प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा वैश्विक राजनीति में भारत के उभार और विदेश नीति में सकारात्मक परिवर्तन को दिखाती है. 21 जून से 21 जून तक पीएम मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति, विशिष्ट लोगों के साथ ही भारतीय-अमेरिकी समुदाय को संबोधित भी करेंगे. पिछली बार उन्होंने 22 सितंबर 2019 को ह्युस्टन के एनआरजी स्टेडियम में "हाउडी मोदी" इवेंट को संबोधित किया था और यह 2014 से अब तक का उनका चौथा संबोधन होगा, जो वह भारतीय-अमेरिकी समुदाय को देंगे।  भारतीय-अमेरिकी समुदाय की दूसरी पीढ़ी फिलहाल अमेरिकी राजनीति से लेकर व्यापार तक में काफी सक्रिय और शक्तिशाली है और वे अब प्रतिनिधित्व चाहते हैं, जो बाइडेन प्रशासन उनको दे भी रहा है. ट्रंप या ओबामा प्रशासन से भी अधिक इस सरकार में 130 भारतीय-अमेरिकी लोग ऊंचे और मुख्य पदों पर हैं, भारतवंशी कमला हैरिस उप राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंची हैं, तो सत्या नडेला और सुंदर पिचाई ने तकनीक की दुनिया में अपने झंडे गाड़े हैं. अमेरिकी समाज देने के बदले लेने में भरोसा रखता है. मोदी खुद इस बात को समझते हैं और वह बदले में भारतीय-अमेरिकियों के साथ ही अमेरिका को भी भारत में बेहतरीन मौके मुहैया कराते हैं. पिछले 9 वर्षों में भारत की विकास यात्रा काफी शानदार रही है, लेकिन चुनौतियां भी उतनी ही हैं. अमेरिका और उसमें बसा भारतीय प्रवासी मोदी की इस यात्रा से इसकी भी उम्मीद लगाए है. 


भारत और अमेरिका परस्पर सहयोगी बने


भारत और अमेरिका दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है, इसलिए ये संबंध इतने आगे बढ़ रहे हैं. अब वह समय नहीं रहा कि अमेरिका हमें डिक्टेट करे और हम उसकी मानने को विवश हों. हालांकि, भारत ने अपनी नीतियां हमेशा ही अपने हिसाब से तय की हैं, लेकिन अब ये संबंध बराबरी के हैं, किसी एक स्तर पर ऊंचाई या निचाई का मामला नहीं है. न ही अब वह समय है, जब अमेरिका अपने पैटन टैंक भारत के खिलाफ उतार दे या अपना सातवां बेड़ा उतारने की धमकी दे. भारत-अमेरिका दोनों ही अपने संबंधों की पुरानी गर्दों को झाड़ कर आगे बढ़ रहे हैं. अब फिलहाल अंतरराष्ट्रीय राजनीति और अर्थव्यवस्था का जो केंद्र है, वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कहें, तो आ गया है, यह भारत को भी पता है और अमेरिका को भी. अमेरिका वहां अपनी पकड़ को मजबूत रखना चाहता है, वहीं भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती चीन की है.



चीन का जो विस्तारवादी एजेंडा और आक्रामक रुख है, उसको लेकर भारत की अपनी चिंताएं हैं और दोनों देशों के बीच सामंजस्य की  जरूरत ही है कि यूक्रेन संघर्ष के बावजूद भारत और अमेरिका एक दूसरे के साथ काम करते रहे. इसलिए काम करते रहे, क्योंकि दोनों ही देशों को पता है कि यूक्रेन युद्ध जैसे से बड़ी चुनौती दोनों देशों के लिए चीन की है. उसको देखते हुए दोनों देश रक्षा और तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़कर काम करना चाह रहे हैं. चाहे वो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साथ काम करना हो, चाहे क्वाड में दोनों का साथ हो या द्विपक्षीय संबंध हो. भारत-अमेरिका अब द्विपक्षीय से आगे बढ़कर बहुपक्षीय और वैश्विक स्तर पर साथ काम कर रहे हैं, और ये दोनों देशों के संबंधों में बड़ा बदलाव है.


चीन की चुनौती और क्वाड


भारत और अमेरिका के बीच संबंध का भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है. दोनों के संबंध आगे और मजबूत होंगे क्योंकि उसका बड़ा कारण चीन की आक्रामकता और विस्तारवाद है. भारत-अमेरिका दोनों ही देशों की ख्वाहिश है कि चीन को "मैनेज" किया जाए, ताकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संतुलन बना रहे. दोनों ही देशों के हित इस मामले में एक समान हैं. क्वाड (क्वाड्रिलेटरल सेक्योरिटी डायलॉग) से चीन की लगातार दिखती चिढ़ इस बात को दिखाती है कि क्वाड अपनी विविधता, लचीलेपन और स्वीकार्यता से दूसरे देशों और समूहों में तेजी से अपनी जगह बना रहा है. चीन ने हमेशा की तरह शांगरी-ला डायलॉग्स में भी क्वाड को शांति और सुव्यवस्था के लिए खतरा बताया है, जबकि क्वाड अपने दम पर पूरी दुनिया में जगह बना रहा है और इसमें शामिल होने की कतार लग रही है. चीन ने हमेशा ही क्वाड को "एशियन नाटो" कहकर अपने लिए खतरा बताया है, लेकिन वह मामला अपनी ही मौत मर चुका है.


क्वाड के खात्मे पर चीन ने कई बार मर्सिया पढ़ना चाहा लेकिन उसके उलट चीन के चाटुकार देशों के अलावा बाकी किसी ने भी उसकी राय को महत्व नहीं दिया है और वे क्वाड में अपनी मौजूदगी का रास्ता तलाश रहे हैं. दूसरों के पैर पर अपना पैर रखे बिना किस तरह आप आगे बढ़ सकते हैं, क्वाड इसका सही उदाहरण है. इसके उलट ब्रिक्स और एससीओ की उस तरह से बढोतरी नहीं हो रही है, जैसी क्वाड की है. क्वाड की मानवीय सहायता एक समय इसकी शुरुआत के समय जरूर काम आयी थी, पर अब यह संगठन बहुत आगे निकल चुका है. किसी भी और बहुदेशीय संगठन का इतना बड़ा रेंज नहीं है, जितना क्वाड का. वैक्सीन, जलवायु परिवर्तन और उभरती हुई टेक्नोलॉजी पर आधारित एजेंडा क्वाड को वैश्विक बेहतरी के लिए एक शक्तिशाली प्लेटफ़ॉर्म बनाता है. साथ ही, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, इनवेस्टर्स के नेटवर्क और जलीय क्षेत्रों के विकास जैसे कई मामले हैं, जिनमें क्वाड देश मिलकर पूरी दुनिया को बदलने की मुहिम चला रहे हैं. 


बदलता भारत और साथ चलता अमेरिका


क्वाड की विशेषता यह है कि इसका कोई सरमाया देश नहीं है, बल्कि सबकुछ डेमोक्रेटिक है. एससीओ, ब्रिक्स और नाटो की तरह क्वाड का कोई सेक्रेटेरियट भी नहीं है. इसके देशों ने इसे जबरन बेचने या आकर्षक बनाने की कोशिश भी नहीं की है. क्वाड में होने के साथ भारत इस साल जी20 की भी अध्यक्षता कर रहा है और एससीओ में चीन के साथ पूरी तरह सहयोग भी कर रहा है. सीमाओं पर भले ही भारत की पोजीशन नहीं बदली है, लेकिन चीन के साथ बाकी मामलों पर हम आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं.