कहते हैं इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के इस युग में डेटा ही तेल सामान है, मतलब उसका महत्त्व बहुत ज्यादा है, और बिना डेटा के कोई भी काम होना बहुत कठिन हो गया है. जैसे-जैसे डेटा का उपयोग बढ़ रहा है, उसके शोधन के तरीके भी बढ़ रहे हैं, वहीं ऐसी टेक्नोलॉजी भी आ गयी हैं जो आपके डेटा का इस्तेमाल कर कई प्रकार के हैरतअंगेज कार्य कर सकती है. ऐसी ही टेक्नोलॉजी है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जिसने तकनीकी दुनिया को हमेशा के लिए बदल डाला है. ChatGPT ,गूगल बार्ड जैसे टूल्स आश्चर्जनक जानकारियों का खजाना बन गए हैं, जो रिसर्च,एजुकेशन, प्रोडक्टिविटी को अलग स्तर पर ले गए हैं, वहीं न्यूरल नेटवर्क, डीप लर्निंग, मशीन लर्निंग ने सेल्स, मार्केटिंग, सोशल मीडिया, और एंटरटेनमेंट जैसे क्षेत्रों को बदल डाला है.


हर महान टेक्नोलॉजी का दूसरा भी पहलू


हरेक तकनीक के स्याह पहलू भी होते हैं, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी इसका अपवाद नहीं है. इस तकनीक के कई खतरे हैं, जिनमे से डीपफेक के बारे में तो लोग आजकल बात भी करते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भाजपा के दिवाली मिलन कार्यक्रम में पत्रकारों को संबोधित करते हुए डीपफेक तकनीक से उत्पन्न खतरों के प्रति लोगों को सचेत भी किया. प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर विस्तार से बात की और उल्लेख किया कि उन्होंने एआई कंपनियों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा बनाई गई सामग्री को टैग करने का सुझाव दिया है ताकि उपयोगकर्ताओं को पहले से चेतावनी दी जा सके. उन्होंने अपने खुद के डीपफेक वीडियो का उदाहरण भी दिया जिसमें पीएम को गरबा करते हुए देखा जा सकता है, जबकि उन्होंने अपने स्कूल के बाद से कभी गरबा नहीं किया था. यह अच्छा है कि हम अंततः एआई की वास्तविकता से अवगत हो रहे हैं और इस तकनीक के संभावित खतरों के बारे में बात कर रहे हैं, हालांकि हम इस तकनीक के एक बेहद गंभीर दुष्प्रभाव की उपेक्षा कर रहे हैं, या शायद उसके बारे में जानते ही नहीं हैं. 



एआई बायस है गंभीर खतरा


अगर हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के पूर्वाग्रह की बात करें, जिसे AI Bias भी कहते हैं, तो इसके खतरे गंभीर हैं. AI द्वारा हर काम को करने के लिए एल्गोरिदम का उपयोग किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं, अगर ये एल्गोरिदम ही किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित हों, तो यह आपके चुनावों को प्रभावित कर सकता है, कुछ ख़ास विचारधाराओं और दृष्टिकोणों के खिलाफ समन्वित प्रचार को बढ़ावा दे सकता है और आपके सोचने समझने के तरीके को बाधित भी कर सकता है. चैटजीपीटी का उपयोग व्यापक होने के साथ, भारतीय उपयोगकर्ता अब इसकी प्रतिक्रियाओं में असामान्य पूर्वाग्रहों की खोज कर रहे हैं. कुछ महीनों पहले हमने देखा था, कि कैसे चैटजीपीटी पर हिन्दू देवी देवताओं जैसे राम और कृष्ण पर मजाक बनाने को कहते थे, तो वह उत्तर दे देता था, वहीं किसी और मजहब और धर्म पर मजाक प्रस्तुत करने पर वह तुरंत मना कर देता था, और साथ ही एक चेतावनी भी दे देता था, कि इस तरह का कंटेंट प्रस्तुत करना उनकी पालिसी के विरुद्ध है. यह दोहरे मापदंड का एक उदाहरण था, जिसका कारण बस पूर्वाग्रह ही है. पिछले दिनों एक भारतीय उद्यमी अरुण पुदुर ने एआई का उपयोग करने के अपने अनुभव के बारे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट साझा किया. उनके पोस्ट के अनुसार, वह एक समाचार वेबसाइट द्वारा प्रकाशित एक लेख को सारांशित करने के लिए गूगल Bard का उपयोग कर रहे थे और बॉट ने लेख को सारांशित करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह अनुरोध को पूरा नहीं कर सकता क्योंकि लेख एक पक्षपाती स्रोत से था जो गलत जानकारी फैलाता है.


