Union Cabinet approves Green Hydrogen Mission: देश में एक तरफ जहां पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर निर्भरता कम करने के लिए इलेक्ट्रिक जैसी चीजों को बढ़ावा दिया जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ मोदी सरकार स्थायी विकल्प तलाशने के लिए बड़ा कदम उठाया है. स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन, भविष्य की जरूरतों और जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय कैबिनेट ने हरित हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी है.


प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के दिन साल 2021 में राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन का एलान किया था. इस योजना के तहत साल 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है. इस मिशन के लिए 19 हजार 744 करोड़ रुपए की मंजूरी दी है. मिशन के तहत भारत को ग्रीन हाइड्रोजन का हब बनाने की दिशा में काम किया जाएगा.  


क्या है ग्रीन हाइड्रोजन? 


ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के दो तरीके हैं- पहला है पानी का इलेक्ट्रोलिसिस. इसमें पानी को बिजली से गुजारा जाता है. दूसरा प्राकृतिक गैस के हाइड्रोजन और कार्बन को तोड़ लिया जाता है. इलेक्ट्रोलिसिस में स्वच्छा ऊर्जा इस्तेमाल हुई है तो उससे बनने वाली हाइड्रोजन ग्रीन कहलाएगी.


सरकार ने कार्बन उत्सर्जन की समस्या को दूर करने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन मिशन शुरुवात की है. भारत ही नहीं विश्व भर के देश कार्बन उत्सर्जन कम कर एक सवच्छ उर्जा स्त्रोत की तरफ बढ़ रहे है. इसलिए भारत ने ग्रीन हाइड्रोजन की तरफ अपना रुख किया है. केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा है कि भारत ग्रीन हाइड्रोजन का ग्लोबल हब बनेगा. हर साल 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का निर्माण किया जाएगा और 6 लाख लोगों को नौकरियां भी मिलेगी.


2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का लक्ष्य


भारत सरकार का लक्ष्य 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का निर्माण करना है. इस ग्रीन एनर्जी से देश की रिन्यूवल एनर्जी क्षमता में 125 मेगावाट की बढ़ोतरी होगी. सरकार इस प्रोजेक्ट को लागू करने पर 17 हजार 490 रुपये खर्च करेगी. भारत के पास खुद का पेट्रोल-डीजल और अन्य पेट्रोलियम उत्पाद उपल्बध नहीं है. ये दूसरे देशों से आयात किया जाता है.


क्या भविष्य में बढ़ेगी ग्रीन हाइड्रोजन की मांग?


भविष्य में ग्रीन हाइड्रोजन की मांग बढ़ेगी. इस उर्जा का इस्तेमाल भारी वाहन चलाने के लिए भी किया जाएगा. रेल और उद्योगों में भी इस को उपयोग पर जोर दिया जाएगा. इसलिए रिलायंस और अडानी जैसी बड़ी कंपनियां इस दिशा में तेजी से  काम कर रही है. कार्गो जहाज, कार और लंबी दूरी तक चलने वाले ट्रकों के लिए ग्रीन हाइड्रोजन एक अच्छा विकल्प है. भारत में वर्तमान समय में इस की मांग 67 से 70 लाख टन की है. इसलिए इस तकनीकी को बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है. अगर हम ज्यादा से  मात्रा में इसका उत्पादन करेंगे तो देश इसका एक्सपोर्ट भी करेंगा.


पेट्रोल-डीजल से भी ज्यादा खतरनाक है ग्रीन हाइड्रोजन 


ग्रीन हाइड्रोजन के जितने फायदे हैं उतने खतरे भी है. इस खतरे को अनदेखा नहीं कर सकते है. इससे सुरक्षा का बड़ा रिस्क है. ग्रीन हाइड्रोजन बहुत ज्वलशील होता है. अगर पेट्रोल-डीजल का टैंक लीक होगा तो वह जमीन पर फैल जाएगा. लेकिन ग्रीन हाइड्रोजन का टैंक लीक होता है तो इसका अंजाम भयानक हो सकता है.  साल 2011 में जापान में भूंकप और सुनामी आई जिससे तबाही हुई. इसकी वजह से जापान के फुफुशिया न्यूक्लियर पावर स्टेशन में हाइड्रोजन की वजह से एक बड़ा धमाका हुआ जिससे रेडियोएक्टिव लीकेज हो गया. इसका असर आज भी वहां देखने को मिलता हैं.


ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का अर्थव्यवस्था पर क्या पड़ेगा असर 


केंद्र सरकार ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को लेकर जिस स्तर पर तैयारियां कर रही है. इससे एक बात साफ है कि सरकार को तमाम बड़ी कंपनियों को ज्यादा सब्सिडी देनी पड़ेगी. जिसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. सरकार का ग्रीन हाइड्रोजन पर लगाया गया दांव अगर सफल रहा तो देश की अर्थव्यवस्था में एक बड़ा उछाल आ सकता है.


ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत बन सकती है चुनौती


सरकार का क्लीन एनर्जी यानी स्वच्छ ऊर्जा की तरफ एक बड़ा कदम तो है. लेकिन इस की कीमत एक बड़ी चुनौती बन सकती है. वर्तमान समय में इसकी कीमत 340 से 400 प्रति किलो है. वहीं देश में ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन बढ़ेगा तो 2030 तक इस की कीमत कम हो सकती है.