रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए भारत लगातार प्रयास कर रहा है. सरकार आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत देश में रक्षा क्षेत्र से जुड़े उद्यमों व अनुसंधान को बढ़ावा दे रही है. इसी क्रम में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) सेक्टर जोकि भारत की अर्थव्यवस्था का रीढ़ माना जाता है और उसके योगदान के बिना वर्ष 2047 तक रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को पाना मुश्किल होगा. चूंकि, MSMEs भारतीय सेना के आयुधों के छोटे उपकरणों के कल-पुर्जे के निर्माण की महत्वपूर्ण भूमिका हमेशा रही है. हालांकि, कोरोना संक्रमण के दौरान MSMEs सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित रहा है. लेकिन अब उसे फिर से रिवाइवल की ओर ले जाने के लिए सरकार ने बजट-2023 में संशोधित क्रेडिट गारंटी योजना के तहत 9000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है. इससे  MSMEs इकाइयों को 2 लाख करोड़ रुपये तक के कोलेटरल फ्री क्रेडिट गारंटी भी दी गई है और साथ ही क्रेडिट की लागत को 1 प्रतिशत तक कम कर दिया गया है.


रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने में एमएसएमई की भूमिका सर्वोच्च


दरअसल, 25 फरवरी को पोस्ट बजट-2023 पर असम के दुलियाजान, डिब्रूगढ़ में आयोजित MSME क्षेत्र के लिए एक कार्यक्रम केंद्रीय बंदरगाह, नौवहन, जलमार्ग व आयुष मंत्री सर्बानंद सोनेवाल ने एमएसएमई क्षेत्र को सशक्त बनाने, उसके द्वारा बनाए जा रहे उत्पादों की प्रदर्शनी और भविष्य के उद्यमों को लेकर चर्चा कर रहे थे. उन्होंने कहा कि MSMEs को सक्षम बनाने के लिए कौशल वृद्धि प्रशिक्षण कार्यक्रमों (skill development training program) पर हमें ज्यादा फोकस करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लक्ष्य तक पहुंचने में एमएसएमई की भूमिका सर्वोच्च है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारा लक्ष्य साल 2047 तक देश को आत्मनिर्भर व विकसित बनाने का लक्ष्य है और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अर्थव्यवस्था और समाज को सक्षम बनाने में एमएसएमई की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. 


उन्होंने कहा कि आगामी 25 वर्षों के दौरान हम दुनिया का सबसे अच्छा देश बनने की सपना देख रहे हैं और इसमें MSMEs एजेंट ऑफ चेंज बन सकते हैं क्योंकि उनके पास इसकी क्षमता है. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के नवोदित उद्यम विश्व को एक नया अवसर दे सकता है. इन अवसरों का लाभ उठाने के लिए, हमें सर्वोत्तम ज्ञान के साथ-साथ स्वयं को सक्षम बनाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इसके लिए बजट में नीतिगत संशोधन किए गए हैं, जिससे देश में एमएसएमई इकाइयों को कारोबार करने में और आसानी होगी.


2027 तक हथियारों की खरीद में 70 प्रतिशत तक आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य


भारत विश्व में अब तक हथियारों के सबसे बड़े आयातक देशों में शुमार रहा है. चूंकि सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए हम रूस, अमेरिका और इजरायल जैसे देशों से हथियारों और तकनीक की खरीद करते रहे हैं. इसलिए सरकार रक्षा क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वदेशीकरण और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों के जरिए रक्षा क्षेत्र के छोटे व बड़े विनिर्माण इकाइयों को प्रोत्साहित कर रही है. सरकार ने इन इसके लिए वर्ष 2027 तक हथियारों की खरीद में 70 प्रतिशत तक आत्मनिर्भरता हासिल करने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए रक्षा क्षेत्र से जुड़े उपकरणों का स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा देने के लिए MSMEs को गति दी जा रही है. एमएसएमई ने खुद को रक्षा क्षेत्र में छोटे उपकरणों का स्वदेशी तरीके से निर्माण कर अपनी भूमिका को साबित भी किया है और ऐसा केवल इसलिए नहीं है कि एमएसएमई अब तक रक्षा आपूर्ति करता रहा है, बल्कि एमएसएमई क्षेत्र की विनिर्माण की गहराई के कारण भी है, जो अपनी बढ़ती उपस्थिति और तकनीकी कौशल को देश के सामने रखा है.