दोहरे मापदंड से हो सकती है समस्या


यह भी एक दोहरा मापदंड था, क्योंकि बोट ने सीधे सीधे एक स्वतंत्र न्यूज़ संस्था को पक्षपाती बोल दिया, बिना यह जानकारी दिए कि ऐसा क्यों किया गया. हमारे देश में हजारों न्यूज़ संस्था हैं, लेकिन उनमे से किसी एक-दो को ऐसे पक्षपाती बोलना तो बिलकुल गलत है. क्या बार्ड ऐसे ही दूसरे न्यूज़ संस्थाओं को भी पक्षपाती बोलेगा, जो दूसरी राजनीतिक दलों के पक्ष में लिखते हैं? उत्तर है 'नहीं', और यही है इनका दोहरा मापदंड, जो आता है पूर्वाग्रह से. एआई पूर्वाग्रह एक वास्तविक समस्या है जो दुनिया भर में लोकतंत्रों को खतरे में डाल सकती है. यूके में ईस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, चैटजीपीटी एक व्यवस्थित और महत्वपूर्ण वामपंथी पूर्वाग्रह दिखाता है. अगस्त 2023 में पब्लिक चॉइस जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि चैटजीपीटी की प्रतिक्रियाएं उदारवादी शासनों के पक्ष में झुकी हुई हैं, जैसे यूके में लेबर पार्टी के पक्ष में, अमेरिका में डेमोक्रेट के पक्ष में, और ब्राजील में वर्कर्स पार्टी के वामपंथी राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा के पक्ष में. और यह मात्र कुछ उदाहरण ही हैं.


एआई मॉडल में पूर्वाग्रह कहां से?


आम धारणा के विपरीत, एआई मॉडल तटस्थ या निष्पक्ष नहीं हैं. ये मॉडल मानव डेवलपर्स द्वारा जोड़े गए डेटासेट से फीड किए गए एल्गोरिदम पर चलते हैं, इसलिए AI मॉडल अनिवार्य रूप से मनुष्यों द्वारा ही प्रशिक्षित होते हैं, ऐसे में मनुष्यों में व्याप्त पूर्वाग्रह का इन मॉडल्स में होना एक वास्तविकता है. चैटजीपीटी जैसे एआई चैटबॉट बिना मानव के मार्गदर्शन के सीखने की प्रक्रिया करते हैं, लेकिन जिस तरह के डेटा के संपर्क में वह आते हैं, उससे उनका प्रभावित होना अवश्यम्भावी होता है. उदाहरण के लिए, यदि कोई एआई बॉट केवल हिंदूफोबिक लेखों और शोध के संपर्क में आता है, तो हिंदू धर्म से संबंधित किसी भी प्रश्न का उसका उत्तर पक्षपातपूर्ण ही होगा, क्योंकि उनकी लर्निंग ही एकपक्षीय डेटा सेट पर हुई होगी. यही बात इस्लामोफोबिक या होमोफोबिक कन्टेन्ट के साथ भी हो सकती है. यह डेवलपर्स के सचेत पूर्वाग्रहों का परिणाम है, साथ ही इंटरनेट पर हावी दृष्टिकोण के प्रभावी होने का भी दुष्प्रभाव है. AI बॉट्स के पास स्वयं की चेतना नहीं होती है. वे जानकारी और अंतर्दृष्टि के लिए इंटरनेट को स्कैन करते हैं और फिर आपके प्रश्न का सर्वोत्तम संभव उत्तर देते हैं.


इंटरनेट और एआई तकनीकी परिदृश्य स्वयं पश्चिमी ताकतों द्वारा नियंत्रित है जो नव-उपनिवेशीकरण के साधन के रूप में एआई का तेजी से उपयोग कर रहे हैं. जब भारत की बात आती है, तो हम वर्ल्ड वाइड वेब का उपयोग करने के लिए पूरी तरह से पश्चिम द्वारा बनाए गए पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर हैं. चाहे वह गूगल सर्च इंजन हो, Facebook, इंस्टाग्राम या ChatGPT, हमें अनिवार्य रूप से पश्चिम द्वारा विकसित AI मॉडल के माध्यम से प्रभावित किया जा रहा है. हम अपने ही डेटा सेट और एआई एल्गोरिदम के माध्यम से अमेरिका और यूरोप को अपने विश्वदृष्टिकोण को हम पर थोपने की अनुमति दे रहे हैं. 


आगे की राह 


भारतीय चिंतन और अध्यात्म का, विश्वदृष्टि का प्रचार करने के लिए भारत को अपने स्वयं के एआई एल्गोरिदम विकसित करने और प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है. एआई पूर्वाग्रह का मुकाबला करने का शायद यही एकमात्र तरीका है. यदि भारत विरोधी ताकतें वास्तव में अपने स्वयं के पूर्वाग्रहों को प्रचारित करने के लिए एआई का सक्रिय रूप से उपयोग कर रही हैं, तो हमें एआई का अपना संस्करण बनाने की जरूरत है जो भारत समर्थक हो. कई हित समूहों और हितधारकों द्वारा बढ़ती मध्यस्थता वाली दुनिया में, ज्ञान अब उदासीन नहीं रह सकता है. हमें एआई के निष्क्रिय उपभोक्ताओं और बड़ी तकनीकी कंपनियों की सफेदपोश कार्यबल के रूप में अपनी भूमिका से आगे बढ़ कर सोचना होगा, और लगातार विकसित हो रहे एआई विमर्श में सक्रिय खिलाड़ी बनना ही पड़ेगा.