राष्ट्रपति के अभिभाषण का जिक्र करते हैं वो अनुच्छेद 87 के तहत है. अब बात राष्ट्रपति के अभिभाषण की विषय-वस्तु की जिसमें सरकार की नीतियों का विवरण होता है, इसलिए अभिभाषण का प्रारूप सरकार की ओर से तैयार किया जाता है. सरकार ही इसकी विषय-वस्तु के लिए उत्तरदायी होती है. राष्ट्रपति के अभिभाषण में पिछले वर्ष के सरकार के कार्य-कलापों और उपलब्धियों का जिक्र होता है. इसमें महत्वपूर्ण आंतरिक और मौजूदा अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के संबंध में सरकार की ओर से अपनाई जाने वाली नीतियों की भी झलक होती है. इसमें उन विधायी कार्यों का भी उल्लेख होता है, जिन्हें उस वर्ष के दौरान होने वाले सत्रों में संसद में लाने का विचार होता है.


राष्ट्रपति के अभिभाषण की प्रक्रिया


लोक सभा के लिए हर आम चुनाव के बाद पहले सत्र की दशा में राष्ट्रपति, सदस्यों के शपथ लेने और अध्यक्ष के चुने जाने के बाद संसद की दोनों सभाओं की संयुक्त बैठक में अभिभाषण करते हैं. राष्ट्रपति के अभिभाषण तक कोई दूसरा कार्य नहीं किया जाता है. राष्ट्रपति का अभिभाषण संविधान के अधीन एक गरिमापूर्ण और औपचारिक प्रक्रिया है. अभिभाषण के सिलसिले में कुछ औपचारिकताओं का भी पालन किया जाता है. दोनों सभाओं के सदस्य संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में राष्ट्रपति के आगमन से कम से कम पांच मिनट पहले पहुंच जाते हैं. सदस्यों से ये आशा की जाती है कि वे अभिभाषण के दौरान केंद्रीय कक्ष से बाहर नहीं जाएं. राष्ट्रपति राजकीय बग्घी या कार में बैठकर संसद भवन पहुंचते हैं और द्वार पर राज्य सभा के सभापति, प्रधानमंत्री, लोक सभा अध्यक्ष, संसदीय कार्य मंत्री और दोनों सदनों के महासचिव उनका स्वागत करते हैं. इसके बाद राष्ट्रपति, केंद्रीय कक्ष में जाते हैं. राष्ट्रपति के केंद्रीय कक्ष में प्रवेश करने पर मार्शल राष्ट्रपति के आगमन की घोषणा करते हैं. राष्ट्रपति के स्थान ग्रहण करने के बाद राष्ट्रगान की धुन बजाई जाती है. फिर राष्ट्रपति हिन्दी या अंग्रेजी में अभिभाषण करते हैं. इसके बाद अभिभाषण का रूपान्तरण राज्य सभा के सभापति (उपराष्ट्रपति) की ओर से पढ़ा जाता है.


राष्ट्रपति अभिभाषण को सभा की कार्यवाही का अंग बनाने और उसमें शामिल करने के लिए अभिभाषण की समाप्ति के आधे घंटे बाद दोनों सभाओं में अभिभाषण की एक-एक प्रति महासचिव सभा पटल पर रखते हैं. राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद संसद के दोनों सदनों राज्य सभा और लोक सभा में कार्यवाही में तय तिथि को इससे जुड़ा धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया जाता है. इसके बाद दोनों सदनों में इस पर चर्चा होती है और चर्चा के बाद धन्यवाद प्रस्ताव को दोनों सदनों से मंजूर किया जाता है.


राष्ट्रपति के अभिभाषण से जुड़ा है धन्यवाद प्रस्ताव


धन्यवाद प्रस्ताव (Motion of Thanks) संसदीय प्रक्रिया का बेहद ही महत्वपूर्ण हिस्सा है. धन्यवाद प्रस्ताव राष्ट्रपति के अभिभाषण से जुड़ा हुआ है. राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद संसद के दोनों सदनों राज्य सभा और लोक सभा में इससे जुड़ा धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया जाता है. इसके बाद दोनों सदनों में इस पर चर्चा होती है और चर्चा के बाद धन्यवाद प्रस्ताव को दोनों सदनों से मंजूर किया जाता है. राज्य सभा के प्रक्रिया और कार्य-संचालन विषयक नियम में इसकी प्रक्रिया बताई गई है. राज्य सभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के प्रारूप को किसी वर्ष के धन्यवाद प्रस्ताव से समझने की कोशिश करते हैं. सत्ता पक्ष का कोई सदस्य प्रस्तावक होता है. वो प्रस्ताव रखता है कि "राष्ट्रपति ने अमुक तारीख को संसद की दोनों सभाओं की सम्मिलित बैठक में जो अभिभाषण दिया है उसके लिए राज्य सभा के वर्तमान सत्र में उपस्थित सदस्य राष्ट्रपति के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं." इसके बाद दूसरे सदस्य के जरिए इसका समर्थन किया जाता है. लोक सभा में धन्यवाद प्रस्ताव का प्रारूप इस प्रकार होता है-"इस सभा में समवेत लोक सभा के सदस्य राष्ट्रपति के उस अभिभाषण के लिए, जो उन्होंने अमुक तारीख को एक साथ समवेत संसद की दोनों सदनों के समक्ष देने की कृपा की है, उनके अत्यंत आभारी हैं."


धन्यवाद प्रस्ताव पर लाए जा सकते हैं संशोधन


राज्य सभा के सभापति संविधान के अनुच्छेद 87 के खंड (1) के अधीन राष्ट्रपति के अभिभाषण में शामिल विषयों पर चर्चा के लिए, राज्य सभा के नेता के परामर्श से समय तय करते हैं. धन्यवाद प्रस्ताव पर ऐसे संशोधन भी लाए जा सकते हैं, जिसे सभापति सही समझें. राज्य सभा की नियमावली में कहा गया है कि सरकार की ओर से प्रधानमंत्री या किसी अन्य मंत्री को, चाहे उसने चर्चा में पहले भाग लिया हो या नहीं, चर्चा के अंत में सरकार की स्थिति स्पष्ट करने का सामान्य अधिकार होगा. सभापति को अधिकार है कि धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के लिए सदस्यों के भाषणों के लिए समय सीमा तय करें. राष्ट्रपति के अभिभाषण से जुड़े धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के लिए इसी तरह की प्रक्रिया लोकसभा में भी अपनाई जाती है.


दोनों सदनों में होती है धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा


चर्चा के लिए तय दिनों में दोनों सदनों में अलग- अलग अभिभाषण में शामिल विषयों पर चर्चा होती है. धन्याद प्रस्ताव पर चर्चा काफी व्यापक होती है. सदस्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सभी प्रकार की समस्याओं पर बोल सकते हैं. जिनका उल्लेख अभिभाषण में नहीं होता, उन मामलों में भी धन्यवाद प्रस्ताव में संशोधनों के जरिए चर्चा की जाती है. ऐसे संशोधन और चर्चा की सीमा ये है कि सदस्य एक तो उन मामलों का उल्लेख नहीं कर सकते जिनके लिए केंद्र सरकार सीधे तौर पर उत्तरदायी नहीं है और दूसरा, वे वाद-विवाद के दौरान राष्ट्रपति का नाम नहीं ले सकते. इसके पीछे वजह ये है कि अभिभाषण की विषय-वस्तु के लिए सरकार उत्तरदायी होती है, राष्ट्रपति नहीं. राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में संशोधनों की सूचनाएं राष्ट्रपति की ओर से अभिभाषण दिए जाने के बाद दी जा सकती है. संशोधन उन विषयों के बारे में दिए जाते हैं, जिनका उल्लेख अभिभाषण में किया गया हो. इसके साथ ही ऐसे विषयों के बारे में भी संशोधन दिए जा सकते हैं जिनका उल्लेख, सदस्य की राय में, अभिभाषण में किया जाना चाहिए था. हालांकि राज्य सभा में सभापति और लोक सभा में स्पीकर के उचित समझे जाने पर ही संशोधन पेश किए जा सकते हैं. चर्चा प्रस्ताव के प्रस्तावक की ओर से शुरू की जाती है. उसके बाद प्रस्ताव का समर्थक अपनी बात रखता है. प्रस्ताव के प्रस्तावक और समर्थक के नामों का चयन प्रधानमंत्री करते हैं और ऐसे प्रस्ताव की सूचना संसदीय कार्य मंत्री के जरिए सदन को दी जाती है. इसके बाद संशोधन पेश किए जाते हैं.  आवंटित समय का बंटवारा विभिन्न दलों के लिए सदन में उनकी संख्या के अनुपात में किया जाता है. धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा प्रधानमंत्री या किसी अन्य मंत्री के उत्तर दिए जाने पर खत्म हो जाती है. इसके तुरंत बाद संशोधन निपटाए जाते हैं और धन्यवाद प्रस्ताव मतदान के लिए रखा जाता है. इसके बाद धन्यवाद प्रस्ताव को सदन की मंजूरी मिल जाती है.


