भारत और बांग्लादेश के बीच संबंध, इतिहास और संस्कृति की जड़ों से जुड़ा हुआ है. यह भी याद रखने की बात है कि भारत ने ही पाकिस्तान को काट कर बांग्लादेश बनाने में मदद की थी. दोनों देशों के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध दशकों से मजबूत रहे हैं. इसके बावजूद, हाल ही में बांग्लादेश द्वारा भारत के खिलाफ अनावश्यक बयानबाजी, हिंदुओं के नरसंहार और वहां की अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार प्रधानमंत्री मोहम्मद युनुस के निराधार आरोपों से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है. हाल ही में कुछ बांग्लादेशियों ने बीएसएफ के जवानों पर भी हमला कर दिया, जो भारत में घुसपैठ करना चाहते थे. बांग्लादेश अपनी हैसियत भूलकर जिस तरह से लगातार आग में घी डाल रहा है, उसमें भारत का धैर्य कब तक बना रहेगा, यही सबसे मुद्दे की बात है. इसके बावजूद भारत ने हाल ही में 16 हजार टन चावल कंगाल बांग्लादेश को दिया है. उसे यह समझाने की जरूरत है कि भारत पर ही निर्भर होकर भारत को आंखें दिखाने वाला रवैया अब नहीं चलेगा.
आर्थिक तौर पर कंगाल बांग्लादेश
बांग्लादेश, जो कि एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है, ने पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक विकास की महत्वपूर्ण गति प्राप्त की थी, लेकिन पिछले साल अगस्त में हुई तथाकथित क्रांति के बाद उसकी हालत खराब है. अब उसके पास खाने को भी कुछ नहीं है. छात्रों की क्रांति के वेष में जबसे मुस्लिम कट्टरपंथी वहां सत्तासीन हुए हैं, हिंदुओं का नरसंहार और अर्थव्यवस्था का सत्यानाश करने के अलावा उन्होंने कुछ भी नहीं किया है. कृषि क्षेत्र में अभी भी कई चुनौतियां बनी हुई हैं. चावल और अंडों की मांग बढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि देश की खाद्यान्न सुरक्षा को और मजबूत करने की आवश्यकता है. भारत से मदद मांगने के बजाय, बांग्लादेश को अपनी कृषि उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए कदम उठाने चाहिए. यह न केवल देश की खाद्यान्न सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि इसे आत्मनिर्भरता की दिशा में भी आगे बढ़ाएगा.
बांग्लादेश ऐसा कुछ भी नहीं करता दिख रहा है. वह गैरवाजिब मसलों मे उलझता औऱ जिस भारत से उसकी रोटी चल रही है, उसको आंखें दिखाता प्रतीत होता है. हालात वैसे ये हैं कि अगर भारत एक दिन के लिए बांग्लादेश का पानी या खाना रोक दे,तो वहां त्राहि-त्राहि मच जाएगी. इसके बावजूद वहां के अंतरिम प्रधानमंत्री युनुस हिंदुओं के नरसंहार पर झूठ बोल रहे हैं, बांग्लादेश के आर्मी चीफ भारत को धमकी दे रहे हैं और उनकी तथाकथित क्रांति का नायक तो ग्रेटर बांग्लादेश में भारत के कई राज्यों को ही शामिल कर उनका नक्शा साझा कर देता है, भले ही बाद में वह उसे अपने सोशल मीडिया से हटा दे. ये सब कुछ बांग्लादेश की आत्महंता प्रवृत्ति को दिखाता है.
बांग्लादेश न बने डीप स्टेट का चारा
भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों को राजनीतिक दृष्टिकोण से भी देखना महत्वपूर्ण है. हाल ही में बांग्लादेश के विपक्ष के नेताओं ने यह मुद्दा उठाया है कि भारत से मदद मांगना देश की आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाला है. इस प्रकार के बयान राजनीति के माध्यम से जनता को गुमराह करने का प्रयास करते हैं. वास्तव में, अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सहायता मांगना और देना एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसे सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए. इसके बावजूद अगर बांग्लादेश को लगता है कि वह आत्मनिर्भर हो सकता है, तो यह अच्छी बात है. दुनिया में जितनी समृद्धि हो, उससे बेहतर और क्या बात हो सकती है. वैसे भी, भारत का नजरिया हमेशा वसुधैव कुटुम्बकम् वाला रहा है. बांग्लादेश को तो बनाया ही भारत ने है. इसके बावजूद अगर बांग्लादेश अपना इतिहास भूलकर मुजीबुर्रहमान के मकान को तोड़ रहा है, जिहादियों के प्रभाव में जा रहा है और भारत पर अनाप-शनाप बयानबाजी कर रहा है, तो उसको पतन के गर्त में जाने से भला कौन रोकेगा?
