भारत की बदलती हुई विदेश नीति के साथ घरेलू प्रतिरक्षा और सामरिक नीति भी बदल रही है. चीन की विस्तारवादी नीति से निबटने के लिए भारत लगातार चीन से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने पर जोर दे रहा है. इसी साल जनवरी में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत-चीन सीमा से सटे अरुणाचल प्रदेश के सियांग में सौ मीटर लंबे 'क्लास-70' ब्रिज का उद्घाटन किया. उन्होंने 'क्लास-70' ब्रिज को भारत की सुरक्षा तैयारी बढ़ाने की प्रक्रिया का हिस्सा बताया. रक्षा मंत्री ने सियोम ब्रिज के साथ ही भारत की उत्तर-पूर्वी सीमा से लेकर पश्चिम तक में स्थित सात सीमावर्ती राज्यों में 27 दूसरे प्रोजेक्ट्स (रोड, ब्रिज और अन्य) का भी उद्घाटन किया. इनका लक्ष्य यही है कि सेना की मूवमेंट इन इलाकों में जल्द से जल्द हो सके. गलवान घाटी की झड़प हो या तवांग में चीनी सेना को रोकना, भारतीय सेना पूरी मुस्तैदी से अपना काम कर रही है औऱ सरकार इन इलाकों में आधारभूत ढांचा मजबूत करने के लिए बजट से लेकर अन्य जरूरी प्रावधानों को भी लगातार बढ़ा रही है.


चीन की विस्तारवादी नीति को रोकना लक्ष्य 



भारत की जमीनी सीमा 15,106 किलोमीटर से भी लंबी है. यह छह देशों की सीमाओं से लगती है. इन छह देशों में पाकिस्तान और चीन से भारत के रिश्ते अच्छे नहीं हैं. पाकिस्तान आतंक की नर्सरी है, तो चीन अपने विस्तारवादी लक्ष्य को लेकर हमेशा ही भारत के लिए मुसीबत खड़ी करता है. कभी वह अरुणाचल को अपना बताता है, तो कभी कश्मीर पर नामाकूल टिप्पणी करता है. कभी वह जिहादी आतंकियों को बताने के लिए संयुक्त राष्ट्र में वीटो लगाता है, तो गलवान और तवांग में एलएसी पर बदलाव की कोशिश करता है. पिछली कई सरकारों ने चीन के साथ अपने संबंधों को सुधारने की कोशिश भी की, लेकिन चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है. चीन को इसीलिए गैर-भरोसेमंद देश समझा जाता है. 1962 में जिस तरह भारत की पीठ में छुरा घोंपा, वह भी छिपा नहीं है. पिछली कई सरकारों ने यह माना है कि चीन हमारा दुश्मन नंबर वन है. चीन से हमें ज्यादा खतरा है, चाहे उसकी दक्षिण एशियाई नीति देखें या बॉर्डर पर की हरकतों को देखें. चीन से जुड़ी सीमाओं पर इसीलिए काफी चौकसी बरती गयी, इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया गया. यह सिलसिला अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय कुछ अधिक हुआ. उन्होंने यह कहा था कि चीन से जुड़ी सीमाओं पर आधारभूत ढांचा बढ़े, सड़कें दुरुस्त हों और सामरिक क्षमता बेहतर हो. उनके बाद मनमोहन सिंह की सरकार ने भी इस सत्य को माना लेकिन जिस तेजी से बॉर्डर पर काम होना चाहिए था, वह नहीं हुआ. अधिकांश बातें कागजी रह गयीं.



युद्धस्तर पर हो रहा है काम 


जब से नरेंद्र मोदी की सरकार आयी है, तब से युद्धस्तर पर काम हो रहा है और इसी वजह से चीन में खलबली मची हुई है. सुरक्षा को सुदृढ़ करने की योजना में भारत इस समय चीन से सटी उत्तर-पूर्वी और उत्तरी सीमा की तरफ़ अधिक ध्यान दे रहा है. इसकी वजह है कि 2013 से भारत को लेकर चीन का रुख़ बेहद आक्रामक रहा है. 2013 में डेपसांग, 2014 में चुमर, 2017 में डोकलाम, 2020 में गलवान और फिर पिछले साल 2022 में तवांग में चीन का ये रवैया दिखा. भारत ने जब चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया है, तो चीन को अब छटपहटाहट हो रही है. चीन से तनाव के मद्देनजर भारत ने लगभग 60 हजार सैनिकों को उस इलाके में उतार दिया है. पिछले पांच से दस साल के दौरान सीमावर्ती इलाकों में सड़क, पुल और दूसरे निर्माण कार्यों में काफ़ी पैसा लगाया गया है. बॉर्डर पर आधारभूत ढांचा मजबूत करने से हमारे सैनिक, टैंक, आर्टिलरी इत्यादि का मूवमेंट बहुत आसान हो गया है. पिछले दो साल में भारत ने 205 परियोजनाएं पूरी की हैं और इस साल दिसंबर तक 175 और भी परियोजनाएं पूरी होनेवाली हैं. इसके साथ ही भारत ने वाइब्रैंट विलेज नामक कार्यक्रम की शुरुआत की है, जिसके जरिए सीमा से सटे गांवों को जीवंत करना है, वहां सभी संसाधन देने हैं और उसके लिए बजटीय प्रावधान भी किया गया है. गोहाटी से तवांग तक के लिए ट्राइलेटरल रोड बन रहा है, कई ऐसे टनल बन रहे हैं जिससे किसी भी मौसम में इन इलाकों में आवाजाही मुमकिन होगी, आर्मी के साजोसामान पहुंचाए जा सकते हैं. एस जयशंकर ने भी यह कहा था कि 2014 से पहले अगर गलवान होता, तो शायद हमें मुंह की खानी पड़ती, लेकिन अब हम चीन की आंख से आंख मिलाकर बात कर सकते हैं. 


भारत ने बढ़ाया बजटीय प्रावधान


बीआरओ यानी बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन का बजट पहले 3 से 4 हजार करोड़ का था. मोदी सरकार में वह बढ़कर 14 हजार करोड़ का हो गया है. 205 परियोजनाएं पहले पूरी हो चुकी हैं और दिसंबर तक 176 और परियोजनाएं पूरी होंगी. लगभग 400 प्रतिशत की बढ़ोतरी बजटीय प्रावधान में हुई है और इसमें और भी बढ़ोतरी होगी. भारत इन जगहों पर, यानी जो सुदूर इलाके हैं, अगर हम अरुणाचल प्रदेश की बात करें तो वहां रेल परियोजनाएं बन रही हैं, बड़े-बड़े टनल बन रहे हैं, 8 लेन के हाईवे बनाए जा रहे हैं और उत्तर पूर्व पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है. कई टनल तो बहुत लंबे-चौड़े हैं, जिनसे सामरिक महत्व के हथियारों की आवाजाही बिना चीन को खबरदार किए हो सकती है. अरुणाचल और लद्दाख में हाई अल्टीट्यूड के एयर-स्ट्रिप बन रहे हैं, जहां से हमारे ट्रूप्स और डिफेंस उपकरण बड़ी आसानी से आ-जा सकते हैं. अगर हम कैलाश मानसरोवर की बात करें, तो काली नदी, लिम्प्याधुरा वगैरह पर जो पुल बने हैं, सड़कों की हालत सुधरी है, तो हमें नेपाल या चीन होकर नहीं जाना होगा, भारत की तरफ से ही हम आसानी से वहां पहुंच सकते हैं. कुल मिलाकर चहुंमुखी विकास चल रहा है.