सरकार की नीतियों पर चर्चा का मौका


धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान अलग-अलग दलों के सांसद अपने विचार रखते हैं. सत्ता पक्ष के सांसदों के लिए ये सरकार की उपलब्धियां गिनाने का मौका होता है. वहीं विपक्षी दल के सांसद सरकार की नीतियों में खामियां गिनाने के लिए अपने तर्क रखते हैं. चूंकि धन्यवाद प्रस्ताव पर काफी  लंबी बहस होती है. इस वजह से सरकार की नीतियों से जुड़े हर पक्ष पर सदस्यों को अपनी बात रखने का मौका मिल जाता है. दोनों सदनों से धन्यवाद प्रस्ताव मंजूर होना जरूरी है. लोकसभा में धन्यवाद प्रस्ताव का पारित होना सरकार की नीतियों के प्रति सहमति माना जाता है. धन्यवाद प्रस्ताव मंजूर किए जाने के बाद लोक सभा स्पीकर एक पत्र के जरिए इसकी सूचना सीधे राष्ट्रपति को देते हैं.


आजादी के पहले से परिपाटी


राष्ट्रपति के अभिभाषण का प्रावधान हमारे संविधान में किया गया है. हालांकि आजादी से पहले भी ब्रिटिश हुक़ूमत में इसी तरह की परंपरा थी. अभिभाषण से जुड़े धन्यवाद प्रस्ताव पर ऐसे तो संशोधन नहीं लाने की परंपरा रही है लेकिन कुछ मौके ऐसे भी आए हैं जब राज्य सभा में संशोधन को मंजूरी मिली है. राष्ट्रपति के अभिभाषण से मतलब है राष्ट्र के प्रमुख की ओर से अभिभाषण. इसकी परिपाटी भारत में आजादी के पहले से है. राज्याध्यक्ष की ओर से संसद में अभिभाषण की ये व्यवस्था भारत सरकार अधिनियम 1919 के तहत साल 1921 में पहली बार स्थापित किये गये केन्द्रीय विधानमंडल के समय से चली आ रही है. लेकिन आजादी के बाद साल 1950 में जब संविधान लागू हुआ तब साल में संसद के तीन सत्र की व्यवस्था की गई. उस समय यह अनुभव किया गया कि राष्ट्रपति का अभिभाषण एक साल में तीन बार होने से अभिभाषण पर चर्चा करते समय बार-बार वही मुद्दे दोहराए जाएंगे और उन पर काफी समय लगेगा. इसके अलावा इस प्रक्रिया में कुछ प्रशासनिक कठिनाइयां भी थीं. इसलिए 1951 में हुए पहले संविधान संशोधन के तहत ये प्रावधान किया गया कि राष्ट्रपति का अभिभाषण लोक सभा के लिए प्रत्येक आम चुनाव के बाद होने वाले प्रथम सत्र के शुरुआत में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र (बजट सत्र) के शुरू में ही होगा.


