हर साल सात अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है. सात अप्रैल के ही दिन 1948 में विश्व स्वास्थ्य संंगठन की स्थापना हुई थी. उसके बाद सन 1950 में पहला स्वास्थ्य दिवस मनाया गया था. विश्व संगठन दिवस पर आयोजित विश्व स्वास्थ्य दिवस में भारत का एक अहम योगदान है. भूगोल और जनसंख्या की दृष्टि से देखें तो भारत की स्थिति काफी सुदृढ़ है. इसी वजह से गर्व के साथ कहा जाता है कि अगर भारत स्वस्थ होगा तभी एक स्वस्थ दुनिया की कल्पना की जा सकती है. भारत भी इस साल के थीम 'मेरा स्वास्थ्य मेरा अधिकार' के अंतर्गत काफी आगे बढ़ चुका है. जिसकी वजह से दुनिया के कई देशों के लिए उदाहरण बन रहा है.


अगर देखा जाए तो भारत की पुरानी पद्धति में जब नाड़ी देखकर इलाज किया जाता था, हालांकि वो भी काफी बेहतर रहा और उसका अपना महत्व है, से आज हम रोबोटिक सर्जरी तक पहुंच चुके हैं. भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में तकनीक का विकास हुआ है, उससे देश काफी आगे बढ़ा है. कहा भी जाता है कि स्वास्थ्य शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है. इसलिए शरीर का स्वस्थ होना जरूरी है. अब भारत तीन ट्रिलियन इकोनॉमी की ओर आगे बढ़ रहा है तो इसमें एक स्वस्थ मस्तिष्क की बहुत जरूरत है. वर्तमान में भारत की केंद्र सरकार और राज्य सरकारें स्वास्थ्य के क्षेत्र को बेहतर बनाने के लिए काफी प्रयास कर रहे हैं, ताकि देश और समाज स्वस्थ रह सके और देश के विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान हो सके. इसमें भारत काफी आगे खड़ा है. 



स्वास्थ्य के क्षेत्र में हुआ है विकास 


मेरा स्वास्थ्य मेरा अधिकार के अंतर्गत दो पहलू हैं. एक क्यूरेटिव सर्विसेज होता है, जिसमें देश के स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्या कुछ काम हो रहा है उसके बारे में बात की जाती है. इसमें सरकारी और प्राइवेट सेक्टर के स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्या विकास होता है, ये देखना होता है. देश की 60-70 फीसद जनसंख्या अभी भी ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है. 30 प्रतिशत के आसपास जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में निवास करती है. प्राइवेट सेवाएं जो भी हैं, ज्यादातर शहरी क्षेत्र में उपलब्ध हैं. आज सरकार की यही सोच है कि किस तरह से स्वास्थ्य सुविधाएं ग्रामीण क्षेत्रों के अंतिम छोर तक पहुंचाई जाए? वैस, स्वास्थ्य के क्षेत्र में जितनी उपलब्धता होनी चाहिए, उतनी व्यवस्था अभी भी नहीं हो पाई है, लेकिन यकीनन भारत ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रगति की है. आयुष्मान योजना के अंतर्गत पांच लाख रुपए तक का स्वास्थ्य इलाज मुफ्त में उपलब्ध है. हेल्थ एंड वेलनेंस केंद्र से लोग स्वास्थ्य के बचाव के तरीकों के बारे में जानकारी ले सकते हैं. स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर को भी सरकार से जोड़ने का काम हुआ है. ताकि स्वास्थ्य सेवाएं सभी समुदाय तक आसानी से पहुंच सके, लेकिन भारत को अभी स्वास्थ्य के क्षेत्र में और भी विकास करने होंगे और उसके लिए सरकार के स्तर पर आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं.


जनता भी निबाहे अपना कर्तव्य 


स्वास्थ्य के क्षेत्र पर अंतरिम बजट में भी ध्यान दिया गया है. उसमें भी मेरा स्वास्थ्य मेरा अधिकार को ध्यान में रखकर प्रावधान करने की बात कही गई है. हालांकि, सामाजिक स्तर पर भी ये जरूरी है कि समाज भी 'मेरा स्वास्थ्य मेरा कर्तव्य' पर आना होगा. अधिकार की बात तो सही है. लेकिन कर्तव्य भी जरूरी है. एक कर्तव्य तो खुद के प्रति है, तो सोचना होगा कि उसको कैसे पूरा करें ताकि हम बीमार कम पड़ें. बीमारी से बचाव के दिशा में कदम बढ़ाने का भी काम होना चाहिए, जिसमें योग, एक अच्छी डाायट प्लान, मॉर्निंग वॉक आदि है. इसमें समुदाय को आगे आकर हिस्सा लेना होगा. व्यक्ति को टहलने के लिए कोई प्रेरित करने नहीं आएगा, योग करने की आदत खुद से डालनी होगी, बल्कि ये आदत खुद से डालने की जरूरत है. ये बातें समुदाय को खुद के अंदर लानी होनी ताकि वो अपने कर्तव्य का पालन करने के साथ अधिकारों का उपयोग करें. स्वास्थ्य भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों में से एक है. स्वस्थ रहना, स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ लेना ये मौलिक अधिकारों में शामिल है. 



