India Crude Oil Import: भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर काफी हद तक निर्भर है. ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत को बड़े पैमाने पर कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस के साथ ही कोयला का भी आयात करना पड़ता है.


अगर कच्चे तेल की बात करें तो हम अपनी जरूरत का महज़ 12 से 14 फीसदी ही उत्पादन करने में सक्षम थे और बाकी का कच्चा तेल दूसरे देशों से आयात करते हैं. कच्चे तेल के आयात को लेकर पहले भारत की निर्भरता पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन यानी OPEC के सदस्य देशों पर थी, लेकिन जब से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध हुआ है, इस मोर्चे पर हालात बिल्कुल बदल गए हैं.


ओपेक की हिस्सेदारी सबसे निचले स्तर पर


हमारी कच्चे तेल के आयात में ओपेक की हिस्सेदारी धीरे-धीरे घट रही है और रूस की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है. अगर इस साल अप्रैल की बात करें तो भारत के कच्चे तेल के आयात में ओपेक की हिस्सेदारी अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है. अप्रैल, 2023 में ओपेक की हिस्सेदारी 46 फीसदी पर आ गई है. ऊर्जा खेप की निगरानी करने वाली वॉर्टेक्सा (Vortexa) के  मुताबिक  भारत के आयात में ओपेक की हिस्सेदारी घटकर अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गई है.


रूस की हिस्सेदारी 7 महीनों में तेजी से बढ़ी है


इसका दूसरा पहलू ये है कि कच्चे तेल का आयात में रूस की हिस्सेदारी पिछले 7 महीनों में तेजी से बढ़ी है. अप्रैल 2023 की बात करें, तो भारत के कुल तेल आयात में लगातार सातवें महीने रूस की हिस्सेदारी एक-तिहाई यानी 33% से अधिक रही है. अप्रैल में भारत के आयात में रूस का हिस्सा बढ़कर 36 प्रतिशत हो गया है. अगर इसको प्रतिदिन की खरीदारी के हिसाब से समझें तो भारत ने अप्रैल में प्रतिदिन 46 लाख बैरल कच्चे तेल का आयात किया. इनमें से ओपेक देशों से प्रतिदिन 21 लाख बैरल की खरीदारी की गई. वहीं रूस से प्रतिदिन 16.78 लाख बैरल कच्चे तेल की खरीदारी की गई.


रूस कच्चे तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश


जानकर हैरान रह जाएंगे कि जब रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू नहीं हुआ था, तो उस वक्त फरवरी 2022 में भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस का हिस्सा एक प्रतिशत से भी कम था. वहीं अप्रैल, 2022 में ओपेक, उसमें भी मुख्य रूप से पश्चिम एशिया और अफ्रीका का भारत के कच्चे तेल के आयात में  72% हिस्सेदारी थी. उससे भी पहले जाएं, तो एक वक्त में भारत के कच्चे तेल के आयात में ओपेक की हिस्सेदारी 90% होती थी. वॉर्टेक्सा के मुताबिक भारत ने मार्च 2022 में रूस से सिर्फ 68,600 बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल का आयात किया था, जो इस साल बढ़कर 16.78 लाख बैरल प्रतिदिन हो गया है. इस तरह से रूस पिछले कई महीनों से भारत के लिए कच्चे तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश बना हुआ है. 


रूस से रियायती दामों पर मिल रहा है कच्चा तेल


सवाल उठता है कि जिस रूस से हम फरवरी 2022 तक एक प्रतिशत भी कच्चा तेल नहीं खरीदते थे, अचानक ऐसा क्या हो गया कि पिछले सात महीने से अपनी जरूरत का एक तिहाई से ज्यादा कच्चा तेल रूस से खरीदने लगे हैं. इसके लिए सबसे बड़ा कारण है..रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से बदले हुए समीकरण. पहले रूस से तेल खरीदने पर ढुलाई की लागत बहुत ज्यादा होती थी. इस वजह से भारतीय रिफाइनरी कंपनियां रूस से कभी-कभार ही तेल खरीदती थीं. लेकिन जैसे ही रूस का यूक्रेन के साथ संघर्ष शुरू हुआ, उसके बाद से ही रूस को बड़े पैमाने पर धनराशि की जरूरत पड़ी. इसके लिए रूस ने रियायती दामों पर कच्चा तेल बेचना शुरू कर दिया. इस बदले हालात को देखते हुए भारतीय कंपनियों ने भी रूस से ज्यादा मात्रा में कच्चा तेल खरीदना शुरू कर दी.


