India at 2047: एबीपी नेटवर्क के एक खास इवेंट इंडिया@2047 एंटरप्रेन्योरशिप कॉन्क्लेव के दौरान केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने एक बड़ा बयान दिया. जब उनसे पूछा गया कि इतने सालों तक सरकार रहने के बावजूद बिहार में लगातार विकास क्यों नहीं हुआ तो पासवान ने इसके लिए उस दौरान केंद्र और राज्य के बीच राजनीतिक तालमेल की कमी को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि जब दोनों ही स्तरों पर एक ही विचारधारा वाली सरकार सत्ता में होती हैं तब विकास तेजी से होता है, क्योंकि तालमेल बेहतर होता है और फैसले लेना आसान हो जाता है. इसी बीच एक सवाल उठ रहा है कि केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार होने से शासन और विकास पर असल में क्या असर पड़ता है. तो आइए जानते हैं क्या है इस सवाल का जवाब.

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सरकारों के बीच राजनीतिक तालमेल 

जब केंद्र और राज्य दोनों जगह एक ही राजनीतिक पार्टी या फिर गठबंधन की सरकार होती है तब तालमेल अपने आप आसान हो जाता है. प्रशासनिक बातचीत तेजी से होती है और नीतियों के इरादे साफ तौर पर समझने के साथ-साथ मंत्रालय और राज्य विभागों के बीच भी टकराव भी कम होता है. चिराग पासवान ने बताया कि पहले बिहार में अक्सर केंद्र और राज्य में अलग-अलग पार्टी और गठबंधन की सरकार होती थी. इस वजह से मंजूरी में देरी होती थी और तालमेल में दिक्कत होती थी. वहीं जब पिछले डेढ़ साल से दोनों सरकारों ने मिलकर काम किया तो उसका असर साफ नजर आया.

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योजनाओं और परियोजनाओं का तेजी से लागू होना 

राजनीतिक तालमेल का सबसे बड़ा फायदा रफ्तार है. जब दोनों सरकारें अपनी प्राथमिकताओं को बांटती हैं तो इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट, कल्याणकारी योजनाओं और वित्तीय मंजूरी में कम रुकावटें आती है. केंद्र सरकार की योजनाएं जैसे हाईवे, रेल प्रोजेक्ट, स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर और स्टार्टअप फंडिंग काफी तेजी से आगे बढ़ती हैं क्योंकि राज्य मशीनरी शर्तों पर बातचीत करने या फिर राजनीतिक आपत्तियों को उठाने के बजाय लागू करने में पूरी तरह से समर्थन करती है. 

नीति में निरंतरता और प्रशासनिक फायदे 

जब भी केंद्र और राज्य राजनीतिक रूप से एक साथ होते हैं तो शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, उद्योग और सामाजिक कल्याण जैसे क्षेत्रों में नीतियां लगातार बनी रहती हैं. इससे नौकरशाहों, निवेशकों और नागरिकों के लिए भ्रम कम होते हैं.

क्या है नुकसान 

हालांकि राजनीतिक तालमेल के अपने नुकसान भी हैं. जब एक ही पार्टी दोनों लेवल पर हावी होती है तब विपक्ष की भूमिका कमजोर हो जाती है. इससे सरकारी फैसलों की जांच कम हो सकती है और जवाबदेही की भी गारंटी कम हो जाती है. मजबूत राजनीतिक दबाव के बिना भ्रष्टाचार या फिर पॉलिसी फैलियर जैसे मुद्दों पर सख्ती से सवाल नहीं उठाए जा सकते. यही सब वजह लोकतंत्र नियंत्रण और संतुलन को नुकसान पहुंचा सकती हैं.

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