दिसंबर 2021 तक कुल MSMEs की संख्या 12,000


रक्षा क्षेत्र की 16 बढ़े सार्वजनिक इकाइयों (Defence Public Sector Undertakings) को आपूर्ति करने वाले एमएसएमई की संख्या वित्त वर्ष 18 में 7,591, वित्तीय वर्ष-19 में 8,643 और वित्तीय वर्ष 20 की दूसरी तिमाही तक 10,506 थे जिनकी संख्या दिसंबर 2021 तक बढ़कर 12,000 हो गई है. वहीं, एमएसएमई से DPSUs द्वारा खरीद मूल्य वर्ष 19 में 4842.92 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 21 में 5463.82 करोड़ रुपये रहा है. रक्षा मंत्रालय ने कुल 209 वस्तुओं की हैं जिनकी उन्हें जरूरत है और इनका निर्माण देश में ही किया जाना है. फरवरी 2022 में रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इनमें आर्टिलरी गन, पहिएदार बख्तरबंद लड़ाकू वाहन, मिसाइल पोत, रडार, कम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल आदि शामिल हैं.


रक्षा एक्सीलेंस के लिए iDEX की स्थापना


रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020 में 100 करोड़ रुपये तक के ऑर्डर दिए गये थे. इससे साथ ही रक्षा एक्सीलेंस हासिल करने व नवाचार को बढ़ाने के लिए (iDEX) को अप्रैल 2018 में लॉन्च किया गया है. iDEX का उद्देश्य एमएसएमई, स्टार्टअप को शामिल करके रक्षा और एयरोस्पेस में नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देने के लिए देश में एक माहौल तैयार करना है. अनुसंधान एवं विकास संस्थान ( R&D Institute) उन्हें शिक्षा और अनुसंधान एवं विकास के लिए वित्त पोषण और तकनीकी सहायता प्रदान करते हैं.


MSMEs को DRDO देती है तकनीकी मदद


रक्षा ऑफसेट दिशा-निर्देशों ने एमएसएमई को भारतीय ऑफसेट पार्टनर (आईओपी) के रूप में शामिल करने के लिए 1.5 के मल्टीप्लायरों की एक योजना के तहत इनकी सक्रिय भागीदारी का मार्ग प्रशस्त किया है, जो वैश्विक सप्लाई चेन में उनके एकीकरण व हिस्सेदारी को बढ़ावा देगा.  MSMEs डीआरडीओ की परियोजनाओं में महत्वपूर्ण भागीदार हैं और  DRDO उन्हें प्रौद्योगिकियां हस्तांतरित करता है. वे डीआरडीओ द्वारा विकसित उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए औद्योगिक इकोसिस्टम में महत्वपूर्ण भागीदार हैं. डीआरडीओ अपनी योजना प्रौद्योगिकी विकास योजना (टीडीएफ) के माध्यम से उद्योगों, विशेष रूप से स्टार्ट-अप और एमएसएमई को 10 करोड़ रुपये तक की आर्थिक मदद देता है.  


रक्षा उत्पादन विभाग (DDP) रक्षा और एयरोस्पेस के क्षेत्र में नवाचार, अनुसंधान और विकास के लिए संभावित निर्यात अवसरों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए उद्योग संघों और विशेष रूप से एमएसएमई व शिक्षाविदों के साथ बातचीत करने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में आउटरीच कार्यक्रम (outreach program) आयोजित करता है. इसके अलावा डीपीएसयू में विक्रेताओं की शिकायतों के समाधान के लिए नियमित बातचीत को भी सुनिश्चित किया जा रहा है. साथ ही एमएसएमई विक्रेताओं की समस्याओं का समाधान व निदान के लिए DDP में एक रक्षा निवेशक प्रकोष्ठ खोला गया है.


MSMEs का देश के जीडीपी में लगभग 30 प्रतिशत तक योगदान


MSMEs अपने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के माध्यम से भारत के जीडीपी में लगभग 30 प्रतिशत तक का योगदान देते हैं. वे कृषि क्षेत्र के बाद लगभग 10 करोड़ लोगों को रोजगार देने में सक्षम हैं. एमएसएमई बड़े उद्यमों में अन्वेषकों और मध्यस्थों को शामिल करने के लिए भी काम करते हैं. वे वैल्यू चेन और सप्लाई चेन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनकर बड़ी औद्योगिक संस्थाओं के उद्देश्यों को पूरा करने में मदद करते हैं. भारतीय निर्माता और उनसे जुड़े एमएसएमई देश की रक्षा जरूरतों को पूरा करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ-साथ वैश्विक आवश्यकताएं भी पूरी कर सकते हैं.