भारत के उत्थान से विश्व की कई शक्तियां खफा हैं. वे नहीं चाहती हैं कि भारत में स्थिर सरकारें रहें और भारत एक समर्थ, ताकतवर देश बने. इसके लिए वे बांग्लादेश को अपना चारा बनाना चाहते हैं, पर उसे अपना भविष्य सोचते हुए भारत के खिलाफ जाने से बचना चाहिए. बांग्लादेश में आर्थिक बदहाली से जनता में असंतोष बढ़ सकता है. इस स्थिति को सुधारने के लिए सरकार को कृषि सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. किसानों को उन्नत तकनीकों का प्रशिक्षण देना, उर्वरकों और बीजों की आपूर्ति सुनिश्चित करना, और सिंचाई सुविधाओं को सुधारना, ऐसे कदम हैं जो कृषि उत्पादन को बढ़ा सकते हैं. इसके अलावा, सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली को भी सुधारना चाहिए ताकि गरीब और कमजोर वर्गों को समय पर खाद्यान्न मिल सके. भारत से उसे सहायता लेकर अपनी हालत सुधारनी चाहिए, न कि तलवार खींच लेनी चाहिए.
बांग्लादेश समझे भारत का महत्व
बांग्लादेश को पुराने समझौतों को भारत के पक्ष में बताने से भी बचना चाहिए, क्योंकि भारत ने कभी भी पूरे दक्षिण एशिया में खुद को कभी थोपा नहीं है, बल्कि हरेक देश की मदद ही की है. चीन की पहले ही इस इलाके पर नजर है. उसकी ऋण-डिप्लोमैसी ने श्रीलंका सहित अफ्रीका के कई देशों का क्या हाल किया है, यह सभी जानते हैं. भारत ने कोविड से लेकर तमाम विभीषिका में दुनिया के सभी देशों के साथ कैसा बर्ताव किया है, यह बांग्लादेश को भी पता है. उसे भारत को आंख दिखाने के बजाय अपने यहां हिंदुओं का नरसंहार रोकने और अपनी आर्थिक दशा सुधारने पर काम करने की जरूरत है. बांग्लादेश को कृषि सुधारों पर विशेष ध्यान देना चाहिए. उन्नत बीजों, तकनीकों और सिंचाई प्रणालियों के उपयोग से उत्पादन में वृद्धि हो सकती है. किसानों को समर्थन देने के लिए सब्सिडी और अन्य प्रोत्साहन देने की भी जरूरत है. इन सभी मोरचों पर भारत उसकी सहायता कर सकता है.
बांग्लादेश को अन्य देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग और साझेदारी को बढ़ावा देना चाहिए. इससे कृषि सुधारों में तेजी आएगी और देश की खाद्यान्न सुरक्षा में सुधार होगा.
आगे की राह
बांग्लादेश की बदहाली और सीनाजोरी उसके लिए मुश्किल खड़े करती है. देश की खाद्यान्न सुरक्षा और आत्मनिर्भरता पर सवाल खड़े हो गए हैं। भारत एक बड़ा और जिम्मेदार देश है, इसलिए युनुस हों या बांग्लादेश का कोई और मंत्री, वह उनके अनर्गल बयानों को बहुत गंभीरता से नहीं ले रहा है. बांग्लादेश को यह भी समझना चाहिए कि उसके यहां के करोड़ों घुसपैठिए भारत में घुसकर यहां की जनता का हक मार रहे हैं, अपना पेट भर रहे हैं. बांग्लादेश को जिहाद की जगह विकास का रास्ता अपनाना चाहिए और भारत से दोस्ती कायम रखनी चाहिए, वरना भारत अगर पाकिस्तान में घुसकर मार सकता है, तो बांग्लादेश को भी अपना अपमान नहीं करने देगा, यह जानने के लिए रॉकेट साइंस का आना जरूरी नहीं है.
इन हालातों को एक अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए. आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना बांग्लादेश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसमें भारत उसकी मदद कर सकता है. बांग्लादेश के लिए यह समय है कि वह आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम उठाए और अपने नागरिकों के लिए सुरक्षित और समृद्ध भविष्य की दिशा में आगे बढ़े।