कच्चे तेल के लिए रूस बना नया विकल्प


इस तरह से भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ने लगी और ओपेक देशों की हिस्सेदारी घटने लगी. हालात ये है कि अब रूस से आयात इराक और सऊदी अरब से सामूहिक खरीद से भी ज्यादा हो चुका है. पिछले दशक में इराक और सऊदी अरब से भारत के सबसे बड़े तेल आपूर्तिकर्ता थे. इस साल मार्च में भारत के लिए इराक से दोगुना कच्चे तेल की खरीदारी रूस हुई है. इराक 2017-18 में भारत का सबसे बड़ा कच्चे तेल का आपूर्तिकर्ता देश था. फिलहाल 8.1 लाख बैरल प्रतिदिन भारत के लिए कच्चे तेल का आयात इराक से हो रहा है और इस मामले में वो रूस के बाद दूसरा देश है. वहीं 6.7 लाख बैरल प्रतिदिन की आपूर्ति कर सऊदी अरब तीसरे पायदान पर पहुंच गया है. वहीं इस मामले में अमेरिका चौथे नंबर पर है. ये आंकड़े बताने के लिए काफी है कि कैसे यूक्रेन के साथ रूस के युद्ध ने भारत के लिए कच्चे तेल के आयात के लिए नया विकल्प क्रेमलिन को बना दिया है.


कच्चे तेल को लेकर ओपेक का महत्व


ओपेक पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन है. ओपेक यानी Organization of the Petroleum Exporting Countries. सितंबर 1960 में बगदाद कॉन्फ्रेंस में इस संगठन की नींव पड़ी थी. उस वक्त इसमें एशियाई देश ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब के साथ ही दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला शामिल थे. ये पांचों ओपेक के संस्थापक सदस्य हैं. शुरुआत में इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जेनेवा में था, लेकिन 1965 से ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना इसका हेड क्वार्टर बन गया. ओपेक से बाद में कतर, इंडोनेशिया, लीबिया, संयुक्त अरब अमीरात, अल्जीरिया, नाइजीरिया, इक्वाडोर, अंगोला, इक्वेटोरियल गिनी और कांगो जुड़ गए. हालांकि बाद में इक्वाडोर, इंडोनेशिया और कतर इस संगठन से अलग हो गए. फिलहाल ओपेक समूह में 13 सदस्य देश हैं.


ओपेक देशों के पास क्रूड ऑयल के अपार भंडार


ओपेक के सदस्य देशों में भारी मात्रा में कच्चे तेल का उत्पादन होता है. ओपेक के सालाना बुलेटिन के मुताबिक 2021 में दुनिया के तेल भंडार का 80.4% (1,241.82 बिलियन बैरल) ओपेक सदस्य देशों में स्थित है. उसमें भी ओपेक के तेल भंडार में से 67% से ज्यादा भंडार मिडिल ईस्ट सदस्य देशों के पास है. एक वक्त था, जब कच्चे तेल की कीमतों का निर्धारण से लेकर कितनी मात्रा में उत्पादन होगा, इन सब पर ओपेक की मोनोपॉली थी. हालांकि अब वैसे हालात नहीं रहे हैं. लेकिन ये भी गौर करने वाली बात है कि अभी भी ओपेक से क्रूड ऑयल प्रोडक्शन  एक महत्वपूर्ण कारक है, जिससे कच्चे तेल की कीमतें प्रभावित होती हैं. ये संगठन कितना उत्पादन होगा, इसका निर्धारण करके सदस्य देशों को टारगेट देता है. फिलहाल ओपेक सदस्य देशों से दुनिया का करीब 40 फीसदी क्रूड ऑयल का उत्पादन होता है और ये वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के निर्धारण के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण है.


कच्चे तेल के लिए पहले भारत ओपेक पर था निर्भर


कच्चे तेल के आयात के लिए भारत भी ओपेक सदस्यों पर ही ज्यादातर निर्भर रहता था. उसमें भी भारत इराक और सऊदी अरब से सबसे ज्यादा कच्चे तेल खरीदता था. 
पिछले महीने भारत के लिए कच्चे तेल के आयात के मामले में पहली बार रूसी ने सऊदी अरब और इराक दोनों को मिलाकर भी पीछे छोड़ दिया. सऊदी अरब और इराक की तुलना में भारत को काफी कम कीमतों पर कच्चा तेल मिल रहा है.


इस महीने यानी मई में भी ऐसे ही हालात रहने की संभावना है. हालांकि चीन भी रूस से रियायती दामों पर ज्यादा से ज्यादा कच्चे तेल की खरीदारी में जुटा है. ऐसे में वॉर्टेक्सा की एशिया-प्रशांत विश्लेषण की प्रमुख सेरेना हुआंग ( Serena Huang) का मानना है कि इस मामले में भारत का चीन से प्रतिस्पर्धा की वजह से आने वाले वक्त में रूस से भारत के लिए कच्चे तेल के आयात की रफ्तार थोड़ी मंद पड़ सकती है. सेरेना हुआंग का कहना है कि भारत की हिस्सेदारी में इतनी तेज गिरावट से जाहिर है कि ओपेक को बाजार हिस्सेदारी वापस हासिल करने के लिए भविष्य में कठिन लड़ाई का सामना करना पड़ सकता है. रिफाइनरी कंपनियां वहीं से तेल खरीदेंगी, जहां उन्हें कम कीमतों पर उनकी शर्तों के मुताबिक कच्चा तेल मिलेगा.