धन्यवाद प्रस्ताव में संशोधन का इतिहास


राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में संशोधन पेश किए जाने की बात करें तो इस बारे में लोक सभा और राज्य सभा की नियमावली में प्रावधान किया गया है. वैसे तो अधिकांश मौकों पर धन्यवाद प्रस्ताव में संशोधन नहीं लाने की परंपरा रही है, लेकिन भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में कुछ मौके ऐसे भी आए हैं, जब राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान संशोधन पारित हुए हैं. 2015 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण के बाद धन्यवाद प्रस्ताव पर संशोधन को राज्य सभा से मंजूरी मिली थी. तब राज्य सभा में सीपीएम सांसद सीताराम येचुरी ने धन्यवाद प्रस्ताव में यह कह कर संशोधन प्रस्ताव पेश किया था कि राष्ट्रपति के अभिभाषण में कहीं भी काला धन और भ्रष्टाचार का उल्लेख नहीं है. सरकार की तरफ से संशोधन वापस लेने का अनुरोध किया गया, लेकिन सीपीएम संशोधन की मांग पर अड़ी रही. तब इस मसले पर वोटिंग कराई गई, जिसमें 118 सांसदों ने संशोधन के पक्ष में और 57 ने संशोधन के खिलाफ वोट किए. इसके बाद धन्यवाद प्रस्ताव को संशोधन के साथ पारित करना पड़ा. 


पहले भी हुए हैं संशोधन


इसके बाद लगातार दूसरे साल 2016 में भी ऐसा ही मौका आया. उस वक्त राज्य सभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने राजस्थान और हरियाणा में पंचायत चुनावों के लिए उम्मीदवारों की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित किए जाने के संबंध में संशोधन प्रस्ताव पेश किया. ये प्रस्ताव स्वीकार किए जाने के बाद वोटिंग हुई, जिसमें सदन में उपस्थित 155 सदस्यों में 94 ने प्रस्ताव के समर्थन में वोट दिया था. इससे पहले भी तीन बार सदन में ऐसे मौके आए, जब धन्यवाद प्रस्ताव में संशोधन हुआ. सबसे पहले 1980 में जनता पार्टी की सरकार के दौरान सीपीआई सांसद भूपेश गुप्त राज्य सभा में संशोधन का प्रस्ताव लाए थे. उन्होंने तर्क दिया था कि अभिभाषण में विधान सभाओं में दल-बदल और उन्हें भंग किए जाने से संबंधी प्रयासों का ज़िक्र नहीं किया गया है. दूसरा मौका आया 1989 में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार में आया, जब एक साथ छह संशोधन पारित किए गए. इनमें राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद और इसे सुलझाने के प्रस्तावित उपाय, राज्य सरकारों को अस्थिर करने के प्रयासों से जुड़ा मुद्दा, काम के अधिकार को मौलिक अधिकार के तौर पर सुनिश्चित करने से जुड़ा मामला और भारत-श्रीलंका समझौते से जुड़े विषय शामिल थे. साथ ही आनंदपुर साहिब प्रस्ताव संबंधी मुद्दे और 1989 में कुछ आतंकियों को रिहा किए जाने का मुद्दा भी शामिल था. तीसरी बार 2001 में एनडीए सरकार के दौरान भी राज्य सभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में संशोधन पारित हुए थे. सदन ने बाल्को कंपनी के विनिवेश के मुद्दे से जुड़ा संशोधन मंजूर किया  था. तब सरकार ने सार्वजनिक उपक्रम बाल्को को निजी क्षेत्र की कंपनी को बेचने का फैसला किया था.


ये भी पढ़ें:


Republic Day: भारतीय गणतंत्र के 73 साल, संविधान की ताकत से दुनिया का नेतृत्व करने की बनी हैसियत