प्राइवेट और सरकारी दोनों क्षेत्र जरूरी 


कई ऐसे क्षेत्र होते हैं जिसमें बजट का अनुपात ज्यादा होता है. जिसमें शिक्षा और कृषि है. लेकिन इसकी तुलना में स्वास्थ्य कहां है इसको भी देखने की जरूरत है. स्वास्थ्य में जीडीपी का प्रतिशत शिक्षा से कम है, लेकिन हम स्वास्थ्य को ऐसे आईसोलेशन में नहीं छोड़ सकते. अगर हम शिक्षित और जागरूक हैं, इसके अलावा चीजों की जानकारी देते हैं तो स्वस्थ रहने कोई परेशानी नहीं है. देखा जाए तो शिक्षा स्वास्थ्य से कहीं न कहीं जुड़ी है. अगर हम सिर्फ स्वास्थ्य को देखें तो यकीनन शिक्षा के प्रति जीडीपी की तुलना में बजट कम है, लेकिन इन दोनों का बजट एक साथ में देखें तो बजट काफी कम भी नहीं दिखता है. बच्चे स्कूल, कॉलेज और संस्थान में पढ़ते हैं तो वहां स्वास्थ्य के बारे में भी जानकारी दी जाती है कि किस तरह से खुद को बीमारी से दूर रख सकते हैं. ये सब जानकारी बेसिक रूप से स्कूलों और संस्थानों में शिक्षा दी जाती है, इसलिए कहीं न कहीं स्वास्थ्य और शिक्षा दोनों एक दूसरे से कनेक्टेड है. जीडीपी और बजट का जो मौजूदा प्रावधान है वो स्वास्थ्य के क्षेत्र में और भी बढ़ाया जा सकता है. प्राइवेटाइजेशन का जो आरोप लगता रहता है उसमें समुदाय को ये देखना होगा कि उसको स्वास्थ्य सुविधाएं प्राइवेट और सरकारी दोनों में से कहां से लेनी है.


सरकार ने एक बेहतर प्रयास किया है कि सरकारी अस्पतालों में हेल्थ एंड वेलनेस केंद्र खोला है और प्राइवेट क्षेत्र के लिए सरकार ने समुदाय के लिए आयुष्मान योजना लाई है. व्यक्ति के चाहने के अनुसार प्राइवेट में आयुष्मान के अंतर्गत पांच लाख तक का इलाज मुफ्त में उपलब्ध हो पाता है. स्वास्थ्य में प्राइवेट और सरकार दोनों का अहम रोल है. अगर दोनों मिल कर चलते हैं तो देश के अंतिम कोने के व्यक्ति तक को स्वास्थ्य लाभ पहुंचता है. दुनिया में एक मात्र ये उदाहरण भारत में है कि सरकारी और प्राइवेट दोनों ही क्षेत्र हेल्थ की दिशा में एक साथ काम कर रहे हैं.


स्वास्थ्य के लिए शिक्षा जरूरी 


ग्रामीण क्षेत्रों में जो अभी साफ-सफाई के प्रति हाइजीन है. उसके लिए जागरूकता सिर्फ शिक्षा से आती है. इसलिए उस पर काम करने की जरूरत है. बिना शिक्षा ये पता चल पाना संभव नहीं है कि खाना खाने से पहले हाथ धोने की जरूरत होती है नहीं, तो इससे डायरिया फैलने की आशंका रहती है. डायरिया से देश में काफी मौतें हों जाती हैं. ऐसी जानकारियां सिर्फ शिक्षा के माध्यम से ही आती है. लोगों को लगता है कि उनके हाथ तो बिल्कुल ही साफ है लेकिन करीब 20 सेकेंड तक हाथ को धोने से कई बीमारियों से बचाव हो सकता है, यह बताना होता है. अगर महिला की उम्र 30 साल की हो चुकी है तो उसे सर्वाइकल कैंसर हो सकता है इसकी स्क्रीनिंग करानी चाहिए. अगर लक्षण दिखता है तो उसका इलाज करा सकते हैं. हालांकि, ये अगर हमें पता नहीं होगा तो इसके बारे में कैसे जानेंगे, तो इसकी जानकारी शिक्षा के माध्यम से ही तो आएगी.


देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में देखें तो एक इंफ्रास्ट्रक्चर बना हुआ है, उसके तहत समुदाय से लेकर राज्य और देश स्तर तक पर काम होता है. 1000 लोगों पर ग्रामीण स्तर पर एक आशा कार्यकर्ता और शहर में दो हजार की जनता पर आशा कार्यकर्ता होती है. गांव में पांच हजार पर और शहरों में दस हजार लोगों के पर एक एएनएम होती है. इसके अलावा सीएचसी, पीएचसी, और यूपीएचसी, सदर अस्पताल और मेडिकल कॉलेज आदि होता है. इन सब में इंफ्रास्ट्रक्चर काम कर रहा है. अब जरूरी है कि हम कैसे स्वास्थ्य की शिक्षा को आगे की ओर बढ़ाते हैं. स्वच्छ और स्वस्थ्य व्यवहार समाज के लिए बेहद ही जरूरी है. स्वच्छ रहना जरूरी है और क्योंकि स्वच्छता का संबंध सीधे तौर पर स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है, तो यह महत्वपूर्ण है.


अगर खुले में कोई शौच जाता है तो ये स्वच्छता के साथ स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता हैं, हालांकि भारत खुले से शौच मुक्त देश है. इसका व्यापक रूप से स्वास्थ्य पर भी असर पड़ा है. स्वच्छता, स्वास्थ्य और स्वस्थ समाज तीनों एक तरह से जुड़े हुए हैं, और इसे अधिक जोड़ने की जरूरत है. इसको जोड़ने का काम भी चल रहा है. स्वास्थ्य समुदाय को कैसे प्रभावित करेगा, समुदाय राज्य को, राज्य देश को और देश पूरे दुनिया को कैसे प्रभावित करेगा, इसलिए 'मेरा स्वास्थ्य मेरा अधिकार' के साथ साथ 'मेरे स्वास्थ्य के प्रति मेरा कर्तव्य' दोनों कदम काफी महत्वूपर्ण है.