रियायती दामों पर बिक्री रूस की मजबूरी


हम सब जानते है कि पिछले एक साल से रूस, अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के प्रतिबंधों से जूझ रहा है. इनमें आयात प्रतिबंध भी शामिल हैं. रूस को अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए भारी मात्रा में राशि की जरूरत है. इसी वजह से रूस अपने ऊर्जा निर्यात में अंतर को पाटने के लिए भारत को रिकॉर्ड मात्रा में कच्चे तेल की बिक्री रियायती दाम पर कर रहा है.


यूरोपीय यूनियन ने पिछले साल दिसंबर में रूस से समुद्र के जरिए कच्चे तेल आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था. साथ ही 60 डॉलर प्रति बैरल मूल्य की सीमा (price cap) लगा दी थी, जो दूसरे देशों को यूरोपीय संघ की शिपिंग और बीमा सेवाओं का उपयोग करने से रोकता है, जब तक कि कच्चा तेल इस सीमा से नीचे नहीं बेचा जाता. वहीं भारतीय रिफाइनरी कंपनियां संयुक्त अरब अमीरात के दिरहम का उपयोग उस तेल के भुगतान के लिए कर रहे हैं जो 60 डॉलर से कम कीमत पर आयात किया जाता है.


भारत के लिए आयात बिल में कटौती का मौका


कच्चे तेल के आयात से जुड़े पैटर्न के बदलने से भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने आयात बिल के प्रबंधन में भी मदद मिल रही है. भारत दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन गया है. हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं. आबादी और अर्थव्यवस्था के आकार को देखते हुए हमारी ऊर्जा जरूरतें भी तेजी से बढ़ रही है. ऐसी उम्मीद है कि 2025 तक भारत, अमेरिका के बाद ऊर्जा का दूसरा सबसे बड़े उपभोक्ता वाला देश बन जाएगा. इस मामले में हम चीन से आगे निकल जाएंगे. ये भी सच्चाई है कि भारत अपने कच्चे तेल की जरूरतों का लगभग 84 प्रतिशत 40 से ज्यादा देशों से आयात करता है. भारत के पास दुनिया के तेल भंडार का महज़ 0.3% है, जबकि वैश्विक तेल खपत का 4.5% हमारे हिस्से है.


कच्चे तेल को रिफाइनरियों में पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधनों में बदला जाता है. भारत को कच्चे तेल की आवश्यकता 2040 तक 7.2 मिलियन बैरल प्रति दिन होगी. इसके लिए भारत 2040 तक तेल उत्पादन के लिए प्रति दिन करीब 2.3 मिलियन बैरल कच्चे तेल का आयात करेगा. ये भी उम्मीद है कि 2040 तक भारत को वैश्विक ऊर्जा मांग के एक चौथाई हिस्से की जरूरत होगी.


हम एक बहुत बड़ी राशि कच्चे तेल के आयात पर खर्च करते हैं और राशि में तेजी से इजाफा भी हो रहा है. कच्चे तेल के आयात में तेज वृद्धि हुई. इस कारण जनवरी 2023 तक वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान भारत के आयात बिल में करीब 22% का इजाफा हो गया और ये 601.7 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया. इन्हीं आंकड़ों से पता चलता है इसी अवधि के दौरान देश के कच्चे तेल आयात 43% की वृद्धि हुई और इससे कच्चे तेल का आयात बिल बढ़कर 178.4 अरब डॉलर हो गया. हालांकि केंद्र सरकार कच्चे तेल के आयात बिल को कम करने के लिए लगातार काम कर रही है. 2016 में भारत सरकार ने 2022 तक भारत के कच्चे तेल के आयात को 10% तक कम करने के लिए रोडमैप तैयार किया था. उससे मिले अनुभवों के आधार पर भारत आगे की रणनीति को अंजाम देने में जुटा है.


भारत पिछले कई सालों से इस कोशिश में रहा है कि वो अपने पारंपरिक ऊर्जा संसाधनों कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस के लिए बाहरी मुल्कों पर निर्भरता को लेकर विविधता और विकल्पों को बनाए रखे. लेकिन हकीकत ये भी है कि पिछले 15 सालों से लगातार शीर्ष 20 स्रोत ही भारत के तेल आयात के 95% से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं. उसमें भी 80 फीसदी पारंपरिक ऊर्जा संसाधनों का आयात 10 देशों से ही होता रहा है.


इन सब पहलुओं पर गौर करने से एक बात स्पष्ट है कि कच्चे तेल के लिए ओपेक देशों पर निर्भरता कम होने और रूस की हिस्सेदारी बढ़ने से भारत के लिए अपनी ऊर्जा जरूरतों से जुड़ी नीति पर आगे बढ़ने में मदद मिलेगी. ऐसे भी रूस दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल है, जिसके साथ भारत की दोस्ती दशकों पुरानी है और बदस्तूर ये अभी भी उतनी ही मजबूत है.


ये भी पढ़ें:


भारतीय कंपनियां अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए क्यों हैं बेहद महत्वपूर्ण, द्विपक्षीय संबंधों को भी मिल रही है मजबूती